- फिल्म रिव्यू: छपाक
- स्टार रेटिंग: 4 / 5
- पर्दे पर: Jan, 10, 2020
- डायरेक्टर: मेघना गुलजार
- शैली: ड्रामा और बायोग्राफी
दिल को छू लेने वाला विषय, कमाल की स्क्रिप्ट, शानदार डायरेक्शन कुल मिलाकर बेहतरीन पैकेज, और क्या चाहिए ...दीपिका...जी हां, वो भी है। मेघना गुलजार के निर्देशन में बनी फिल्म छपाक के लिए ये लाइनें आपको बता देंगी कि आप क्या और क्यों देखने जा रहे हैं।
छपाक से पहचान ले गया... गुलज़ार द्वारा लिखी इस लाइन में मेघना गुलज़ार की फ़िल्म‘छपाक’की पूरी कहानी छिपी है। दीपिका पादुकोण और विक्रांत मेसी की फ़िल्म ‘छपाक’एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की रियल लाइफ़ पर बेस्ड है, जिस पर उनके जान पहचान के एक लड़के ने इसलिए एसिड फेंक दिया क्योंकि उन्होंने उसका प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया था। इस फ़िल्म में दीपिका का नाम मालती है और वो ऐसी लड़की है कि चेहरा ख़राब होने पर भी हिम्मत नहीं हारती। ना सिर्फ़ वो उस लड़के को सज़ा दिलवाती है इसके साथ ही वो देशभर में एसिड की खुली बिक्री पर रोक लगाने के लिए भी लड़ती है।
अब बात करते हैं दीपिका की। पूरी फ़िल्म में आपकी नज़र दीपिका से नहीं हटेगी बावजूद इसके कि उनका चेहरा पर्फ़ेक्ट नहीं है। लेकिन कहते हैं ना असली ख़ूबसूरती भीतर होती है, तभी तो उनकी आँखें उनकी मुस्कुराहट आपका दिल जीतेंगी। जब दीपिका का किरदार ख़ुश होता है आप भी उनके साथ ख़ुश होंगे जब वो दुखी होंगी आप भी दुखी होंगे।
फ़िल्म में आपको कहीं नहीं लगेगा कि आप दीपिका को देख रहे हैं, कई जगह दीपिका बिल्कुल लक्ष्मी अग्रवाल जैसी ही दिख रही हैं, बल्कि दर्शकों के मन में ये सवाल भी आ सकता है फ़िल्म में उनका नाम मालती क्यों किया गया लक्ष्मी ही क्यों नहीं रहने दिया गया?
दीपिका की सात सर्जरी हुई है फ़िल्म में, हर स्टेज में उनका चेहरा बदलता है, प्रोस्थेटिक मेकअप इतना कमाल का हुआ है, और एक-एक चीज़ का इतनी बारीकी से ध्यान रखा गया है कि आप दाद दिए बिना नहीं रह पाएँगे।
विक्रांत मेसी का काम भी कमाल का है। इस फ़िल्म के लिए उन्होंने दस किलो वज़न बढ़ाया है, उनकी और दीपिका की केमिस्ट्री बहुत अच्छी है, जब जब दोनों स्क्रीन पर साथ आते हैं आपकी नज़रें स्क्रीन से हटेंगी नहीं। दीपिका, विक्रांत से काफ़ी सीनियर हैं और उनका रोल भी दीपिका से कम है लेकिन कहीं भी वे दीपिका से कम नहीं लगे हैं।
इस फ़िल्म में मालती की वक़ील बनीं ऐक्ट्रेस मधुरजीत सरगी का काम भी तारीफ़ के क़ाबिल है। इसके अलावा जिस तरह वो मालती का केस लड़ती हैं और उसमें इतने साल लग गए कि उनकी बेटी बच्ची से बड़ी हो गयी वो transaction कमाल का दिखाया गया है।
इस फ़िल्म में एक चीज़ खटकती है जब फ़िल्म की शुरुआत में विक्रांत मेसी एक जर्नलिस्ट से कहते हैं- 'रेप केसेज के आगे एसिड अटैक की पूछ कहाँ है...' जब देश में दोनों ही बड़ी समस्याएं हैं और देश की लड़कियां दोनों ही समस्यायों से जूझ रही हैं तो ऐसे में दोनों का कंपेयर करना कहाँ तक सही है?
फ़िल्म की यूएसपी है कि ये प्रीची होने से बचती है, ये आपको समस्याएं दिखाती है, एसिड अटैक सर्वाइवर का दर्द दिखाती है लेकिन आपको ज्ञान नहीं बांटती। और सबसे बड़ी बात अगर आप सोचते हैं कि एसिड अटैक पीडिता दुखी होकर चेहरा और कमरा बंद करके रोती होंगी तो ऐसा बिल्कुल नहीं है, वो ज़िंदादिल लड़कियां होती हैं हमारी आपकी तरह बल्कि हमसे ज़्यादा हिम्मती। मेघन गुलज़ार को इतनी शानदार फ़िल्म बनाने के लिए बधाई। इसके अलावा फ़िल्म में तीन गाने हैं, महिला केंद्रित में होने के बाद भी तीनों गाने पुरुष की आवाज़ में हैं और तीनों ही कमाल के गाने हैं। फ़िल्म को मज़बूती देते हैं और गुलज़ार के लिरिक्स आपको वैसे भी झकझोर कर रख देंगे। फिल्म का क्लाइमैक्स आपके रोंगटें खड़े कर देगा।
फ़िल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है इसलिए कहीं कहीं डॉक्यू ड्रामा जैसी लगने लगी है और लम्बी भी लग रही है। लेकिन इस तरह की कहानी कहने के लिए कहीं ना कहीं ये ज़रूरी भी था। इंडिया टीवी की तरफ से इस फिल्म को 4 स्टार।