- फिल्म रिव्यू: 72 हूरों
- स्टार रेटिंग: 3 / 5
- पर्दे पर: जुलाई 06, 2023
- डायरेक्टर: संजय पूरण सिंह चौहान
- शैली: क्राइम थ्रिलर
72 Hoorain Review: धर्म के नाम पर लोगों को भड़काना और गलत रास्ते पर ले जाना दुनिया का बहुत आम अपराध बन चुका है। इस अपराध का नाम है जेहाद, जिसे आतंकवादी अपनी दहशत फैलाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। धर्म की आड़ में मासूम और मजबूर लोगों को बड़े-बड़े सपने दिखाना और उनसे बेगुनाह लोगों का कत़्ल-ए-आम करवाना... यह देश में आम हो गया है। निर्देशक संजय पूरण सिंह की फिल्म '72 हूरें' आज रिलीज हो चुकी है। फिल्म में व्यंग्य के अंदाज में आतंकवादियों पर कड़ा प्रहार किया गया है। तो आइए जानते हैं कि कैसी है ये फिल्म...
कैसी है कहानी
फिल्म की कहानी अनिल पांडेय ने लिखी है और इसे लिखते हुए इस बात का खास ख्याल रखा गया है कि किसी की धार्मिक भावनाएं आहत न हों। यह कहानी हाकिम (पवन मल्होत्रा) और साकिब (आमिर बशीर) नाम के दो युवकों की कहानी है। जो एक मौलाना की बातों में आकर जेहाद करने निकल पड़ते हैं और मुंबई के गेट वे ऑफ इंडिया पर आत्मघाती हमला करने के लिए तैयार हो जाते हैं। मौलाना उन्हें लालच देता है कि वह जब जेहाद के बाद जन्नत जाएंगे तो उनका वहां खूब स्वागत सत्कार होगा, 72 हूरें उन्हें मिलेंगी। उनके अंदर 40 लोगों की ताकत आ जाएगी। अल्लाह के फरिश्ते उनका साया बनकर घूमेंगे।
लेकिन सच कुछ और ही निकलता है जब ये दोनों मर जाते हैं तो इनकी रूह उस सच का सामना करती है जो मौलाना की बातों से पूरी तरह जुदा थी। वहीं उनके शवों को भी नमाज तक नसीब नहीं होती। उन्हें लगता है कि अगर शायद नमाज के साथ उनका जनाजा हो तब जन्नत के दरवाजे खुलें। इस बीच 169 दिन गुजरते हैं और इन दो जिहादियों की रूह के साथ क्या कुछ होता है यह देखने के लिए आपको सिनेमाहॉल जाना होगा।
ब्रेनवॉशिंग के गेम पर है फोकस
फिल्म में काफी अच्छे से यह दिखाया गया है कि लोगों को किस तरह आतंकवाद की आग में झोंक दिया जाता है। उनके मासूम मन और दिमाग को कैसे बहलाया फुसलाया जाता है। कैसे उनकी ब्रेनवॉशिंग की जाती है? लेकिन इस हिंसा के खेल का अंजाम क्या हो सकता है। ऐसे ही जवाब देने वाली फिल्म है '72 हूरें'। जो बड़े ही आसानी से आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दे को उठाती है।
गजब है डायरेक्शन और सिनेमैटोग्राफी
इस फिल्म के निर्देशन की बात करें तो संजय पूरण सिंह ने फिल्म की कहानी के साथ पूरा न्याय किया है। फिल्म में कुछ सीन दिल झकझोरने वाले हैं। जहां एक महिला आत्महत्या करने जाती है और उसकी मां उसे बताती है कि यह कितना बड़ा गुनाह है, ये बात सुनते हुए आत्मघाती आतंकियों की भटकती रूह पर क्या असर होता है। वहीं डायरेक्शन में बम ब्लास्ट के सीन को ऐसा दिखाया गया है कि आप हिल जाएंगे। निर्देशक ने फिल्म के हरेक सीन, हरेक फ्रेम पर ख़ूब मेहनत की है और पर्दे पर उनकी कहानी कहने का दिलचस्प अंदाज दर्शकों के रौंगटे खड़े करने के लिए काफी है।
ब्लैक एंड व्हाइट का लुत्फ
सिनेमा लवर्स के लिए इस फिल्म में खास बात यह भी है कि बढ़िया VFX के साथ आपको ब्लैक एंड व्हाइट सिनेमा का लुत्फ मिलेगा। फिल्म का ज्यादातर हिस्सा आपको ब्लैक एंड व्हाइट में देखने को मिलता है। यह भटकती रूहों के हिसाब से परफेक्ट आइडिया था।
अभिनय की बात करें तो पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने उम्दा काम किया है। पूरी फिल्म दोनों कलाकारों के इर्द-गिर्द घूमती है और दोनों ही कलाकारों ने अपने बेहतरीन अभिनय से फिल्म के स्तर को और ऊंचा उठा दिया है।