मुंबई: जिंदगी चेस के खेल जैसी नहीं होती, मगर कुछ-कुछ चेस की तरह ही होती है। दिमागी खेल (chess) का रोमांच, दमदार अभिनय और घटनाओं का शतरंज की चालों से सामंजस्य बिठाने वाले निदेशक बिजॉय नांबियार का खास अंदाज दर्शकों को खूब भाया। एक सामान्य सी कहानी से शुरु होती फिल्म एक खेल की शक्ल ले लेती है और फिर खेल की चालें एक-एक कर शुरु हो जाती हैं, असली खिलाड़ी का पता बहुत देर में चलता है तब तक एक प्यादा वजीर बन चुका होता है और 64 खानों के खेल में जंग को मुक्कमल करने वाला सिपाही अदना सा मोहरा भर रह जाता है। इन तमाम सस्पेंस से भरी फिल्म वजीर एक देखने लायक फिल्म है, जो यह बताती है कि आखिर क्यों अमिताभ सदी के महानायक हैं। जनता इस फिल्म को 5 में से पांच स्टार दे रही है, ऐसे में आप का भी इस फिल्म को देखना बनता है।
अगर आप फिल्म के पारखी हैं तो यह फिल्म यकीनन आपको पसंद आएगी। अभिजात जोशी और विधु विनोद चोपड़ा की सधी हुई स्क्रिप्ट में अमिताभ और फरहान का अभिनय काबिले तारीफ है। शुरु से लेकर अंत तक फिल्म आपको कहीं भी बोझिल नजर नहीं आएगी। अमिताभ के संवाद और फरहान के चेहरे के हावभाव यह बताने के लिए काफी हैं कि आखिर विधु विनोद चोपड़ा की सालों की मेहनत रंग लाई है। इस फिल्म में अदिति राव हैदरी, जॉन अब्राहम और नील नितिन मुकेश भी हैं लेकिन पूरी फिल्म अमिताभ और फरहान के शानदार अभिनय के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है।
क्या है फिल्म की कहानी:
यह फिल्म एक बहादुर ATS (आतंकवादी निरोधक दस्ता) ऑफिसर दानिश अली की कहानी है। कहानी दानिश अली और रुहाना अली (अदिति राव हैदरी) की शादी से शुरु होती है। फिल्म रफ्तार तब पकड़ती है जब एक दिन दानिश को एक आतंकवादी दिल्ली की सड़कों पर दिखता है। दानिश उसका पीछा करता है पीछा करते करते वो आतंकियों के काफी करीब पहुंच जाता है, लेकिन आतंकी काफी सारी संख्या में होते हैं और वो दानिश की कार पर अंधाधुंध गोलियां बरसाना शुरु कर देते हैं।
इस घटना में दानिश की बेटी की मौत हो जाती है। बेटी की मौत के लिए रुहाना दानिश को जिम्मेदार मानती है और उससे अलग रहने लगती है। इसी बीच दानिश एक दिन कब्रिस्तान पर आत्महत्या करने जा रहा होता है, तभी कहानी के एक और पात्र यानी पंडित ओमकार नाथ धर की एंट्री होती है। दानिश पंडित जी के शतरंज की बिसात का हिस्सा बनते चले जाते हैं और उसे मालूम भी नहीं चलता कि वो अहम मोहरा बन चुके हैं। चेस की चालें एक एक करके शुरु होती हैं और कहानी को आगे बढ़ाती जाती हैं। अंत में पंडित का यही मोहरा इजाद कुरैशी (मंत्री जी) का खून करता है। इसके बाद फिल्म परत-दर-परत खुल जाती है और खेल का असली खिलाड़ी सामने आ जाता है।
फिल्म में दमदार डॉयलॉग:
यह फिल्म दमदार डॉयलाग से भरी है। मसलन
· “जिंदगी और चेस में बस यही अंतर होता है कि चेस में आपको दूसरी बार मौका मिलता है।”
· “पंडित वोदका पीने के बाद महापंडित हो जाता है।”
· “चेस वक्त का खेल है लेकिन इसे खेलने का कोई वक्त नहीं होता।”
फिल्म को कितने स्टार:
दर्शको को यह फिल्म बेहद पसंद आई है। पहले दिन बॉक्स ऑफिस पर फिल्म की कमाई जो भी हो लेकिन यह तय बात है कि पॉजिटिव वर्ड ऑफ माउथ के सहारे फिल्म आने वाले दिनों में बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन करेगी। वैसे तो जनता ने इस फिल्म को 5 सितारे दिए हैं लेकिन यह फिल्म वाकई में 4 और 5 सितारे पाने की हकदार है।