- फिल्म रिव्यू: आई वांट टू टॉक
- स्टार रेटिंग: 3 / 5
- पर्दे पर: November 22, 2024
- डायरेक्टर: Shoojit Sircar
- शैली: Family Drama
हिंदी सिनेमा के मोस्ट पॉपुलर एक्टर में से एक अभिषेक बच्चन 15 महीने बाद शूजित सिरकार की 'आई वांट टू टॉक' के साथ बड़े पर्दे पर वापस आ गए हैं। यह फिल्म एक मरते हुए आदमी की सच्ची घटनाओं पर आधारित है। वह आदमी जिसे बताया गया था कि उसे कैंसर है और उसके पास जीने के लिए केवल 100 दिन हैं। 'आई वांट टू टॉक' में बहुत सी चीजें दिल को छू लेने वाली हैं, जिसमें दो चीजें अंत तक नहीं बदलती हैं। एक बुजुर्ग होता व्यक्ति जो मौत को हराने की कोशिश करते दिखाई देता है और साथ ही अपनी बेटी संग मजबूत रिश्ता बनने की कोशिश करता है। 'सरदार उधम' और 'पीकू' से मशहूर हुए फिल्म निर्माता शूजित सिरकार वापस आ गए हैं, लेकिन इस बार कोई खास धमाका नहीं कर पाए। वहीं अभिषेक बच्चन ने इस अवसर को दोनों हाथों से लपक लिया है और फिर से छा गए।
कहानी
'आई वांट टू टॉक' की शुरुआत एक आईआईटीयन और एनआरआई अर्जुन सेन से होती है जो कैलिफोर्निया से मार्केटिंग की दुनिया में धूम मचा रहा है। पहले कुछ मिनटों में यह साफ हो जाता है कि शादी के कुछ सालों बाद ही अर्जुन अपनी पत्नी से अलग हो जाता है। उनकी एक बेटी भी है, जिसका नाम रेया है जो मंगलवार, गुरुवार और हर दूसरे वीकेंड अपने पिता के साथ रहती है। ऑफिस मीटिंग के दौरान खून की खांसी आने के बाद, अर्जुन को अस्पताल ले जाया जाता है जहां उसे पता चलता है कि वह लैरिंजियल कैंसर से पीड़ित है। बाद में वह दूसरे डॉक्टर (जयंत कृपलानी) से मिलता है, जब उसे बताया जाता है कि उसके पास जीने के लिए केवल 100 दिन बचे हैं।
इसके बाद अर्जुन न केवल जीवित रहने के लिए बल्कि अपनी बेटी के साथ अपना रिश्ता और भी अच्छा बनने की कोशिश करने के लिए अपने शरीर के अधिकांश अंगों की 20 सर्जरी करवाता है। वह व्यक्ति जो कभी आत्महत्या करना चाहता था, उस दोस्त के लिए मैराथन दौड़ता है, जिसने उसे बचाया था। फिल्म की शुरुआत में, अर्जुन कहता है कि उसे नफरत है जब लोग जोड़-तोड़ के शब्द का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि वह केवल समझाने की कोशिश करते हैं। यही 'आई वांट टू टॉक' की कहानी है, लेकिन क्या वह कैंसर को हरा पाता है? क्या वह अपनी बेटी की शादी में नाच पाता है? जानने के लिए सिनेमाघरों में फिल्म देखें।
अभिनय
शूजित सिरकार की फिल्मों की एक खास बात यह है कि वे कभी भी ऐसे अभिनेता को काम पर नहीं रखते जो अपनी भूमिका को बखूबी नहीं निभा पाते। 'आई वांट टू टॉक' इसका अच्छा उदाहरण है। इस फिल्म के कप्तान अभिषेक बच्चन ही हैं जो शुरू से लेकर आखिर तक इस फिल्म के कप्तान बने हुए हैं। कई शारीरिक बदलावों से लेकर अभिनय, आंखों और हाव-भाव तक, एबी जूनियर ने सब कुछ बखूबी निभाया है और वह भी बड़ी सहजता से। अपने दमदार किरदार और काम के लिए मशहूर एक्टर ने 'गुरु', 'मनमर्जियां', 'दसवीं', 'घूमर' और अब 'आई वांट टू टॉक' जैसी फिल्मों में बेहतरीन एक्टिंग करके अपने अभिनय का स्तर और ऊंचा उठा दिया है। इस फिल्म में अभिषेक बच्चन ने को काम किया है वो सच में काबिले तारीफ हैं, लेकिन प्रोस्थेटिक्स और मेकअप टीम की भी तारीफ करना उतना ही जरूरी है जो हर बदलते लुक के साथ आपको किरदार की ओर खींचते हैं।
