बॉलीवुड 6 अक्तूबर को अपने जमाने के बेहद हैंडसम और उम्दा अभिनेता विनोद खन्ना Vinod Khanna की बर्थ एनिवर्सरी मना रहा है। विनोद खन्ना की शख्सियत और अदाकारी के बारे में एक ही बात कही जा सकती है कि उनमें बॉलीवुड का महानायक बनने की क्षमता थी। हालांकि विडंबना रही कि अपने करियर के शिखर पर संन्यास लेकर विनोद खन्ना इंडस्ट्री से गायब हो गए। अगर वो इडंस्ट्री को न छोड़ते तो शायद उनका रुतबा भी महानायक अमिताभ बच्चन Amitabh Bachchan के समकक्ष होता।
देखा जाए तो विनोद खन्ना ने साठ के दशक में अमिताभ बच्चन के साथ ऐसी सुपरहिट जोड़ी बनाई जो फिल्म निर्माता के लिए सुपरहिट फिल्म की गांरटी के समान थी। दोनों की जोड़ी ने एक के बाद एक लगातार दस फिल्में दी।अमिताभ के फैंस भी इस बात से इनकार नहीं कर पाते कि इन सभी फिल्मों में विनोद खन्ना कहीं भी अमिताभ जैसे सुपरस्टार से उन्नीस नहीं दिखे। बल्कि फिल्मों को बारीकी से देखने वाले इस बात से भी इनकार नहीं करेंगे कि विनोद खन्ना कई बार कई जगहों पर अमिताभ से ज्यादा स्क्रीन प्रेजेंस ले गए। परवरिश में बिगड़ैल बेटे की अदावत हो या मुकद्दर का सिकंदर में हीरोइन की वरीयता पाने वाला हीरो। दर्शकों की आंखों ने विनोद खन्ना को भी उतना ही सरारा जितना अमिताभ को।
70 के दशक में सफलता के शिखर पर बैठे विनोद खन्ना अगर ओशो की शरण में जाने का फैसला न करते तो शायद नजारा कुछ और होता। उनकी अदाकारी और उनका स्टारडम उन्हें सुपरस्टार बनाने के लिए तैयार था लेकिन 1982 में विनोद खन्ना ने तुरंत फैसला करके इंडस्ट्री छोड़ दी। ये वो समय था जब बॉलीवुड उनकी दो सुपरहिट फिल्मों कुर्बानी औऱ द बर्निंग ट्रेन की कायमाबी पर जश्न मना रहा था।
उधऱ अमिताभ अपने मिजाज के अनुसार लगातार मेहनत की बदौलत कामयाबी के पायदान चढ़ते गए। वो दौर जब विनोद खन्ना ओशो के आश्रम में पौधे लगा रहे थे, अमिताभ लगातार फिल्में करके अपनी कामयाबी की नींव को मजबूत कर रहे थे। ये समय ही निर्णायक रहा औऱ वक्त सुपरस्टार किसी एक को ही बनाता है, ये कहावत कायम रही।
खैर 1987 में विनोद खन्ना फिर लौटे और सौभाग्य वश उन्होंने बेहतरीन फिल्मों को चुनने का हुनर गंवाया नहीं था। उनके लौटते ही उन्हें इंसाफ और दयावान के तौर पर अच्छी फिल्में मिली और ये वो दौर था जब संयोगवश अमिताभ बच्चन की फिल्में कुछ खास नहीं कर पा रही थी।
बॉलीवुड में लौटने के बाद भी विनोद खन्ना औऱ अमिताभ के रिश्ते बहुत बेहतर रहे। कई पत्रकारों ने दोनों के बीच प्रतिद्वंदिता की बात की लेकिन हर बार विनोद खन्ना और अमिताभ ने इसे सिरे से नकार दिया। कुछ सालों बाद विनोद खन्ना का झुकाव राजनीति की तरफ हुआ औऱ उन्होंने बीजेपी का साथ देना मंजूर किया। हालांकि राजनीति में रहते हुए विनोद खन्ना ने स्क्रीन से नाता नहीं तोड़ा और अपने चहेते सलमान खान की फिल्म दबंग Dabangg में उन्होंने चुलबुल पांडे के पिता का रोल करना स्वीकार किया।