Monday, December 23, 2024
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अदाकारी और स्क्रीन प्रेजेंस में अमिताभ बच्चन को टक्कर देते थे विनोद खन्ना, ये फिल्में हैं गवाह

कई फिल्में ऐसी रहें जिसमें विनोद खन्ना ने अमिताभ बच्चन को टक्कर दी। दोनों की कई सुपरहिट फिल्में इस लाजवाब जोड़ी की अदाकारी की गवाह रही हैं।

Edited by: Vineeta Vashisth
Updated : October 05, 2019 17:52 IST
vinod khanna
Image Source : GOOGLE vinod khanna

बॉलीवुड 6 अक्तूबर को अपने जमाने के बेहद हैंडसम और उम्दा अभिनेता विनोद खन्ना Vinod Khanna की बर्थ एनिवर्सरी मना रहा है। विनोद खन्ना की शख्सियत और अदाकारी के बारे में एक ही बात कही जा सकती है कि उनमें बॉलीवुड का महानायक बनने की क्षमता थी। हालांकि विडंबना रही कि अपने करियर के शिखर पर संन्यास लेकर विनोद खन्ना इंडस्ट्री से गायब हो गए। अगर वो इडंस्ट्री को न छोड़ते तो शायद उनका रुतबा भी महानायक अमिताभ बच्चन Amitabh Bachchan के समकक्ष होता। 

vinod khanna and amitabh bachchan

vinod khanna and amitabh bachchan

देखा जाए तो विनोद खन्ना ने साठ के दशक में अमिताभ बच्चन के साथ ऐसी सुपरहिट जोड़ी बनाई जो फिल्म निर्माता के लिए सुपरहिट फिल्म की गांरटी के समान थी। दोनों की जोड़ी ने एक के बाद एक लगातार दस फिल्में दी।अमिताभ के फैंस भी इस बात से इनकार नहीं कर पाते कि इन सभी फिल्मों में विनोद खन्ना कहीं भी अमिताभ जैसे सुपरस्टार से उन्नीस नहीं दिखे। बल्कि फिल्मों को बारीकी से देखने वाले इस बात से भी इनकार नहीं करेंगे कि विनोद खन्ना कई बार कई जगहों पर अमिताभ से ज्यादा स्क्रीन प्रेजेंस ले गए। परवरिश में बिगड़ैल बेटे की अदावत हो या मुकद्दर का सिकंदर में हीरोइन की वरीयता पाने वाला हीरो। दर्शकों की आंखों ने विनोद खन्ना को भी उतना ही सरारा जितना अमिताभ को। 

vinod khanna in OSHO

vinod khanna in OSHO

70 के दशक में सफलता के शिखर पर बैठे विनोद खन्ना अगर ओशो की शरण में जाने का फैसला न करते तो शायद नजारा कुछ और होता। उनकी अदाकारी और उनका स्टारडम उन्हें सुपरस्टार बनाने के लिए तैयार था लेकिन 1982 में विनोद खन्ना ने तुरंत फैसला करके इंडस्ट्री छोड़ दी। ये वो समय था जब बॉलीवुड उनकी दो सुपरहिट फिल्मों कुर्बानी औऱ द बर्निंग ट्रेन की कायमाबी पर जश्न मना रहा था। 

उधऱ अमिताभ अपने मिजाज के अनुसार लगातार मेहनत की बदौलत कामयाबी के पायदान चढ़ते गए। वो दौर जब विनोद खन्ना ओशो के आश्रम में पौधे लगा रहे थे, अमिताभ लगातार फिल्में करके अपनी कामयाबी की नींव को मजबूत कर रहे थे। ये समय ही निर्णायक रहा औऱ वक्त सुपरस्टार किसी एक को ही बनाता है, ये कहावत कायम रही। 

dayavaan

dayavaan

खैर 1987 में विनोद खन्ना फिर लौटे और सौभाग्य वश उन्होंने बेहतरीन फिल्मों को चुनने का हुनर गंवाया नहीं था। उनके लौटते ही उन्हें इंसाफ और दयावान के तौर पर अच्छी फिल्में मिली और ये वो दौर था जब संयोगवश अमिताभ बच्चन की फिल्में कुछ खास नहीं कर पा रही थी। 

dabangg

dabangg

बॉलीवुड में लौटने के बाद भी विनोद खन्ना औऱ अमिताभ के रिश्ते बहुत बेहतर रहे। कई पत्रकारों ने दोनों के बीच प्रतिद्वंदिता की बात की लेकिन हर बार विनोद खन्ना और अमिताभ ने इसे सिरे से नकार दिया। कुछ सालों बाद विनोद खन्ना का झुकाव राजनीति की तरफ हुआ औऱ उन्होंने बीजेपी का साथ देना मंजूर किया। हालांकि राजनीति में रहते हुए विनोद खन्ना ने स्क्रीन से नाता नहीं तोड़ा और अपने चहेते सलमान खान की फिल्म दबंग Dabangg में उन्होंने चुलबुल पांडे के पिता का रोल करना स्वीकार किया। 

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