- फिल्म रिव्यू: बाग़ी 3
- स्टार रेटिंग: 2 / 5
- पर्दे पर: 6 मार्च 2020
- डायरेक्टर: अहमद खान
- शैली: एक्शन-ड्रामा
मूवी रिव्यू: ये कहानी आगरा में रहने वाले दो भाईयों की है, एक भाई माचो मैन है जिसका नाम है रॉनी (टाइगर श्रॉफ) तो दूसरा भाई है विक्रम (रितेश देशमुख) जो थोड़ा दब्बू और डरपोक है। अब डरपोक भाई बन गया पुलिसवाला और दूसरा भाई जिसपर 32 केस चल रहे हैं वो अपने भाई की रक्षा करता है, उसके पुलिसवाले सारे काम भी वही करता है। यहां तो फिर भी ठीक था लेकिन अब विक्रम सीरिया में बंदी हो गया है और रॉनी दुनिया के नक्शे से सीरिया को मिटाने पहुंच जाता है।
फिल्म की शुरुआत से ही लॉजिक गायब है जो पूरी फिल्म खत्म होने के बाद भी नहीं आता है। एक तो अकेले एक इंसान का जैश-ए- लश्कर से लड़ना हमें हजम नहीं होता है। उस पर एक सीन है जहां टाइगर श्रॉफ कैप्टन अमेरिका बनकर सारी गोलियां शील्ड से बचा लेते हैं और सारे आतंकियों की गोली एक साथ खत्म हो जाती है और ठीक उसी वक्त टाइगर शील्ड साइड फेंकते हैं और हाथापाई करने लगते हैं। कई सारी तोपें-चॉपर्स एक अकेले टाइगर को निशाना बनाती हैं लेकिन एक टाइगर तो टाइगर हैं उन्हें एक भी खरोंच नहीं आती है।
इतना ही नहीं गाड़ियां बम से उड़ रही हैं लेकिन रॉनी को कुछ नहीं होता है, एक जगह तो बम उड़ता है और रॉनी इस बार बम के साथ उड़कर चॉपर पर लटक जाता है। आप सोच में पड़ जाते हैं कि चल क्या रहा है?
पूरी फिल्म में दिखाया गया है कि रॉनी अपने भाई के लिए कुछ भी कर सकता है। वो कहता है- मुझ पर आती तो मैं छोड़ देता लेकिन भाई पर आई तो फोड़ देता हूं। लेकिन कहीं भी आप दोनों भाईयों के बीच के इमोशन को फील नहीं कर पाएंगे। दोनों का रिश्ता कितना मजबूत है ये सब आप पूरी फिल्म में नहीं फील कर पाएंगे।
अबू जलाल जो लोगों को किडनैप करवाकर उन्हें सुसाइड बॉम्बर बना रहा है। वो ऐसा क्यों कर रहा है उसका मकसद क्या है... फिल्म में इस बारे में कोई बात नहीं की गई है। बल्कि फिल्म में तो ऐसा दिखाया गया है कि जितने भी सुसाइड बॉम्बर्स होते हैं सब मासूम होते हैं।
आईपीएल का रोल निभाने वाले जयदीप अहलावत के बारे में क्या कहा जाए... पूरी फिल्म में वो मासूमों को पकड़-पकड़कर सीरिया भेजते रहे और अंत में उनके अंदर का इंसान कब और कैसे जाग जाता है समझ नहीं आता और वो अपनी जान देकर मासूमों की जान बचा लेता है।
टाइगर श्रॉफ हर बार एक्शन रोल में नजर आते हैं इसमें भी वो यही कर रहे हैं। एक्शन के अलावा कुछ इमोशनल सीन उनके हिस्से आए हैं जो उन्होंने चलते ढंग से किए हैं। रितेश पर तरस आता है कि पूरी फिल्म में सिर्फ रॉनी रॉनी करने के अलावा उन्हें कुछ करने को मिला नहीं, क्लाईमैक्स में जरूर उनको थोड़ा सा काम दे दिया गया।
हालांकि रितेश की कॉमिक टाइमिंग अच्छी है और कॉमेडी सीन में वो जंचे हैं। श्रद्धा कपूर फिल्म के पास भंकस गाने के अलावा कुछ खास था नहीं करने का... एक-दो सीन में उन्हें रोने का मौका मिला है लेकिन वहां भी उनका रोना देखकर आपको हंसी आ जाएगी।
अंकिता लोखंडे को आपने मणिकर्णिका फिल्म में अच्छा काम करते देखा था लेकिन इस फिल्म में उनके पास कोई खास काम नहीं है। विजय वर्मा फिल्म में अच्छे पाकिस्तानी के रोल में हैं जो टाइगर की मदद करता है लेकिन उनका एक्सेंट पाकिस्तानी नहीं लगता है।
अगर आप टाइगर के फैन हैं एक्शन फिल्में पसंद करते हैं तो ये फिल्म देख सकते हैं। क्योंकि लॉजिक के बिना आप एक्शन देखेंगे तो आपको फिल्म ठीक-ठाक लगेगी। इसके अलावा कुछ कॉमेडी सीन भी अच्छे हैं जो रितेश देशमुख और सतीश कौशिक के हिस्से आए हैं। इंडिया टीवी इस फिल्म को देता है 5 में से 2 स्टार।