Friday, November 15, 2024
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'पुष्पा रानी' की तरह बहुत दूर तक जाएगी 'लापता लेडीज', एक ही पल में रुलाएगी-हंसाएगी किरण राव की फिल्म

'लापता लेडीज' 1 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। फिल्म की कहानी शानदार है। ये आपको एक इमोशनल रोलरकोस्टर राइड पर ले जाएगी, जहां हंसने के साथ-साथ आपको कई गहरी बातें भी देखने को मिलने वाली हैं। 'लापता लेडीज' 1 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हो र

Jaya Dwivedie
Updated on: February 28, 2024 19:23 IST
Laapataa Ladies
Photo: INSTAGRAM 'लापता लेडीज' का एक सीन।
  • फिल्म रिव्यू: Laapata Ladies
  • स्टार रेटिंग: 4.5 / 5
  • पर्दे पर: 28 फरवरी 2024
  • डायरेक्टर: किरण राव
  • शैली: सोशल कॉमेडी ड्रामा

अगर आप काफी दिनों से हंसें नहीं हैं और आप सामाजिक मुद्दों की समझ रखते हैं, साथ ही उनकी गहराइयों को सरलता के साथ समझना चाहते हैं तो फिल्म 'लापता लेडीज' आपके लिए ही है। इस फिल्म की कहानी महिलाओं की उन समस्याओं पर बात करती है, जिन पर आज भी बात करने से लोग बचते हैं। 'फैमिनिस्ट' का झंडा बुलंद किए बिना भी 'लापता लेडीज' की कहानी हंसाते-हंसाते दिल छू लेने वाली बातें कहती है। फिल्म 1 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। उससे पहले ही आप फिल्म का सटीक रिव्यू जानें

फिल्म की कहानी

'लापता लेडीज' की कहानी शुरु होती है फूल की विदाई से, जहां दीपक अपनी पत्नी को उसके गांव से लेकर अपने घर के लिए निकलता है। ट्रेन के जनरल डिब्बे में दीपक की पत्नी फूल बदल जाती है। वो अपने साथ पुष्पा रानी नाम की लड़की को घर ले आता है। घूंघट उठाते ही पता चलता है कि दीपक की पत्नी बदल गई है। हैरान परेशान दीपक अपनी पत्नी फूल की तलाश में लग जाता है। पुलिस का सहारा लेता है, जहां थानेदार मनोहर से उसका पाला पड़ता है। एक ओर दीपक अपनी पत्नी की खोज में बेसुध मारा-मारा फिरता है तो वहीं दूसरी ओर अपनी पहचान बदलकर उसके घर में रह रही पुष्पा रानी शक के दायरे में आ जाती हैं। वहीं दूसरी ओर लापता फूल अपनी जिंदगी एक रेलवे स्टेशन पर पति के इंतजार में बिताती है। फूल की तलाश के साथ ही पुष्पा रानी की असल पहचान उजागर होती है और साथ ही बातों ही बातों में महिलाओ से जुड़ी कई समस्याओं का हल भी सुरजमुखी गांव वालों को मिल जाता है। 

कास्ट की परफॉर्मेंस

फिल्म में दीपक का किरदार मुख्य है, जिसे स्पर्श ने दमदार तरीके से निभाया। पत्नी को खोने का दर्द उसकी हर बात में झलकता है। शहरी परिवेश से दूर गांव के लड़के के रूप में दीपक पूरी कहानी में छा जाता है। माचोइज्म और अल्फा मेल के दौर में दीपक की छवि इस तरीके से दिखाई गई है कि वो अपने इमोशन्स बयां करने में शर्म नहीं करता। वो रोता भी है, महिलाओं का सम्मान भी करता है और उसका प्यार भी सच्चा है। स्पर्श इस किरदार में पूरी तरह सटीक बैठे हैं। पुष्पा रानी के किरदार में प्रतिभा रांटा भी कम नहीं हैं। उनका किरदार एक ऐसी महिला का है, जो समाजिक बंधनों से भाग रही है। वो जिंदगी में कुछ बेहतर करने के लिए कुछ झूठ बोलती दिखती है, लेकिन उसका मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं। वो झूठ के सहारे भी लोगों की जिंदगी बदलती हैं। दीपक को उसकी जिंदगी की ज्योति देती है। दीपक की भाभी और मां को जिंदगी का मकसद दे जाती है। अब आते हैं फूल पर, जो एक नाजुक कली सी लड़की है। उसकी जिंदगी का सिर्फ एक ही मकसद है, शादी के बाद ससुरालवालों को खुश रखना। पति से बिछड़ने के बाद उसे जीवन का असल मतलब समझ आता है और रेलवे स्टेशन पर बीतने वाले चंद दिन उसे सश्क्त बनाते हैं। इस रोल में नितांशी हैं। उनकी एक्टिंग भी कम उम्र में भी किसी मंझे कलाकार से कम नहीं हैं।

अब आते हैं उस किरदार पर जो फूल को असल मायने में सश्क्त बनाती है। ये किरदार है मंजू माई का और इस रोल को छाया कदम ने निभाया हैं। ये किरदार बड़े ही सरल तरीके से दिल पर वार करने वाली बातें कहता है। ये अपने आपमें बहुत ही प्रभावी और मजबूद किरदार है। छाया इस रोल में एकदम सटीक हैं। हर किसी को अपना कायल बनाने वाला एक किरदार है, जिसे रवि किशन ने निभाया है, इसका नाम मनोहर है। वो एक पुलिसवाला है, जो घूसखोर होते हुए भी इमांदार है। ये बात आपको भ्रमित जरूर करेगी कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है, लेकिन इसका जवाब आपको फिल्म देखकर ही मिलेगा। कुल मिलाकर फिल्म की कास्ट एकदम फिट है। हर सीन में जान फूंकने वाली ये स्टार कास्ट एक पल के लिए भी आपको पलके झपकाने नहीं देगी। कहानी को रोमांचक बनाए रखने में इनकी शानदार एक्टिंग का पूरा-पूरा हाथ है। 

डायरेक्शन और स्क्रिप्ट

हल्के-फुल्के डायलॉग के जरिये ही गहरी बातें कही गई हैं। फिल्म की कहानी एकदम कसी हुई है। एक के बाद एक सीन आते हैं और आपको फेवीकोल के जोड़ की तरह ही बांधे रखते हैं। एक पल के लिए भी फिल्म की कहानी बोरिंग नहीं होती। बहुत हंसाने और काफी इमोशनल करने वाली ये फिल्म कई सामाजिक संदेश देती है। किरण राव भले ही 13 साल बाद किसी फिल्म का निर्देशन कर रही हैं, लेकिन वो 'देर आए दुरुस्त' आए वाली कहावत को एकदम सही साबित कर रही हैं। किरण राव का निर्देशन हर एक पहलू को झूता। छोटी से छोटी बातों का फिल्म में ध्यान रखा गया, फिर चाहे दहेज में दिए गए मोबाइल फोन को लग्जरी के तौर पर दिखाना रहा हो या फिर एक महिला का खेती के बारे में जागरूक होने पर लोगों अचंभित होना। फिल्म की स्क्रिप्ट भी ठहराव भरी है जो आसानी से अपनी बातें लोगों के बीच रख रही है। फिल्म के लेखक विप्लव कुमार और किरण राव के साथ ने 'लापता लेजीज' के जरिये सिनेमाई जादू किया है। फिल्म के कई सीन ऐसे हैं, जिन्हें आप रिपीट पर देख सकते हैं, इससे ही फिल्म के धमाकेदार डायरेक्शन का अंदाजा आप लगा सकते हैं। फिलहाल फिल्म में एक भी ऐसा पल नहीं आता कि आप कहें कि ये कहानी बोझिल है।

सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग और म्यूजिक

सिनेमैटोग्राफी और एडिटिंग की बात करें तो कहानी को इनका ऐसा साथ मिला है कि हर सीन और सीक्वेंस कमाल के बन गए हैं। नैचुरल लाइट का खेल अच्छा देखने को मिल रहा है। इसके अलावा रेलवे स्टेशन पर लिए गए शॉट्स भी अच्छे हैं। फिल्म में 'सजनी', 'डाउटवा' और 'बेड़ा पार' जैसे गाने इसे और प्रभावी और मनोरंजक बना रहे। सभी गाने सिचुएशन के अनुसार ही हैं। 

कैसी है फिल्म

'लापता लेडीज' एक मस्ट वॉच फिल्म है, जिसे आप जरूर देखें। फिल्म की कहानी आपको जिंदगी सरलता से जीने का मकदस दे सकती है। सालों बाद इस तरह की फिल्म आई है जो आपको हर इमोशन्स दिखाएगी। 

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