- फिल्म रिव्यू: लावास्ते
- स्टार रेटिंग: 3 / 5
- पर्दे पर: मई 26, 2023
- डायरेक्टर: सुदीश कनौजिया
- शैली: इमोशनल ड्रामा
Lavaste film Review: भारतीय सिनेमा हमेशा से जहां फैशन और ट्रैंड सेट करने के लिए मशहूर है। लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि बॉलीवुड में हमेशा से समाज को आइना दिखाने वालीं फिल्में भी बनती रही हैं। 'तारे जमीं पर', 'बाला', 'ड्रीम गर्ल' कुछ ऐसी फिल्में हैं जो कमर्शियल होते हुए भी एक बड़ा मैसेज सोसइटी को देती हैं। इसी कतार में आज 26 मई को सिनेमाघरों में एक और फिल्म रिलीज हुई है जिसका नाम है, 'लावास्ते'। मनोज जोशी और ओमकार कपूर की यह फिल्म लावारिस लाशों की ऐसी कहानी को दिखाती है जिसे देखकर आपकी आंखें भी नम हो जाएंगी। आइए जानते हैं कैसे है फिल्म...
कैसी है कहानी
डायरेक्टर सुदीश कनौजिया और प्रोडूसर आदित्य वर्मा ने इस फिल्म की कहानी को समाज के लिए एक बेहतरीन टॉपिक पर केंद्रित रखा है। ये फिल्म लोगों की सेवा और उनके अंतिम संस्कार को लेकर बनी है जिनको अग्नी देने के लिए भी कोई मौजूद नहीं होता। ये कहानी छत्तीसगढ़ के एक लड़के सत्यांश की है, जिसने B.Tech किया हुआ है। जो नौकरी की तलाश में मुंबई आता है। लेकिना नौकरी पाने के बाद भी उसे आत्मसम्मान और पैसों के लिए जूझना होता है। इन्हीं सब परेशानियों से निपटने के लिए सत्यांश एक पार्ट टाइम जॉब शुरू कर देता है। जिसके बाद उसे एक और काम मिलता है, जिसमें पैसा तो काफी अच्छा है लेकिन काम है लावारिश लाशों के अंतिम संस्कार करने का। यह नौकरी कैसे सत्यांश को अंदर तक बदलकर रख देती है। यह सफर देखने लायक है। क्योंकि उसे लावारिस लाश उठाते समय सबका एहसास होता है। इतनी दयनीय स्थिति देख सत्यांश का दिल पिघल जाता है और वह समाज में कुछ नया करने की ठान लेता है। जिसके बाद वह लावास्ते नाम से कंपनी बनाता है, जहां हर लावारिस लाश का अतिंम संस्कार किया जाता है।
क्लाइमैक्स देख दहल उठेगा दिल
यह संस्था जहां पूरे देश में लावारिस लाशों को सम्मान के साथ अंतिम संस्कार का अधिकार देती है और पूरे देश में तारीफें हासिल करती है। वहीं फिल्म के क्लाइमैक्स में अपने माता-पिता को बेहद प्यार करने वाले सत्यांश को तकड़ा झटका लगता है। अब ये ट्विस्ट क्या है इसे आपको सिनेमाहॉल में देखना होगा। लेकिन यह बात तय है कि आपकी आंखें भी यहां नम हो जाएंगी।
डायरेक्शन है दमदार
फिल्म को सुदीश कनौजिया ने काफी दमदार तरीके से डायरेक्ट किया है। हर सीन में फिल्म के इमोशन को बखूबी दर्शाया गया है। फिल्म का स्क्रीन प्ले परफेक्ट है। फिल्म जिस तरह के टॉपिक पर बनी है, उसका एहसास सुदीश के डायरेक्शन में झलक कर आ रहा है।
क्या रह गई कमी
फिल्म वैसे तो अपने विषय पर बारीकी से अध्ययन करती दिखती है, लेकिन इसे और भी परफेक्शन के साथ और कोरोना के दौरान मिलने वाली लावारिश लाशों के आंकड़े के साथ ज्यादा परफेक्ट बनाया जा सकता था।