70 और 80 के दशक मेंलक्ष्मीकांत कुडालकर और प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा लोकप्रिय संगीतकार जोड़ी में से थे। उन दोनों ने मिलकर जो संगीत लोगों के सामने रखा वो आज हमारे लिए किसी धरोहर से कम नहीं है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि अपने करियर की शुरुआत उन दोनों ने आर्केस्ट्रा में इंस्ट्रूमेंट बजा कर किया था? एक आर्केस्ट्रा में बजाने वाले कलाकार कैसे इतने बड़े संगीतकार बन गए इसके पीछे की मजेदार कहानी हम आपके साथ साझा करने वाले हैं। आइए जानते हैं-
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आर्थिक तंगी के कारण छोड़नी पड़ी थी पढ़ाई
प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा जी के पिता ट्रंपेट बजाते थे। उन्हीं की वजह से ही प्यारेलाल ने म्यूजिक सीखने की शुरुआत की थी। म्यूजिक के लिए दीवानगी ने उन्हें वायलिन सीखने पर मजबूर किया। महज 8 साल की उम्र से ही वो 12-12 घंटे का रियाज करते थे। जब वो 12 साल के हुए तो घर में आर्थिक तंगी के कारण उन्हें पढ़ाई छोड़ काम करना चुना। वो स्टूडियो-स्टूडियो जाकर वायलिन बजाते थे।
गुरु की मदद से मिला आर्केस्ट्रा में काम
उस समय प्यारेलाल के गुरु एंथनी गोनजालवेज बॉम्बे ऑर्केस्ट्रा, कूमी वालिया, मेहील मेहता और उनके बेटे ज़ुबिन मेहता आदि के लिए ऑर्केस्ट्रा में वॉइलिन बजाया करते थे। उनकी बदौलत प्यारेलाल जी को आर्केस्ट्रा में वॉइलिन बजाने के लिए कुछ रुपये मिल जाते थे। उन रुपये की वजह से उनको गुजर-बसर करने के साथ साथ सुरील कला केंद्र में संगीत सीखने लायक रुपये बचा लेते थे।
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ऐसे हुई लक्ष्मीकांत से दोस्ती
सुरील कला केंद्र, लता मंगेशकर के परिवार द्वारा चलाई जाती थी। यहीं पर उनकी मुलाकात लक्ष्मीकांत जी से हुई। दोनों की उम्र में 4 साल का अंतर था। प्यारेलाल जी जहां 12 साल के थे वहीं लक्ष्मीकांत जी 16 साल के, लेकिन दोनों की आर्थिक तंगी ने उन्हें पक्का दोस्त बना दिया। लता मंगेशकर को जब इस बात की खबर लगी तो उन्होंने बॉलीवुड के फेमस संगीतकारों को उनके आर्केस्ट्रा में म्यूजिक प्ले करने के लिए उनका नाम भेजना शुरू किया।
इनमें नौशाद साहब, सचिन देव बर्मन, सी रामचंद्र, कल्याणजी-आनंदजी शामिल थे। हालांकि उन्हें इन संगीतकारों के पास रोज काम नहीं मिलता था इसलिए वो अभी अभी स्टूडियो दर स्टूडियो बजाते हुए स्ट्रगल कर रहे थे।
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मुंबई से तंग आकर विदेश जाना चाहते थे प्यारेलाल जी
बॉम्बे में इतनी मेहनत के बाद प्यारेलाल जी तंग आ गए थे। उन्होंने लक्ष्मीकांत जी से कहा कि वो विदेश जाना चाहते थे। लक्ष्मीकांत जी ने उन्हें सीधा मना कर दिया और कहा कि हम यहीं कुछ करेंगे। धीरे धीरे दोनों को बॉलीवुड में काम मिलने लगा। 7 साल की मेहनत के बाद उन्हें बाबूभाई मिस्त्री की फिल्म पारसमणि (1963) में उन्हें संगीतकार के तौर पर काम करने का मौका मिला। दोनों के बीच तय हुआ कि लक्ष्मीकांत जी कम्पोज करेंगे और प्यारेलाल म्यूजिक अरेंज करेंगे। पहली फिल्म के गाने लोगों द्वारा इतने पसंद किए गए कि फिल्म भी सुपरहीट बन गई। इसके बाद दोनों लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जोड़ी के नाम से पहचाने जाने लगे।