ओम पुरी किसी पहचान की मोहताज नहीं है। वह हिंदी सिनेमा के मोस्ट टैलेंटेड एक्टर्स में से एक थे, जिन्हें उनकी शानदार और यादगार परफॉर्मेंस के लिए याद किया जाता है। वह अपने अलग-अलग किरदारों के लिए फेमस हैं। उन्होंने विलेन से लेकर कॉमेडी तक हर रोल में अपनी दमदार एक्टिंग से लोगों का दिल जीता है। ओम पुरी का बचपन बहुत ही कठिनाइयों में बीता है। फिल्म इंडस्ट्री में उन्होंने अपने चेहरे और भारी आवाज से एक अलग पहचान बनाई। ओम पुरी ने अपना फिल्मी करियर कन्नड़ सिनेमा से शुरू किया था। उनकी पहली फिल्म 'कल्ला कल्ला बचितको' थी, जो 1975 में आई थी। एक्टर को बॉलीवुड में उनकी फिल्म 'अर्ध सत्य', 'आक्रोश' और 'जाने भी दो यारों' में शानदार अभिनय के लिए जाना जाता है।
जाने भी दो यारों (1983): 'जाने दी भी यारों' के महाभारत वाले सीन में अपनी हंसी रोक पाना लगभग मुश्किल है। गंभीर भूमिकाएं निभाने के लिए मशहूर ओम पुरी ने कुंदन शाह की इस फिल्म में अपने अभिनय से सभी को चौंका दिया। 'जाने भी दो यारों में' बिल्डर आहूजा के रूप में ओम ने लोगों को खूब गुदगुदाया और आज भी यह फिल्म सिनेमा में उनकी सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक है।
ईस्ट इज ईस्ट (1999): वे उन चंद बॉलीवुड अभिनेताओं में से एक थे, जिन्होंने 'सिटी ऑफ जॉय' जैसी फिल्मों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। लेकिन, डेमियन ओ'डॉनेल की ब्रिटिश फिल्म 'ईस्ट इज ईस्ट' ने उन्हें लीड एक्टर में अपना पहला बाफ्टा नामांकन दिलाया। फिल्म में ओम पुरी ने एक पाकिस्तानी पिता की भूमिका निभाई, जिसे विदेशी धरती पर अपने बच्चों को पालने की परेशानी से जूझना पड़ता है।
गुप्त (1997): सस्पेंस थ्रिलर में एक अडिग और दृढ़ पुलिस अधिकारी की भूमिका के लिए ओम पुरी को खूब सराहना मिली।
अर्ध सत्य (1983): गोविंद निहलानी की यह फिल्म ईमानदार पुलिस अधिकारी ओम पुरी के संघर्ष को दिखाती है, जिसमें वह भ्रष्ट व्यवस्था और भीतर की लड़ाई से लड़ता है। 'अर्ध सत्य' ने उन्हें लगातार दूसरे साल राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया।
पार (1984): मुख्य रूप से नसीरुद्दीन शाह और शबाना आजमी की फिल्म 'पार' में भी ओम पुरी ने लीड रोल प्ले किया थी। फिल्म में 80 के दशक में बिहार में शोषण को उजागर किया।
आरोहन (1982): 'आरोहन' ने ओम पुरी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया। उन्होंने एक उत्पीड़ित किसान की भूमिका निभाई थी जो एक अमीर जमींदार (विक्टर बनर्जी) के साथ जमीन के एक टुकड़े के लिए 14 साल तक संघर्ष करता है, जिस पर उसका हक है।
मिर्च मसाला (1987): केतन मेहता की इस फिल्म में ओम पुरी ने एक बूढ़े मुस्लिम दरबान की भूमिका निभाई थी जो सोनाभाई (स्मिता पाटिल) की मदद करता है।
आक्रोश (1980): गोविंद निहलानी की इस आर्टहाउस फिल्म को आलोचकों और दर्शकों से खूब सराहना मिली। इस कानूनी ड्रामा फिल्म में ओम पुरी को एक अछूत के रूप में दिखाया गया है, जिस पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप है।
सद्गति (1981): सत्यजीत रे की यह फिल्म भारतीय जाति व्यवस्था पर एक क्रूर आरोप है, जिसमें ओम पुरी को जाति से बहिष्कृत दिखाया गया है। उनके शानदार अभिनय की आलोचकों ने खूब सराहना की।