नई दिल्ली: क्या नहीं था परवीन बाबी के पास... सुपरस्टार के साथ काम करने से लेकर बॉलीवुड पर राज करने तक, करोड़ों की दौलत थी, लाखों चाहने वाले थे... लेकिन हैरानी की बात यह थी कि ग्लैमरस हीरोइन के रूप में जिन्हें पूरा देश जानता था उस हसीना के दिल और दिमाग में क्या चल रहा है... इसकी खबर किसी को भी नहीं थी। एक दिन अचानक जब परवीन बाबी की मौत की खबर आई तो हर कोई सन्न रह गया।
एक आलीशान फ्लैट में रहने वाली परवीन बाबी की मौत का पता तब चला जब उनके घर से भयंकर बद्बू आने लगी। लोग जब वहां पहुंचे तो दूध के कुछ पैकेट और कुछ पुराने अखबार पड़े थे। आनन फानन में जब दरवाजा खोला गया तो अंदर के मंजर देखकर लोगों के होश उड़ गए। बिस्तर पर परवीन बाबी की सड़ी हुई लाश पड़ी थी। तारीख थी 22 जनवरी 2005, और जगह थी जुहू मुंबई। कभी लोगों का अपनी अदाओं से मन मोह लेने वाली परवीन बेसुध और बेजान पड़ी थीं। खामोशी के साथ परवीन दुनिया को अलविदा कह गई थीं।
कमरे में कुछ बिखरे हुए अखबार थे, शराब की कुछ बोतल और सिगरेट के कुछ टुकड़े थे। कहा जाता है कि परवीन बाबी की मौत दो दिन पहले यानी 20 जनवरी को ही हो गई थी। लेकिन दो दिन तक किसी को कानों-कान खबर ही नहीं हुई थी। पोस्टमार्टम में भी यही आया था कि उनकी मौत 72 घंटे पहले हो चुकी थी। अपने जुहू स्थित बंगले में उन्होंने खुद को बंद कर लिया था। मौत से 10 दिन पहले तक उनकी किसी पड़ोसी से बात भी नहीं हुई थी। खाना ऑर्डर करके मंगाती थीं और कमरे में बंद रहती थीं। इस दौरान सिगरेट और शराब ही उनके साथी थी।
आज परवीन बाबी की जन्मतिथि पर हम आपको उनके वसीयत के बारे में बताने जा रहे हैं। बॉलीवुड की बुलंदियों को छूने वाली परवीन की निजी जिंदगी में कोई उसका नहीं बन सका। परवीन का अपना परिवार भी नहीं। यही वजह है कि परवीन ने अपनी वसीयत परिवार वालों को ना देकर उसका 80 फीसदी हिस्सा गरीबों के नाम कर दिया। परवीन को देखकर कोई कह नहीं सकता था कि उनकी जिंदगी दर्द से भरी है, लेकिन जिंदगी और परवीन का रिश्ता ही ऐसा था कि ना वो किसी की हो पाईं ना कोई उनका।
आखिरी वक्त में जब परवीन को अपनी जायदाद का वारिस तलाश करना था तो उन्हें दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आया। हर रिश्ते से चोट खा चुकी परवीन अपनी जायदाद का 80 फीसदी हिस्सा गरीबों के नाम कर गीं। इसका खुलासा परवीन की मौत के 11 साल बाद हुआ। 11 साल तक परवीन बाबी की वसीयत की जांच चलती रही 14 अक्टूबर 2016 को इस बात की पुष्टि हो गई कि ये वसीयत सही है और परवीन ने ही अपनी दौलत गरीबों के नाम कर दी थी।
साल 2005 में जब परवीन की मौत हुई तो उनके मामा ने ये वसीयत सामने लाई थी। वसीयत पढ़ने के बाद परवीन के परिवार के 3 लोगों ने इसे गैरकानूनी बता दिया और हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। लेकिन हाईकोर्ट के फैसले से इस बात की पुष्टि हो गई कि वो वसीयत असली थी।