नई दिल्ली: तनिष्ठा चटर्जी एक भारतीय अभिनेत्री है जिन्होनें भारत के साथ-साथ कई अन्य विदेशी फिल्मों में भी अपना महत्तवपूर्ण योगदान दिया है। इतना ही नहीं अपने बेहतरीन अभिनय से उन्होनें अन्य अभिनेत्रियों को पीछे छोड़ अपना अलग मुकाम बनाया है। तनिष्ठा चटर्जी का मानना है कि किसी भी कलाकार को अपनी कला से कभी भी संतुष्ट नहीं होना चाहिए, क्योंकि जिस दिन एक कलाकार अपनी कला से संतुष्ट हो जाता है, उसी दिन से उसकी कला मर जाती है।
तनिष्ठा चटर्जी जागरण फिल्म फेस्टिवल में हिस्सा लेने के लिए आई थीं। 'एंग्री इंडियन गॉडेस' 'शैडोज ऑफ टाइम', 'पाच्र्ड' और 'डॉक्टर रुक्माबाई' जैसी फिल्मों में अपनी अभिनय क्षमता का लोहा मनवाने के बाद भी वह अपने करियर से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं और नए मौकों की तलाश में रहती हैं।
जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा, "मैं अब तक के अपने सफर से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो सकती, क्योंकि एक कलाकार जिस दिन अपनी कला से संतुष्ट हो जाता है, उसी दिन उसकी कला की मौत हो जाती है, इसलिए मैं यह नहीं कह सकती कि मैं अपने अभिनय के सफर से संतुष्ट हूं। मैं नए अवसरों और बेहतरीन किरदारों की तलाश में रहती हूं।"
इस फेस्टिवल में तनिष्ठा की फिल्म 'डॉक्टर रुक्माबाई' प्रदर्शित हुई। फिल्म 'देख इंडियन सर्कस' के लिए न्यूयॉर्क फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का खिताब जीत चुकीं तनिष्ठा ने रुक्माबाई की भूमिका निभाने के लिए अपनी तरफ से पूरी तैयारी की और किरदार के साथ न्याय करने की कोशिश की।
तनिष्ठा ने कहा, "रुक्माबाई भारत की पहली महिला डॉक्टर थीं। उनका निधन 1955 में ही हो जाने के कारण मुझे उनसे मिलने का सौभाग्य तो नहीं मिला, लेकिन अपनी भूमिका की तैयारी के लिए मैंने उनकी बायोग्राफी पढ़ी। उनकी कहानी आकर्षित करती है। वह महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे उनकी भूमिका निभाने का मौका मिला।"
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