- फिल्म रिव्यू: धड़क
- स्टार रेटिंग: 2.5 / 5
- पर्दे पर: 20 जुलाई 2018
- डायरेक्टर: शशांक खेतान
- शैली: रोमांस-ड्रामा
आखिरकार जान्हवी कपूर और ईशान खट्टर की फिल्म ‘धड़क’ रिलीज हो गई। लंबे समय से लोगों को इस फिल्म का इंतजार था, क्योंकि ये श्रीदेवी की बेटी जान्हवी कपूर की डेब्यू फिल्म है। ईशान की एक्टिंग तो हम सब ‘बेयॉन्ड द क्लाउड्स’ में देख ही चुके हैं तो सबकी नजर जान्हवी कपूर पर ही थी। साथ ही ये मराठी ब्लॉकबस्टर मूवी ‘सैराट’ की ऑफिशियल एडॉप्शन है इसलिए भी लोग इस शंका में थे कि क्या ये फिल्म सैराट के साथ न्याय कर पाएगी। आइए इस फिल्म का रिव्यू करते हैं और जानते हैं कि क्या ये सैराट के साथ वाकई न्याय कर पाई है।
कहानी- यह फिल्म शुरू होती है उदयपुर की खूबसूरत लोकेशन में, जहां जान्हवी और ईशान दोनों के घर होटल्स है, फर्क ये है कि जान्हवी यानी पार्थवी के घर बड़ा होटल और रिजॉर्ट है और ईशान यानी मधुकर के घर छोटा। दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते हैं, एक-दूसरे को पसंद करते हैं, लेकिन छोटी जाति होने की वजह से पार्थवी के घरवालों को ये रिश्ता मंजूर नहीं इस वजह से दोनों को घर से भागना पड़ता है। उसके बाद उनकी जिंदगी में क्या-क्या होता है ये आपको धड़क में दिखाई देने वाला है।
अब बात करते हैं एक्टिंग की। ईशान को पहले ही बेयॉन्ड द क्लाउड्स देखकर पास कर चुके हैं, इस फिल्म में भी वो सहज लगे हैं, चाहे वो शादी से पहले प्यार का इजहार करने वाला लड़का हो या शादी के बाद एक शादीशुदा आदमी, दोनों ही रोल में ईशान का काम तारीफ के काबिल है। ट्रेलर में देखकर लगा था कि जान्हवी शायद ये रोल दमदार तरीके से ना निभा पाएं क्योंकि हमारे दिमाग में सैराट की रिंकू पहले से मौजूद है, लेकिन जान्हवी ने अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाई है। खासकर घर से भागने के बाद के जो इमोशन्स हैं वो जान्हवी ने बहुत अच्छे से कैरी किए हैं, हालांकि फर्स्ट हाफ में जान्हवी थोड़ी कमजोर लगी हैं, रोमांटिक सीन्स में वो सहज नहीं लगी। यहां तक कि जान्हवी और ईशान भी शुरू में एक दूसरे के साथ सहज नहीं लगे हैं। ईशान के दोस्त बने कलाकार अच्छे लगे हैं। पार्थवी के पापा बने आशुतोष राणा का रोल कन्फ्यूजिंग था, वो बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ते हैं।
'धड़क' के साथ दिक्कत ये है कि हम किरदारों के साथ जुड़ ही नहीं पा रहे हैं, हम इमोशनली अटैच नहीं हो पाते, ना मधुकर से ना पार्थवी से और न ही उन दोनों के प्यार से, इसलिए जब दोनों भागते हैं, तो समझ में नहीं आता भाग क्यों रहे हैं क्योंकि उनके प्यार में कहीं डेप्थ नहीं दिखी थी, लगा अभी तो प्यार की शुरुआत हुई है, बहुत कम जगह ऐसा हुआ है जब हम इमोशनली अटैच हुए हों सीन से, क्योंकि जितनी दर्दनाक कहानी है ये, ऐसे में कम से कम आंखों में आंसू तो आना चाहिए था, लेकिन नहीं आता, हां... फिल्म का एंड देखकर मुंह जरूर खुला रह गया और दिल धक् सा हो गया। भले ही आपने सैराट देखी हो आपको फिल्म का अंत चौंका देगा।
अगर आप इस फिल्म को सैराट के साथ तुलना करते हुए देखेंगे तो शायद थोड़े निराश होंगे, लेकिन जिन्होंने सैराट नहीं देखी है उन्हें ये फिल्म पसंद आएगी। अगर आपने सैराट देखी भी है तो इसे अलग फिल्म समझकर देखियेगा, क्योंकि सैराट क्लास है।
ओवरऑल फिल्म ठीक है, आप एक बार इसे एन्जॉय कर सकते हैं। इंडिया टीवी इस फिल्म को दे रहा है 2.5 स्टार।