Saturday, December 21, 2024
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अमिताभ बच्चन के शानदार अभिनय ने लूटी महफिल, जानिए कैसी है फिल्म की कहानी

अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की फिल्म 'गुलाबो सिताबो' अमेजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो चुकी है। आइए जानते हैं कैसी फिल्म?

Jyoti Jaiswal
Updated : June 12, 2020 15:59 IST
Gulabo Sitabo Movie review , amitabh bachchan
Photo: INSTAGRAM/@AMITABH BACHCHAN

Gulabo Sitabo Movie review in hindi

  • फिल्म रिव्यू: गुलाबो सिताबो
  • स्टार रेटिंग: 2.5 / 5
  • पर्दे पर: 12 जून 2020
  • डायरेक्टर: शूजित सरकार
  • शैली: कॉमेडी-ड्रामा

Movie review: अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की फिल्म 'गुलाबो सिताबो' अमेजन प्राइम पर स्ट्रीम हो चुकी है। लॉकडाउन की वजह से यह फिल्म थियेटर्स में ना रिलीज होकर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज की गई। इस फिल्म को लेकर अच्छा खासा बज़ है। फैमिली एंटरटेनर कहकर प्रमोट की गई शूजित सरकार की फिल्म 'गुलाबो सिताबो' कैसी है आइए जानते हैं। 

कहते हैं लालच का फल बुरा होता है, लेकिन इसे जानते हुए भी लोग मानने को तैयार नहीं होते हैं। जूही चतुर्वेदी के द्वारा लिखी गई फिल्म 'गुलाबो सिताबो' भी इसी लालच पर बेस्ड है। पुराने लखनऊ में ऐसे कई किस्से हैं, जहां किराएदार 50-60 सालों से रह रहे होते हैं और फिर धीरे-धीरे उस मकान पर कब्जा कर लेते हैं। कुछ ऐसे ही किस्सों से सजी फिल्म है गुलाबो सिताबो। जिसमें मिर्जा यानी कि अमिताभ बच्चन को अपनी पुरानी हवेली का लालच जो कि उससे 17 साल बड़ी बेगम के नाम है। वहीं बांके (आयुष्मान खुराना) को लालच है कि कैसे वो हवेली में रहे और उसे किराया भी ना देना पड़े। फिल्म की शुरुआत से ही दोनों में चूहे-बिल्ली की लड़ाई चलती रहती है। जहां मिर्जा अपनी बेगम के मरने का इंतजार करता है और प्रॉपर्टी अपने नाम कराने की कोशिश करता है, वहीं दूसरी तरफ बांके कोशिश करता है कि पुरातत्व विभाग वाले इस बिल्डिंग पर कब्जा कर लें जिससे उसे रहने के लिए घर मिल जाए और बूढ़े मिर्जा की प्रॉपर्टी उससे छिन जाए। पूरी फिल्म में ऐसे ही नोंक झोंक चलती रहती है, बीच बीच में हंसी की फुहार भी चलती है। लेकिन क्या ये फिल्म लोगों को पसंद आएगी?

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फिल्म शुरुआत से लेकर अंत तक एक वही फातिमा हवेली को लेकर चलती है, जो बीच बीच में हमें बोरियत का एहसास भी कराती है, बॉलीवुड मसाला फिल्मों के शौकीन शायद इस फिल्म को पसंद ना करें। फिल्म में विजय राज, ब्रजेन्द्र काला, और फार्रूख जफर जैसे तमाम उम्दा कलाकार हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि इनके टैलेंट का ठीक तरह से इस्तेमाल नहीं हुआ। सृष्टि श्रीवास्तव जरूर निखरकर सामने दिखी हैं।

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अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म में प्रोस्थेटिक का इस्तेमाल किया था, उनकी नकली नाक साफ पता चलती है जो अखरती है। हालांकि अभिनय की बात करें तो पूरी लाइमलाइट अमिताभ बच्चन ले गए। इस उम्र में इतना शानदार काम सिर्फ वही कर सकते हैं। अमिताभ के आगे आयुष्मान खुराना जरूर धूमिल हो गए। उर्दू बोलने में आयुष्मान को जो मशक्कत करनी पड़ रही थी वो भी समझ में आ रहा था। 

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फिल्म का कैमरा वर्क अच्छा है, जो पुराने लखनऊ को करीब से दिखाता है। फिल्म में पपेट शो दिखाया गया है, जो काफी इंटेस्टिंग तरीके से फिल्म को आगे बढ़ाता है।

फिल्म का क्लाइमैक्स जरूर शानदार है और अनएक्सपेक्टेड है, जो आपको हंसाएगा। हल्की फुल्की फिल्में देखने के शौकीन हैं, तो आपको यह फिल्म पसंद आएगी, अगर आप बॉलीवुड मसाला फिल्में पसंद करते हैं तो शायद आपको इस फिल्म से निराशा होगी। इंडिया टीवी इस फिल्म को देता है 5 में से 2.5 स्टार।

गुलाबो सिताबो में 'मिर्जा' और 'बांके' तो कठपुतली निकले, असली डोर किसी और के हाथ में थी

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