- फिल्म रिव्यू: Hamari Adhuri Kahani
- स्टार रेटिंग: 2 / 5
- पर्दे पर: 12 JUNE, 2015
- डायरेक्टर: मोहित सुरी
- शैली: रोमांटिक
इमरान हाशमी,विधा बालन और राजकुमार राव जैसे बेहतरीन कलाकार होने के बावजूद मोहित सूरी के निर्देशन में बनी फिल्म "हमारी अधूरी कहानी" बॉक्स ऑफिस पर बेदम नज़र आती है और दशर्को को निराश करती है। फिल्म का संपादन कमजोर है और इंटरवल से पहले फिल्म बेहद स्लो है । फिल्म देखकर ऐसा लगता है कि मोहित सुरी अभी भी ‘आशिकी 2’ पर ही अटके हुए हैं जबकि इस फिल्म की दरकार कुछ और थी।
‘आशिकी 2’ और एक विलेन जैसी बेहतरीन भावनात्मक रोमांटिक फिल्म बनाने वाले मोहित सूरी "हमारी अधूरी कहानी" के साथ न्याय नहीं कर पाएं हैं! फिल्म में आपको बेहतरीन गीत संगीत, खूबसूरत लोकेशन देखने को मिलते हैं लेकिन बेदम संवाद, लचर संपादन और कुछ सीन में बिना बात के ओवरेटेड ड्रामा सीन दर्शक पचा नहीं पाते हैं!
मुंबई में पेशे से फ्लोरिस्ट वसुधा (विद्या बालन) आरव (इमरान हाश्मी) को एक होटल में लगी आग से बचाती है जिससे खुश होकर आरव उसे दुबई के अपने होटल में नौकरी दे देता है। आरव इसी दौरान वसुधा की तरफ आकर्षित होता है लेकिन यहां पर आता है ट्विस्ट। वसुधा की शादी हरि (राजकुमार राव), जो पांच साल से लापता है, से हो चुकी है और उसका एक बच्चा भी है। पुलिस को शक है कि हरि किसी आतंकवादी संगठन से जुड़ गया है। लेकिन क्या होगा जब हरि वसुधा की जिंदगी में वापस आएगा?
निर्देशक मोहित सुरी अपनी फिल्मों में रोमांस का ऐसा रंग घोलते है जिसे हम कभी भूल नहीं पाते। बेहतरीन संगीत से इसे वो तराशते है और हमारे सामने परोसते हैं। और यहां तो बात है फिल्मकार महेश भट्ट की जिनकी जिंदगी को वो इस फिल्म में पिरोते है। तो इस बार मोहित की पिछली फिल्मों के मुकाबले बात अलग क्यों न हो?
यकीनन फिल्म में काफी कुछ अलग है। मोहित सुरी की ये फिल्म आपको प्यार की ऐसी परिभाषा देती है जिसको समझने के लिए सदिया बीत जाएंगी। जिसे वैसे समझने के लिए आपको कुछ पल ही लगने चाहिए।
फिल्म के पहले फ्रेम में विद्या किसी हाईवे पर बस से उतरती है और कुछ ही दूर चलते ही बेहोश हो जाती है। उस पर संगीतकार मिथुन के बैकग्राउंड स्कोर का इतना ताबड़-तोड़ इस्तेमाल होता है कि आप एक पल के लिए मान ही जाते है कि फिल्म काफी दर्द भरी होने वाली है। लेकिन इसका अंदाजा बिल्कुल नहीं होता की आगे बढ़कर ये असल में आपके सिर का दर्द बनने वाली है।
मोहित सुरी अपनी इस फिल्म में प्यार की ऐसी अधूर कहानी बयां करते है जिसमे फिलॉसफी ज्यादा दी गई है। ज्ञान का सागर ऐसा है कि रामायण और महाभारत की तरह एक पूरी किताब लिखी जा सकती है। विद्या और इमरान की जुबां से बोले गए हर शब्द ऐसे हैं जिनको समझना नामुकिन है और जिसके लिए आपको डिक्शनरी का सहारा लेना पड़ सकता है। हद तो तब हो जाती है जब अंग्रेजी में 'what is happening man' में बात करने वाला मैनेजर अचानक शायराना हो जाता है।
फिल्म के एक सीन में विद्या बालन इमरान के प्यार के इज़हार के बाद सामान उठा कर दुबई के रेगिस्तानी हाईवे पर पैदल ही चल पड़ती है। ये जानकर आपको अचंबा होगा कि वो एयरपोर्ट का रूख कर रही है जो मीलों दूर है। ये उनकी नादानी बोले या फिल्म के निर्देशक का आलसीपन, कि वो ऐसी कई गलतियां फिल्म में करते है।
फिल्म को इमोश्नल बनाने के चक्कर में वो अपने कलाकारों से मेलोड्रामा करवा बैठते है जिसका खामयाज़ा पूरी फिल्म को भुगतना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि फिल्म की कहानी कमज़ोर है लेकिन जब फिल्म में 70 और 80 के दशक की तरह ज़बरन आसुंओं का इस्तेमाल किया जाए तो भला कोई अपने आपको फिल्म से कैसे जोड़ सकता है? ना चाहते हुए भी ऐसे द्रश्यों में आपकी हंसी छूट जाती है।
दुबई की उंची-उंची इमारतों और रेगिस्तान के बीच मोहित इन दोनों किरदारों में प्यार के लिए जगह बनाने की कोशिश करते है लेकिन वो महज़ मजाक बनकर रह जाता है। और ऐसे में दोनों की प्रेम कहानी की हम मुश्किल से ही चिंता करना जरूरी समझते हैं।
जब फिल्म की पटकथा ही ऐसी हो तो बेहतरीन कलाकार भी भला क्या कर सकते है। विद्या के पास मौका था कि पिछली तीन फिल्मों के पिटने के बाद वो वापसी कर सकती थी लेकिन रोने-धोने के अलावा वो और कुछ नहीं कर पाती।
इमरान हाशमी थोड़ी सहजता और संयम जरूर दिखाते है लेकिन अंत तक आते-आते वो भी अपनी लय खो बैठते है। नेश्नल अवार्ड विजेता राजकुमार राव विद्या के पति के किरदार में अच्छे है लेकिन बुरी पटकथा से वो भी मात खाते है।
फिल्म माें मिथून का संगीत पहले से ही हिट है। खास तौर पर फिल्म का टाईटल ट्रैक और ए हमनवा गीत जो आपके दिल में पहले से ही उतर चुका है। लेकिन बेहतरीन गीत फिल्म की ज्यादा मदद नहीं कर पाते है।
आखिरी राय- मोहित सुरी की ये फिल्म आपको इंटरवेल में ही रूला देगी। फिल्म के नाम की तरह फिल्म की अाधी-अधूरी कहानी अपको बोर करती है।