Sunday, September 08, 2024
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Kakuda Review: हॉरर-कॉमेडी 'काकुड़ा' से हंसी और डर दोनों ही गायब, स्त्री-मुंज्या बनने से चूकी सोनाक्षी-रितेश की फिल्म

मैडॉक फिल्म्स एक और हॉरर-कॉमेडी फिल्म काकुड़ा के साथ वापस आ गया है जो आज जी5 पर रिलीज़ हो गई है। हालांकि, ये फिल्म न तो 'स्त्री' जैसी बन सकी और न ही 'मुंज्या' जैसा जादू बिखेर सकी। पूरी समीक्षा पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें।

Sakshi Verma
Published on: July 11, 2024 18:06 IST
Kakuda Movie Review
Photo: INSTAGRAM काकुड़ा फिल्म रिव्यू
  • फिल्म रिव्यू: काकुड़ा
  • स्टार रेटिंग: 2.5 / 5
  • पर्दे पर: 11 जुलाई, 2024
  • डायरेक्टर: आदित्य सरपोतदार
  • शैली: हॉरर-कॉमेडी

'भूल भुलैया' से लेकर 'गो गोवा गॉन' तक जब भी हॉरर के साथ कॉमेडी को मिक्स किया गया है, दर्शकों ने इसे हमेशा पसंद किया है। हालांकि, कई सालों तक 'हॉरर-कॉमेडी' का दरवाजा बंद लग रहा था, लेकिन 2018 में रिलीज हुई श्रद्धा कपूर और राजकुमार राव स्टारर 'स्त्री' के साथ, मैडॉक फिल्म्स ने भारत में एक बार फिर हॉरर-कॉमेडी की शैली को वापस ला दिया। और तो और जब बड़े पर्दे पर 'बड़े मियां छोटे मियां' और 'मैदान' जैसी बड़े बजट और बड़े स्टार्स की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर संघर्ष कर रही थीं तो एक और और ऐसी फिल्म 'मुंज्या' सुपर-डुपर हिट हो गई, जिससे शायद ही किसी को उम्मीद रही होगी। अब निर्माता एक और हॉरर-कॉमेडी फिल्म काकुड़ा के साथ वापस आ गए हैं जो आज जी5 पर रिलीज़ हो गई है।

कहानी

सोनाक्षी सिन्हा, रितेश देशमुख और साकिब सलीम स्टारर 'काकुड़ा' की कहानी इसी नाम से पुकारे जाने वाले एक भूत के बारे में एक पुरानी लोककथा पर आधारित है। रितेश फिल्म में एक भूत शिकारी की भूमिका में हैं, जिन्होंने अपने शानदार करियर में 127 चुड़ैलों, 72 पिशाचों, 37 भूतों और 3 जिन्नों को वश में किया है। फिल्म की शुरुआत रतौली नाम के गांव से होती है, जहां के निवासी 'काकुड़़ा' नाम के भूत की वजह से परेशान हैं। रतौली गांव में रहने वाले लोगों को हर मंगलवार को सवा सात बजे अपने घर का छोटा दरवाजा खोलना पड़ता है। अगर कोई पुरुष ऐसा नहीं कर पाता तो उसका कूबड़ निकल आता है और वह 13 दिनों के अंदर अचानक मर जाता है। इसी बीच रतौली गांव के रहने वाले सनी (साकिब सलीम) को दूसरे गांव में रहने वाली इंदू (सोनाक्षी सिन्हा) से प्यार हो जाता है।

हालात तब गंभीर हो जाते हैं जब एक दिन सनी काकुड़ा के सम्मान को बढ़ाना भूल जाता है और उसका शिकार बन जाता है। उसकी पत्नी इंदूउसे बचाने के लिए एक भूत शिकारी (रितेश देशमुख) की तलाश करती है। यह जानने के लिए कि क्या वह सनी और ग्रामीणों को बचाने में सक्षम है। इसके आगे क्या होता है, ये जानने के लिए आप जी5 पर फिल्म देख सकते हैं।