'आई वांट टू टॉक' में जॉनी लीवर, जयंत कृपलानी और क्रिस्टिन गोडार्ड जैसे कई बेहतरीन कलाकार भी हैं, लेकिन अभिषेक बच्चन के बाद अगर किसी पर ध्यान जाएगा तो वह उनकी बेटी रेया का किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस पर ही हो। पियरले डे इस फिल्म में अभिषेक की बेटी का किरदार निभा रही हैं जो अपनी हर बात को बहुत ही अच्छे से कहती हैं और चुपचाप अपने माता-पिता के टूटे हुए रिश्ते से जूझती हैं। वहीं दूसरी ओर अहिल्या बामरू जो कि वृद्ध किरदार निभा रही हैं, उन्होंने भी बहुत अच्छा काम किया है।
लेखन और निर्देशन
शूजित सिरकार की फिल्मों के बारे में एक और बात यह है कि इसमें किसी को भी एक ही तरह से नहीं दिखाया गया है, जिसे दर्शकों का ध्यान सिर्फ लीड किरदार पर होगा। हालांकि पिछली फिल्मों के मुकबले इस बार बहुत कुछ नया दिखाने की कोशिश की और काफी हद तक सफल भी रहे हैं, जैसे कि 'पीकू', 'अक्टूबर' और 'सरदार उद्धम' में देखने को मिला था, लेकिन शूजित इस बार अपना जादू नहीं चला पाए। लेखन के मामले में 'आई वांट टू टॉक' उनकी सबसे कमजोर फिल्म है। 'आई वांट टू टॉक' के लेखक रितेश शाह ने क्लाइमेक्स का लुत्फ उठाने के लिए कई सारे ट्विस्ट जोड़े हैं। इसके अलावा, फिल्म में बहुत कुछ ऐसा था जिसे मेकर्स और भी ज्यादा अच्छे तरीके से एक्सप्लोर कर सकते थे, जैसे कि अर्जुन का अपनी पत्नी के साथ रिश्ता जो तलाक के सेटलमेंट सीन को छोड़कर फिल्म में कहीं नहीं दिखाई दिया। फिर जॉनी का लीवर खराब होना, जिसका मतलब सिर्फ कहानी को लंबा करना था।
दूसरी ओर, अभिषेक बच्चन के किरदार की भावना को एक निश्चित तरीके से दिखाया जाना चाहिए था क्योंकि वह दिल को छू लेना वाला किरदार है, लेकिन कई सीन्स जहां अभिषेक को डॉक्टर को समझाना पड़ता है। उस वक्त फिल्म में ये देख किसी को भी अजीब लग सकता है कि मरीज डिटेल दे कर सीन को बढ़ा रहा है। इसके अलावा दर्शकों को हंसाने की कोशिश सपल नहीं हुई क्योंकि कुछ चुटकुले बहुत बोरिंग है जबकि शूजित की खासियत इस फिल्म में कहीं नजर नहीं आई। शूजित सिरकार की 'आई वांट टू टॉक' एक ऐसी फिल्म बन गई है, जिसका एक भी गाना हमारे दिमाग में लंबे समय तक नहीं टिकेगा।
कैसी है फिल्म?
'आई वांट टू टॉक' में बहुत कुछ है, लेकिन सिर्फ उन लोगों के लिए जो सुनना चाहते हैं और धैर्य रखते हैं। यह फिल्म आपको 'अक्टूबर' की भी बहुत याद दिलाएगी। इसके अलावा, वो सीन जहां रेया अपने पिता से भिड़ती है, वह भी 'पीकू' फिल्म की यादों को ताजा करेगी। जहां फिल्म निर्माता को लेखन और पटकथा में गलतियां करने के लिए दोषी ठहराया जाना चाहिए, वहीं कलाकारों ने शानदार काम भी किया है और उन्हें सही मायने में श्रेय दिया जाना चाहिए। पटरी से उतरने और धीमी गति से चलने के बावजूद 'आई वांट टू टॉक' एक टूटे हुए घर, पिता-बेटी के रिश्ते और अस्तित्व की आधुनिक तस्वीर पेश करती है। इसलिए, अभिषेक बच्चन और शूजित सिरकार की फिल्म 3 स्टार की हकदार है।