नई दिल्ली: हिंदी सिनेमा जगत के पिछले दो दशकों के इतिहास में मुझे सस्पेंस व थ्रिलर के नाम पर बिकने वाली कुछ चुनिंदा फ़िल्में ही प्रभावित कर पायीं जिनमें कौन, दृश्यम, जॉनी गद्दार, भूल-भुलैया, कहानी, एक हसीना थी, नो स्मोकिंग अव्वल रहीं। आज इस लिस्ट में जुड़ गई है एक हालिया रिलीज़ फ़िल्म जिसका नाम है "अंधाधुन"।
फ़िल्म ढाई घंटे लंबी होने के बावजूद आपका ध्यान इधर-उधर नहीं जाता। गारंटी है फ़िल्म को देखते हुए आप जो भी अंदाजा लगाएंगे वैसा कुछ भी नहीं होगा, और ऐसा एक दफ़ा नहीं हर दफ़ा होता है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है इस फ़िल्म का अंत, जो हॉलीवुड की कई फिल्मों की तरह आपके ज़ेहन में एक सवाल छोड़ जाता है कि... "भइया आखिर अंत में हुआ क्या था??"
तो चंद वाक्यों में इस सवाल का जवाब देने की कोशिश करूंगा। तो चलिए शुरू करते हैं...
आखिरी दृश्य में आयुष्मान लंदन के एक रेस्टोरेंट में पियानो बजाता हुआ दिखता है जहां राधिका आप्टे उसे संयोगवश मिल जाती है,जो उससे 'टॉन्ट' में कहती है... "यहां भी अंधे होने की एक्टिंग कर रहे हो ??"
आयुष्मान उससे कॉफी पीने की पूछता है और टेबल पर उसे एक 'खरगोश' की कहानी सुनाता है और सांत्वना प्राप्त कर लेता है। वह उसे यकीन दिला देता है कि वो आज वाकई 'अंधा' है। राधिका आप्टे भी उसकी बातों में आकर आयुष्मान से दोबारा मिलने की इच्छा जताती है और वहां से निकल जाती है।
रेस्टोरेंट से निकलने के बाद आयुष्मान अंधे जैसी बॉडी लैंग्वेज लेकर छड़ी के सहारे सड़क पर चलता है और जब उसके सामने एक ड्रिंक कैन आता है तो वह उसे छड़ी से मारकर दूर कर देता है।
फिल्म का अंत हमें यह तो स्पष्ट बता देता है कि आयुष्मान आज भी अंधे होने का अभिनय ही कर रहा है, लेकिन सवाल खड़ा यहां यह होता है कि उसकी आंखों की रोशनी वापस कैसे आती है और वो लंदन कैसे चला जाता है ??
इन सवालों के जवाब के लिए आपको पहले कुछ चीजें ग़ौर करनी पड़ेगी...
याद करिये फ़िल्म जहां एक Joke से शुरू होती है... Which Says...
"What Is Life ??
Well, It Depends on Liver"
जब मैं यह फ़िल्म देख रहा था तो मुझे लगा इसका लिंक शराब से कहीं ना कहीं होगा लेकिन ऐसा कहीं कुछ नहीं हुआ। निर्देशक ने बड़ी चालाकी से एक सवाल का जवाब दिया है वो यह कि आयुष्मान अंत में राधिका आप्टे को जो 'खरगोश' की कहानी सुनाता है वो मनगढ़ंत होती है, तब्बू गाड़ी में जलकर नहीं मरी होती। उसे डॉक्टर और आयुष्मान दोनों साथ मिलकर मारते हैं।
याद करिये वो सीन जब डॉक्टर आयुष्मान को गाड़ी में एक ऑफर देता है जिसके तहत दुबई में कोई शख़्स एक ख़ास "लीवर" के बदले 6 करोड़ देने को तैयार है जिसमें से डॉक्टर आयुष्मान को एक करोड़ रुपए दे देगा।
यहां निर्देशक दर्शकों को साफ वजह देता है कि फिल्म की शुरुआत में वो जोक क्यों दिखाया गया था।
"What Is Life ??
Well, It Depends On #LIVER"
आयुष्मान राधिका आप्टे को झूठ कहता है कि उसने डॉक्टर का वो ऑफर ठुकरा दिया था।
असल में डॉक्टर तब्बू को मारकर उसका लीवर और उसकी आंखें निकाल लेता है, लीवर को 6 करोड़ रुपए में दुबई बेच दिया जाता है और आंखों का इस्तेमाल आयुष्मान के कॉर्निया ट्रांसप्लांट में होता है। आयुष्मान के पास 90 लाख रुपए बचते हैं जिसको लेकर वो लंदन रहने आ जाता है। वहां फिर से वह अंधे होने का ढोंग करता है, क्योंकि यही उसकी फितरत है।
एक चीज यहां और जोड़ सकते हैं कि आयुष्मान का किरदार शुरू से ही ऐसा रचा गया कि उसे "कहानियां" बनाने में दिक्कत नहीं आती। याद करिए जब वो कहता है कि 14 साल की उम्र में उसको क्रिकेट बॉल सर पर लगी थी और वो अंधा हो गया था, और वो सीन जब आयुष्मान पुलिस थाने में मर्डर की बजाय बिल्ली की गुमशूदगी की कहानी सुना देता है, और ऐसी ही 'कहानियां' वो घर पर अचानक आये पुलिस अफ़सर, तब्बू और यहां तक की लॉटरी वाली बाई और उसके भाई को को सुनाता है।
आयुष्मान को फ़िल्म में शुरू से ही "Black Shade" में दिखाया गया है। वो अपनी सहूलियत के हिसाब से हर किसी को झूठ ही कहता आ रहा था तो यह चीज़ बिल्कुल जस्टिफाई हो जाती है कि फिल्म के अंत में भी उसने राधिका आप्टे को झूठी कहानी ही सुनायी।
- यह स्वप्निल मीरा शर्मा के फेसबुक पोस्ट से लिया गया है, यह लेखक के अपने विचार हैं।
Also Read:
बीमारी की खबर के बाद सामने आई ऋषि कपूर की तस्वीर, बेहद कमजोर दिखें
सोनाली बेंद्रे से मिले अनुपम खेर