डायरेक्शन

फिल्म का निर्देशन 'मुंज्या' और 'जोम्बिवली' जैसी हिट हॉरर कॉमेडी बनाने वाले आदित्य सरपोतदार ने किया है। हालांकि, फिल्म निर्माता इस फिल्म में मुंज्या की कसावट लाने में असफल रहे हैं। पूरी फिल्म में निर्देशक और लेखक अविनाश द्विवेदी और चिराग गर्ग 'स्त्री' और 'भेड़िया' की नकल करने की कोशिश करते नजर आते हैं। इस फिल्म का सबसे कमजोर हिस्सा इसकी स्क्रिप्ट है और इसमें स्पष्ट रूप से सुधार की जरूरत दिखाई देती है। कई जगहों पर 'काकुड़ा' स्त्री का स्पूफ भी लगती है। फिल्म में और भी कई कमियां हैं, जैसे सिचुएशनल कॉमेडी कहीं नजर नहीं आती। हो सकता है कि आप बैठे रहें और हंसने का इंतजार ही करते रह जाएं।  कुल मिलाकर, इस फिल्म के निर्माता आसानी से कहानी को ऊंचा उठा सकते थे, क्योंकि उन्होंने एक आशाजनक विषय चुना था लेकिन वे उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके।

एक्टिंग

क्योंकि ये फिल्म एक हॉरर कॉमेडी है, इसलिए इसमें ऐसे एक्टर्स को कास्ट किए की जरूरत थी जो इस तरह के सीन को सहजता से निभा सकें। रितेश देशमुख की बॉडी लैंग्वेज और डायलॉग डिलीवरी तारीफ के लायक है। लेकिन, साकिब सलीम और सोनाक्षी सिन्हा तभी ऐसा करने में कामयाब होते, जब स्क्रिप्ट ने इसमें उनकी मदद की होती। स्क्रिप्ट में ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे सोनाक्षी सिन्हा को कुछ करने में मदद मिलती। इसलिए, उन्होंने बस अपना काम किया है। साकिब सलीम की मेहनत तो दिख रही है, लेकिन वो सिर्फ कोशिश करते नजर आ रहे हैं। इसके अलावा, पंचायत फेम आसिफ खान इस फिल्म का अहम हिस्सा हैं और वह अपने किरदार में बेहद शानदार हैं। अभिनय के मामले में, हर किसी ने अपने हिस्से का उतना ही काम किया है जितना स्क्रिप्ट ने उन्हें करने की अनुमति दी थी।

फैसला

जब आप जानते हैं कि एक इंडियन हॉरर फिल्म पुरानी लोककथाओं पर आधारित है, तो कहानी पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। हाल ही के कुछ सालों में 'तुम्बाड' और 'मुंज्या' जैसी फिल्मों ने भी इस मोर्चे पर काफी उम्मीदें जगाई हैं। लेकिन, काकुड़ा के साथ ऐसा नहीं है। लगभग दो घंटे की यह फिल्म कुछ समय बाद इतनी उबाऊ हो जाती है कि आश्चर्य होता है कि इसे इतना लंबा क्यों बनाया गया। अगर फिल्म का आधा घंटा कम कर दिया जाता तो शायद फिल्म देखने लायक हो सकती थी। न तो वीएफएक्स और स्पेशल इफेक्ट्स की मदद से बनाया गया भूत आपको डरा सकता है और न ही बैकग्राउंड में बजता डरावना म्यूजिक प्रभावशाली है। ये फिल्म बच्चों को पसंद आ सकती है क्योंकि इसमें उन्हें हंसाने के लिए चीजें हैं। फिल्म भले ही बेहतरीन हॉरर-कॉमेडी न हो, लेकिन मजेदार और आनंददायक है। एक बार ये फिल्म देखी जा सकती है। काकुड़ा 2.5 स्टार का हकदार है।

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