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Trapped Movie Review: हैरान करने वाली फिल्म है 'ट्रैप्ड'

विक्रमादित्य मोटवानी के निर्देशन में बनी थ्रिलर फिल्म ‘ट्रैप्ड” आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। पढ़िए फिल्म समीक्षा...

Jyoti Jaiswal @TheJyotiJaiswal
Updated on: March 17, 2017 15:35 IST
TRAPPED- India TV Hindi
TRAPPED

फिल्म समीक्षा

विक्रमादित्य मोटवानी के निर्देशन में बनी थ्रिलर फिल्म ‘ट्रैप्ड” आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। विक्रमादित्य मोटवानी 'लूटेरा' और 'उड़ान' जैसी बेहतरीन फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं और इस फिल्म से भी वो कुछ अलग करने की कोशिश करते हैं। 

फिल्म की कहानी

लीक से हटकर बनी इस फिल्म में केवल एक ही किरदार है शौर्य यानि राजुकमार राव। उसे एक लड़की से प्यार है, और वो उससे शादी करके घर बसाना चाहता है। बड़े शहर में रहने वाला मिडिल क्लास लड़का शौर्य पैसों की कमी की वजह से एक ऐसा फ्लैट खरीद लेता हैं जहां अभी कोई नहीं रहता है। उसका घर भी 35वें माले पर होता है, जहां ना बिजली आती है और ना ही पानी। घर में यूं तो सुरक्षा के लिहाज से ऑटोमेटिक लॉक लगा हुआ है, लेकिन एक दिन जल्दबाजी में शौर्य अपने ही घर में लॉक हो जाता है। उसके बाद फिल्म की असली कहानी शुरु होती है। फिल्म में एक लड़के का संघर्ष दिखाया गया है, कि कैसे परिस्थियों से जूझता एक शाकाहारी और दब्बू लड़का खतरनाक इंसान बन जाता है और अपनी जिंदगी बचाने के लिए चूहे और कीड़े-मकोड़े खाने लगता है। वो मदद के लिए आस-पास के लोगों को बुलाना चाहता है लेकिन दूर-दूर तक उसकी आवाज सुनने वालो कोई नहीं है। वो अपने घर का टीवी फेंककर, बिस्तर में आग लगाकर लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश करता हैलेकिन भीड़ भरे शहर में उसकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं होता है। बिजली न होने की वजह से उसका फोन डिस्चार्ज हो जाता है, जिसे वो तोड़ देता है। आगे क्या होता है? क्या वो बाहर निकल पायेगा या अपने ही घर में दम तोड़ देगा? ये जानने के लिए आपको सिनेमाघर का रुख करना पड़ेगा।

इस फिल्म में इंटरवल भी नहीं दिया गया है, जिससे आप महसूस कर सकें कि एक जगह ट्रैप्ड हो जाना कैसा होता है।

फिल्म में क्या है खास

 हॉलीवुड में इस तरह की फिल्में बन चुकी हैं लेकिन बॉलीवुड में ऐसा प्रयोग पहली बार हुआ है। राजुकमार राव बेहतरीन एक्टर हैं और इस फिल्म में उन्होंने अपना किरदार बखूबी निभाया है। आप फिल्म देखते वक्त शौर्य के किरदार में बिल्कुल खो जाएंगे। फिल्म की लोकेशन और सिनेमेटोग्राफी अच्छी है। 

फिल्म में कमी

फिल्म की खामी इसकी रफ्तार है। पौने दो घंटे तक एक ही किरदार को देखकर कहीं न कहीं बोरियत भी होती है, फिल्म में कुछ लंबे सीन लंबे लगते हैं, जिन्हें छोटा किया जा सकता था।

देखें या नहीं

ये एक रोचक कहानी है जो शुरू से अंत तक आपको जोड़े रखती है। आप फिल्म देखकर बोर नहीं होंगे। लेकिन ये एक अलग तरह की फिल्म है। फिल्म में मसालेदार कहानी और बॉलीवुड का तड़का नहीं है। इसलिए हो सकता है हर किसी को ये फिल्म पसंद ना आए। लेकिन अगर आप अलग तरह की फिल्म देखना पसंद करते हैं तो यह फिल्म आप जरूर देख सकते हैं।​

बॉक्सऑफिस

बॉलीवुड मसालों से दूर ऐसी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा कमाल नहीं कर पाती हैं। लेकिन फिल्म की शूटिंग महज एक ही लोकेशन में हुई है और फिल्म का बजट भी काफी कम है। फिल्म महज 25 दिन में बनकर तैयार हो गई थी। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि फिल्म अपनी लागत तो वसूल ही लेगी।

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