बॉलीवुड के सदाबहार अभिनेता देव आनंद ने अपनी अदाकारी से करोड़ों दर्शकों का दिल जीता। उन्होंने सिर्फ हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ही काम नहीं किया, बल्कि वो अंग्रेजी सिनेमा में भी अपनी एक्टिंग का जलवा दिखा चुके थे। एक्टर भले ही इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं, हो लेकिन उनकी फिल्में आज भी लोग बड़े मन से देखते हैं। इस साल एक्टर के जन्म को 100 साल पूरे होने वाले हैं। दिवंगत अभिनेता देव आनंद की जन्मशती के इस मौके पर इस महीने के अंत में एक फिल्म महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। इसी मौके पर हम आपके लिए उनकी बेमिसाल फिल्मों की लिस्ट लेकर आए हैं।
इस शख्स ने की थी भविष्यवाणी
देव आनंद युवावस्था में अपनी बीमार मां के लिए दवा लेने के लिए गुरदासपुर स्थित अपने घर से अमृतसर गए थे। सफर के दौरान प्यास बुझाने के लिए उन्होंने स्वर्ण मंदिर के पास एक दुकान से एक गिलास गन्ने का रस लिया। जब रस बेचने वाले ने देव आनंद को करीब से देखा, तो कहा कि उनके माथे पर सूरज है, जो उनकी महानता का संकेत देता है। रस बेचने वाली की भविष्यवाणी सच साबित हुई। देव आनंद एक ऐसा सितारा बन गए जो छह दशक से अधिक लंबे करियर में चमकते रहे। अपने आकर्षण, डयलॉग बोलने का तरीका, हल्की टेढ़ी-मेढ़ी चाल, विजयी आकर्षक मुस्कान, सिर हिलाना और कपड़े पहनने के स्टाइल के साथ देव ने अपने करियर में चमक बिखेरी, जो आजादी से पहले शुरू हुआ और 21वीं सदी के दूसरे दशक तक चला।
ये बाते बनाती थी देव आनंद को अलग
देव आनंद ने 1950 के दशक में हिंदी सिनेमा के शीर्ष तीन नायकों में शामिल अपने साथी दिलीप कुमार और राज कपूर को पीछे छोड़ दिया। दिलीप कुमार और राज कपूर उम्र में एक साल के छोटे बड़े थे। इन्होंने लगभग 70-70 फिल्में कीं, जबकि देव आनंद ने 120 फिल्मों में काम किया। इसके अलावा जो बात देव आनंद को दिलीप कुमार-राज कपूर से अलग करती थी, वह यह थी कि उनकी अधिकांश भूमिकाएं शहरी परिवेश के किरदारों की थी जबकि दिलीप कुमार को देहाती किरदारों को चित्रित करने में कोई परेशानी नहीं थी और राज कपूर की खासियत छोटे शहर के साधारण व्यक्ति का किरदार निभाने की थी।
एंटी-हीरो की भूमिका में आए थे नजर
उन्हें बॉम्बे नायर के नाम से जाना जाने लगा। उन्होंने पारिवारिक ड्रामा या हल्की रोमांटिक कॉमेडी और थ्रिलर वाले किरदार निभाए और यहां तक कि अजीब वेशभूषा वाले तेजतर्रार देव आनंद को भी लोगों ने सराहा। अशोक कुमार ने 'किस्मत' (1943) में एक एंटी-हीरो की भूमिका निभाने की शुरुआत की थी। इसके बाद दिलीप कुमार और राज कपूर दोनों ने भी क्रमशः 'फुटपाथ' (1953) और 'आवारा' (1951) में एंटी-हीरो की भूमिका निभाई थी, लेकिन देव आनंद ने अपने ट्रेडमार्क के साथ अपनी भूमिकाओं में पैनापन ला दिया।
इन फिल्मों से जीता दिल
देव आनंद को 'गाइड' (1965) जैसी बोल्ड थीम और क्राइम फिल्मों जैसे 'ज्वेल थीफ' (1967) के अपने रंगीन लोकेशंस, ग्लैमर और अनएक्सपेक्टेड ट्विस्ट और 'जॉनी मेरा नाम' (1970) जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है, जिसमें खोए हुए भाई-बहनों की कहानी है। फिर 'हरे राम हरे कृष्णा' (1971) है, जो हिप्पी संस्कृति के लिए एक प्रकार का स्वॉन सॉंग है। इसके अलाव उनके प्रदर्शनों की सूची में और भी बहुत कुछ है।
ये हैं देव आनंद की क्लासिक फिल्में
देव आनंद की फिल्में जिन्होंने उन्हें डिफाइन किया उनमें 'हम एक हैं' (1946), 'अफसर' (1950), 'बाजी' (1951), 'इंसानियत' (1955), 'सोलवा साल' (1958), 'गेटवे ऑफ इंडिया' (1957), 'काला पानी' (1958), 'हम दोनों' (1961), 'माया' (1961), 'तीन देवियां' (1965), 'दुनिया' (1968), 'प्रेम पुजारी' (1970), 'तेरे मेरे सपने' (1971) और 'मनपसंद' (1980) आदि हैं।
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