लो भई आखिरकार हट गया बैन ‘पद्मावत’ से...कई हफ्तों तक चली जद्दोजहद के बाद ‘पद्मावत’ को देश की सुप्रीम कोर्ट से हरी झंड़ी मिल गई लेकिन अभी खतरा टला नहीं है। सुप्रीम कोर्ट से भी ऊपर एक अदालत का फैसला बाकी है, जो आपके आस पास मौजूद होगी। वो अदालत जिसे अपना फैसला सुनाने के लिए किसी वकील किसी कोर्ट की जरुरत नहीं होगी। उसे बस फैसला सुनाना है तो सुनाना है....कहीं किसी गवाह की जरुरत नहीं, किसी सबूत की जरुरत नहीं..उसका हर फैसला सर्वमानय है।
आखिर भई वो विरोध करें भी तो क्यों नहीं..? उसे भी तो लोगों को बताना है कि वो मौजूद है इस देश में उसे भी तो दिखाना है कि इस देश के कानून और नियम हमारे आगे नहीं टिकते...ये वो अदालत हैं जिसे किसी सरकार से परमिशन लेने की जरुरत नहीं पड़ती है बस उसका एक इशारा और उसे सुनने वालों की भीड़ जुट जाती है उसके बाद धरना प्रदर्शन, रोड जाम किए जाएंगे, बॉक्स ऑफिस पर ‘पद्मावत’के पोस्टर फाड़े जाएंगे।
दरअसल ऐसा विरोध करने वाले लोगों को अपना एक पूरा तंत्र काम करता है। उनका भी एक सुप्रीम जज होता है जिसके नीचे कई छोटे-छोटे वकील होते हैं और उसके नीचें भी उनके असिस्टेंट होते हैं.....हर किसी की अपनी जिम्मेदारी होती है। हर उम्र के लोग इस अदालत के सदस्य होते हैं। आधी आबाधी भी इसका हिस्सा होती है। विरोध ये सिर्फ उन्हीं चीजों का करते हैं जहां इनके इगो को चोट लगी हो।
इनके लिए इगो का मतलब किसी का कुछ कहना नहीं बल्कि इनके हिसाब से चीजों का नहीं चलना हो। पद्मावत भी तो इनके लिए एक ऐसा ही तो इगो है जिसे रिलीज नहीं करना उसमें इनके हिसाब से चीजों का नहीं होना...जिसे सेंसर बोर्ड ने पास कर दिया, जिस फिल्म को सुप्रीम कोर्ट ने दिखाने की इजाजत दे दी ये लोग इसके बाद भी इस फिल्म को रिलीज नहीं होने देना चाहते है ये लोग जनता कर्फ्यू लगाने की बात करेंगे। क्यों भाई ? मलिक मोम्मद जायसी ने पद्मावत जैसा ग्रंथ लिखा, फिल्म निर्देशक संजय लीली भंसाली ने फिल्म बनाई जिसे सेंसर बोर्ड ने कुछ सुधारों के बाद पास करते हुए प्रमाण पत्र दे दिया, सुप्रीम कोर्ट ने भी पास कर दिया ऐसे में कुछ लोग फिल्म का विरोध कर रहे हैं आखिर क्यों?
ये लोग और इस तरह का फरमान देने वाले हर शहर में मिलेगे..कही कहीं तो ये गली मोहल्लों में भी मौजूद होते है। अभी तो पद्मावत को रिलीज होने में वक्त हैं लेकिन इस अदालत के छोट-छोटे असिस्टेंट्स ने अभी से सरकार और सुप्रीम कोर्ट को आत्मदाह करने की धमकी दे दी है। देखिए अभी इस अदालत के जज साहब का रिलीज से पहले क्य़ा फैसला होता है...! लेकिन मैं आपको बता देना चाहती हूं देश के कानून का सम्मान करिए, जिस फिल्म को सुप्रीम कोर्ट ने भी दिखाए जाने के योग्य माना हो कम से कम उसके आदेश का तो सम्मान करें। फिल्म देखिए और उसके बाद भी आपको ऐसा लगता है कि सचमुच ऐसा कुछ है जो नारी गरिमा का हनन करता है तो सवाल करें, उचित मंच पर सही तरीके से अपनी बात रखें।
हिंदुस्तान की सबसे ऊंची अदालत ने कहा है कि संजय लीला भंसाली की फिल्म और दर्शकों के बीच अब कोई दीवार खड़ी नहीं कर सकता... इसके बाद भी झूठी शान के नाम पर झंडे लहराने वाले सड़कों पर खुले आम अभिव्यक्ति की आजादी की गला घोंट रहे हैं... मतलब बैन तुम्हारा ...तांड़व तुम्हारा हो रहा है और अब तुम आम जन की आस्था पर सवाल दाग रहे हो..कि देश के लोग रावण है या राम ?...... खिलजी से ही तुलना कर दी आम जन की !
बैन लगाने के लिए इतना ही तांड़व करना है तो उन छोटी मासूमों के साथ हो रही दरिदंगी के खिलाफ हल्ला बोलो ...देश की बेटियों को गर्भ की हत्या को रोकने के लिए ताड़व करो ..घरेलू हिंसा में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए किसी समूह का निर्माण करो ..ये क्या एक फिल्म के लिए पूरे देश को सर पर उठाए रखा है ......एक फिल्म के लिए इतना विरोध .. लोगों के सामने उसे चलने तो दो ....तुम्हारे अलावा उन्हें भी तो समझ में आए कि आखिर कौन सा इतिहास है पद्मावती और खिलजी का जिसको लेकर इतना बावल हो रहा है ...जिद है या सम्मान बचाने की लडाई ये एक सवाल बन गया है अब..आज आप समझदार लोगों का समूह किसी फिल्म के लिए ऐसा ताड़व कैसे कर सकता है ?.
...देश के कई गणमान्य लोगों ने उस फिल्म का प्रीव्यू किया है ...देश की सर्वोच्य अदालत ने भी फिल्म को रिजील करने की हरी झंडी दे दी.....तो अब कहां किसी समाज विशेष के इतिहास के साथ छेड़छाड़ हो रही है ....देश की अदालत पर भऱोसा नहीं ?...सब नियम-कायदों को ताक पर रखा कर बस देश में ताड़व किया जा रहा है ....
(इस ब्लॉग की लेखिका रीना आर्या पत्रकार हैं और देश के नंबर वन हिंदी न्यूज चैनल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं)