- फिल्म रिव्यू: खेल खेल में
- स्टार रेटिंग: 3.5 / 5
- पर्दे पर: 15.08.2024
- डायरेक्टर: मुदस्सर अजीज
- शैली: कॉमेडी
क्या जिंदगी के हर रिश्ते जैसे दिखते हैं ठीक वैसे ही होते हैं? क्या हर मैरिड कपल अपनी शादी से खुश होता? क्या शादियां बिना कॉम्प्रोमाईज और एडजस्टमेंट के चल पाती हैं? क्या हर दोस्ती सच्ची होती है? क्या बेस्ट फ्रेंड्स के बीच कोई राज़ नहीं होते? क्या प्यार और दोस्ती विश्वास और निस्वार्थता भाव की ठोस नींव पर आधारित होती हैं? क्या जिसे आप सबसे करीबी समझते हैं वही नकाबपोश अजनबी होता है? इटालियन कॉमेडी-ड्रामा 'परफेक्ट स्ट्रेंजर्स' का देसी रूपांतरण 'खेल खेल में' इन सभी सवालों का सटीक जवाब लेकर आई है। दोस्तों का एक समूह एक शादी में शामिल होने के लिए एकजुट होता है और एक गेम खेलने का फैसला करता है जहां एक रात के लिए उनका फोन उनकी निजी संपत्ति नहीं रहता। यह कमरे में मौजूद सभी लोगों के लिए उपलब्ध होता है। हल्के-फुल्के दृश्यों और हंसी मज़ाक से बढ़कर कहानी भावनात्मक मोड़ लेती है। हास्य व्यंग्य की आड़ में रिश्तों की जटिलताओं, बारीकियों और गड़बड़ियों को ये फिल्म उजागर कर रही है। फिल्म की कहानी और कलाकारों की एक्टिंग कितनी दमदार है चलिए विस्तार से जानते हैं।
कहानी
सॉल्ट एंड पेप्पर लुक में अक्षय कुमार एक प्लास्टिक सर्जन ऋषभ की भूमिका निभा रहे हैं, जिसकी पत्नी वर्तिका (वाणी कपूर) ने उन्हें एक अल्टीमेटम दिया है कि अगर उनकी शादी तीन महीने नहीं चलती है तो वो तलाक लेकर अलग हो जाएगी। प्लास्टिक सर्जन ऋषभ एक पेशेवर झूठा भी है और उसकी इसी आदत से उसकी पत्नी तंग है। यह जोड़ा वर्तिका की बहन की शादी में पहुंचता है जहां वे अपने दोस्तों से मिलते हैं। हरप्रीत कौर (तापसी पन्नू) है, जिस पर उसकी सास बच्चा पैदा करने के लिए दबाव डाल रही है। एमी विर्क हरप्रीत सिंह हैं, जो एक उद्यमी हैं और स्पर्म काउंट में कमी की समस्याओं से जूझ रहे हैं। हरप्रीत कौर और हरप्रीत सिंह पति पत्नी हैं। आदित्य सील समर हैं। वह अपनी पत्नी नैना (प्रज्ञा जयसवाल) के पिता की कंपनी में काम करता है। समर नौकरी के बीच सेक्सुअल एक्सटॉरशन और ब्लैकमेलिंग झेल रहा है, वहीं नैना रोड एक्सीडेंट के बाद डिप्रेशन में चली गई है। हर किरदार के पास एक बड़ी समस्या है लेकिन फिर वो इसे छिपा रहे हैं और मुखौटे के पीछे एक झूठी जिंदगी जी रहे हैं। इनकी लाइफ में इतना झूठ शामिल है जैसे दूध में पानी नहीं, बल्कि पानी में दूध। ये सभी झूठ एक खेल के साथ उजागर होंगे और उथल-पुथल मचा देंगे। बिना बोल्ड सीन और डबल मीनिंग जोक्स के हंसी के फुहारे लगातार जारी रहेंगे। हर खुलासे के साथ कहानी और दिलचस्प होती जाएगी। फिलहाल हर झोल के बाद हैप्पी एंडिंग होगी। इस कहानी में रिलेशनशिप के अलावा सेक्सुएलिटी पर खुल कर बात की गई है।
अभिनय
खुद को कॉमेडी किंग के रूप में स्थापित कर चुके अक्षय कुमार ने अब आखिरकार बायोपिक छोड़ कॉमिक भूमिकाओं में वापसी कर ली है और उनकी वापसी सॉलिड है। पूरी तरह से अक्षय दिल जीत रहे हैं। वो किरदार में पूरी तरह ढले नज़र आ रहे हैं। अक्षय के किरदार में सबसे ज्यादा गहराई है, जिसके राज़ से आखिर तक पर्दा नहीं उठता। अक्षय कुमार का फिल्म में उनकी बेटी के साथ एक सीन दिखाया गया है, जो दिल छूने वाला है और इसे देखने के बाद आप कहेंगे कि अक्षय कुमार कभी भी असल मुद्दे उठाने से नहीं चूकते। इस बार भी खिलाड़ी कुमार माता-पिता को अपने बच्चों के साथ यौन शिक्षा और किशोर गर्भावस्था के जोखिमों के बारे में खुलकर बात करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
एमी विर्क, 'बैड न्यूज' की तरह ही इस बार भी कलाकारों की टुकड़ी पर भारी पड़े हैं। वो बिल्कुल नेचुरल लग रहे हैं। कहानी में उनका किरदार अक्षय कुमार के बाद सबसे अहम है। तापसी और उनकी केमिस्ट्री सबसे ज्यादा हँसाने में कामयाब रही है। तापसी भी कुछ कम नहीं हैं, वो देसी पंजाबी कुड़ी बनकर छा गई हैं। उनके किरदार में नयापन है। हमेशा की तरह तापसी इम्प्रेस करने में जरा भी नहीं चूकीं हैं। वो कॉमिक किरदार में इतना खोई हुई हैं कि उनके रोने पर भी आपको हंसी आएगी। फरदीन को देखना दिलचस्प है, क्योंकि उनके किरदार में कई परतें हैं और उन्होंने उन जटिल भावनाओं को बहादुरी से दिखाया है। प्रज्ञा जयसवाल और आदित्य सील भी इम्प्रेसिव हैं। अगर किसी किरदार में कमी है तो वाणी कपूर का रोल है। एक्ट्रेस की एक्टिंग ठीक है लेकिन उनके किरदार में वो बात नहीं है। न उनके हिस्से दमदार संवाद आए हैं और न ही इमोशनल सीन्स। ऐसे में उनका कैलिबर निखर के सामने नहीं आया है।
निर्देशन
मुदस्सर अजीज के निर्देशन की बात करें तो उन्होंने एक मसाला फिल्म बनाई है। फिल्म के अधिकांश हिस्से आपको हंसाएंगे। 'मर्द झूठ बोलते हैं' और 'औरतें शक करती हैं' इन दोनों ही बातों पर न चाहते हुए भी आप यकीन करेंगे और इसी से साबित होता है कि निर्देशन कितना सटीक है। फिल्म का स्क्रीनप्ले जरा भी खिंचा नहीं है यही वजह है कि फिल्म उबाऊ नहीं लगती। संवाद में पंचलाइन की भरमार है, जो कॉमिक टाइम को ऑन पॉइंट बना रहे हैं। फिल्म के बीच कुछ ही गाने आते हैं जो सिचुएशन के अनुसार सटीक बैठ रहे हैं। मुदस्सर अजीज ने हंसीं मजाक के बीच ही कई सामाजिक मुद्दों को बखूबी उठाया है। फिल्म में छोटी-मोटी खामियां हैं, जिन्हें नजरंदाज किया जा सकता है।
कैसी है फिल्म
'खेल खेल में' ने खेल खेल में ही कई गहरे मुद्दों को छुआ है। फिल्म की कहानी जरूर देखने लायक है। अगर इस हफ्ते आप एक अच्छी फिल्म देखने की योजना बना रहे हैं तो ये फिल्म देखने से परहेज न करें। अक्षय कुमार की टोली आपका मनोरंजन करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। हम इस फिल्म को 3.5 स्टार दे रहे हैं।