- फिल्म रिव्यू: 102 नॉट आउट
- स्टार रेटिंग: 3.5 / 5
- पर्दे पर: 4 मई 2018
- डायरेक्टर: उमेश शुक्ला
- शैली: कॉमेडी-ड्रामा
पिछला साल सिने प्रेमियों के लिए कुछ खास नहीं रहा, लेकिन इस साल बॉलीवुड में ऐसी फिल्में आ रही हैं, जिनकी कहानियां वाकई अच्छी हैं। अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर की फिल्म '102 नॉट आउट' भी उनमें से एक है। किसने सोचा था कि बिना एक्ट्रेस और बिना नाच-गाने और बिना एक्शन सीन के सिर्फ दो बूढ़े लोगों को लीड रोल में रखकर बॉलीवुड में फिल्म बनाई जा सकती है।
अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर की फिल्म '102 नॉट आउट' पिता और बेटे की कहानी है, दोनों ही बूढ़े हो चुके हैं लेकिन जिंदगी को देखने का नजरिया दोनों का बिल्कुल अलग-अलग है। निर्देशक उमेश शुक्ला की 102 नॉट आउट एक गुजराती नाटक पर आधारित है। फिल्म की कहानी सौम्य जोशी ने लिखी है, जो 3 इडियट्स और संजू की स्क्रिप्ट लिखने वाले अभिजात जोशी के भाई हैं।
कहानी- फिल्म की कहानी मुंबई में रहने वाले 102 साल के दत्तात्रेय जगजीवन वखारिया (अमिताभ बच्चन) और उनके 75 साल के बेटे बाबूलाल दत्तात्रेय वखारिया (ऋषि कपूर) की है। बाबूलाल अपने बुढ़ापे को स्वीकार कर चुका है और एक अच्छे बुजुर्ग की तरह नियमित डॉक्टर के पास जाता है, और समय से खाना और नहाने का काम करता है, वहीं दूसरी तरफ उसके पिता 102 साल के हैं, मगर उनका दिल अभी भी 26 साल के युवा जैसा है। वो चीन के रहने वाले ओंग चोंग तुंग का रिकॉर्ड तोड़ना चाहते हैं जिसके पास 118 साल तक जीने का वर्ल्ड रिकॉर्ड है। उसे लगता है कि उसका बेटा बहुत बोरिंग है और ऐसे लोगों के साथ रहकर वो यह रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाएगा, इसलिए वो अपने बेटे को वृद्धाश्रम भेजने का प्लान बनाता है। साथ ही जगजीवन अपने बेटे बाबू के सामने कुछ शर्तें रखता है कि अगर वह वृद्धाश्रम नहीं जाना चाहता तो इन शर्तों को पूरा करे। क्या बाबू अपने पिता की शर्तें मानेगा? या फिर उसे वृद्धाश्रम जाना पड़ेगा? क्या जगजीवन दत्तात्रेय वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ पाएगा? ये सब जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
खास बात यह है कि पूरी फिल्म में आपको सिर्फ 3 किरदार दिखाई देंगे, एक जगजीवन दत्तात्रेय का, एक बाबूलाल दत्तात्रेय का और तीसरा किरदार है धीरू (जिमित त्रिवेदी) का, जो एक मेडिकल शॉप में काम करता है और उनके घर आता रहता है।
फिल्म शुरूआत में थोड़ी स्लो लग सकती है, लेकिन एक बार आप फिल्म की लय में मिल जाएंगे उसके बाद आपको यह फिल्म लगातार बांधे रखेगी। जिंदगी को जिंदादिल तरीके से जीना सिखाएगी। फिल्म के कई सीन आपको इमोशनल कर देंगे, तो कई आपको दिल खोलकर हंसने पर मजबूर कर देंगे। फिल्म देखने के बाद कई लोग अपने बेटे तो कई अपने मां-बाप को फोन मिलाते नजर आएंगे।
इस फिल्म में एक्टिंग पर बात करना बेमानी होगा क्योंकि स्क्रीन पर दो दिग्गज सितारे थे, एक तरफ अमिताभ बच्चन तो एक तरफ ऋषि कपूर। लेकिन ऋषि कपूर ने जिस हाव-भाव के साथ एक्टिंग की है आप उनके एक बार फिर से फैन हो जाएंगे।
इस फिल्म को देखने के बाद आपको लगेगा पिता हमेशा पिता होता है, और वो अपने बच्चों को अच्छे से जानता है, भले ही उसकी उम्र 102 साल की क्यों ना हो?
फिल्म की रफ्तार कम है लेकिन आप इसे एन्जॉय करेंगे। यह फिल्म जरूर देखिए, और अपने मां-बाप को भी दिखाइए। मेरी तरफ से इस फिल्म को 3.5 स्टार।