- फिल्म रिव्यू: Pyaar Ka Punchnama 2
- स्टार रेटिंग: 1.5 / 5
- पर्दे पर: OCT 16, 2015
- डायरेक्टर: लव रंजन
- शैली: कॉमेडी
लव रंजन जिन्होंने फिल्म ‘प्यार का पंचनामा’ से बतौर निर्देशक पहचान बनाई थी अपनी तीसरी फिल्म ‘प्यार का पंचनामा 2’ से दोबारा दर्शकों को गुदगुदाने आ गए हैं। वहीं अगर याद हो तो उन्होंने 2013 में फिल्म ‘आकाश वाणी’ के जरिए शादी पर एक गंभीर रोशनी डाली थी। इसको देखकर उनसे उम्मीदें लगाई जा रही थीं कि अपनी आगामी फिल्म में भी वो कुछ ऐसा ही करेंगे। हालांकि ‘पंचनामा’ की शैली कॉमेडी थी, लेकिन यह सीक्वल उतना मजा नहीं दे पाया। निर्देशक अगर चाहते तो वो काफी फेरबदल कर सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बावजूद इसके फिल्म में आपका मनोरंजन करने के लिए काफी कुछ है।
फिल्म की कहानी आपको पहले भाग की ही याद दिलाएगी। अंशुल (कार्तिक आर्यन), सिद्धार्थ (सनी सिंह निज्जर) और तरुण (ओमकपूर ठाकुर) तीन दोस्त हैं जिनमें से सिर्फ तरुण ही नौकरी करता है। किसी भी ‘गैंग ऑफ ब्वायज’ की तरह उनकी जिंदगी भी मस्त चल रही होती है, जब तक इसमें तीन लड़कियों की एंट्री नहीं होती। अंशुल कायल हो जाता है चीकू (नुसरत बरूचा) की खूबसूरती का, सिद्धार्थ को सुप्रिया (सोनली सेहगल) की शरारत मोह लेती है वहीं तरुण का दिल कुसुम (इशिता शर्मा) चुरा लेती है। तीनों लड़कों को अपनी जिंदगी पूरी लगने लगती है लेकिन जल्द ही उनकी ये गलतफहमी दूर होती है।
धीमे-धीमे इनकी प्रेमिकाएं इनपर अपना हक जमाने लगती हैं और देखते ही देखते इनकी जिंदगी की कमान इन लड़कियों के हाथों में आ जाती है। जल्द ही तीनों लड़कों को एहसास हो जाता है कि प्यार जैसा रिश्ता गुलाबों के साथ-साथ कांटों की सौगात भी लाता है। अब इस रिश्तें से वो कैसे छुटकारा पाते है प्यार के पंचनामा 2 इसे हंसी-मजाक के साथ आपके सामने पेश करता है, जो नए पैकट में पुराने माल की तरह है।
फिल्म की सबसे बड़ी खामी इसकी कहानी ही है जिसमें नया कुछ भी नहीं हैं। प्यार, फर्स्ट डेट, हॉली-डे, तकरार, महिला वर्ग की बुराई- प्यार का पंचनामा 2 इन्ही चीजों को दोहराती है। दूसरी बात जो शायद महिला वर्ग को ठीक न लगे, वो है फिल्म में पुरुषों का ही पक्ष लेना। सभी चीजें पुरुष के नजरिए से ही दिखाई गई हैं, जैसाकि पहले भी दिखाया गया था, हालांकि कुछ चीजे सही हैं और कुछ गलत और उसका फैसला अगर हम महिलाओं पर छोड़ दें तो बेहतर।
इसके बावजूद फिल्म आपको हंसाती है और रिश्तों के बड़े फैसले लेने से पहले विचार-विमर्श करने की सीख देती है। फिल्म को मनोरंजक बनाते हैं इसके कलाकार और इसमें सबसे पहले नाम आता है कार्तिक का जिनका 8 मिनट लंबा नॉन-स्टाप भाषण आपकी सीटियां और तालियां बटोरेगा। सनी सिंह को दिव्येंदू शर्मा की जगह लाया गया था, लेकिन अपने ही अंदाज में सनी अपनी एक जगह बनाते हैं वहीं ओमकर कपूर इन दोनों के मुकाबले कम नही हैं।
अभिनेत्रियों में नुसरत बरूचा फिर से खूब नखरे वाले किरदार को जीती हैं और उसमें छा जाती हैं। इशिता राज रुपयों का हिसाब रखनेवाली एक इंडिपेंडेंट वुमन के किरदार में अच्छा अभिनय करती हैं। सोनाली सेहगल परिवार से बंधी हुई, लेकिन शराब और सिगरेट पीने वाली एक महिला का किरदार भी अच्छे से निभाती हैं।
फिल्म के गीतों (जिसे दिया है तोषी सिंह ने) पर काम किया जा सकता था, क्योंकि फिल्म में एक भी ऐसा गाना नहीं है, जो आपको याद रहे। लव रंजन द्वारा लिखे गए फिल्म के डायलॉग्स हास्य से भरपूर हैं और ये ही फिल्म की यूएसपी है जो अंत तक समां बांधते हैं। सही मायने में इसी की वजह से और अच्छी एक्टिंग के लिए ये फिल्म देखी जा सकती है।