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रजत कपूर ने बताया, लोगों को पसंद आती हैं ऐसी फिल्में

रजत कपूर ने अपने फिल्मी करियर में कई शानदार फिल्में दी हैं। हिन्दी सिनेमाजगत को लेकर रजत का कहना है कि इसकी मुख्यधारा की फिल्में बाजार में स्वतंत्र फिल्मों पर हावी हो रही हैं। लोग भी मुख्यधारा की फिल्में देखना पसंद करते हैं।

India TV Entertainment Desk
Published : March 27, 2017 9:28 IST
rajat kapoor
rajat kapoor

नई दिल्ली: बॉलीवुड अभिनेता और फिल्मकार रजत कपूर ने अपने फिल्मी करियर में कई शानदार फिल्में दी हैं। हिन्दी सिनेमाजगत को लेकर रजत का कहना है कि इसकी मुख्यधारा की फिल्में बाजार में स्वतंत्र फिल्मों पर हावी हो रही हैं। लोग भी मुख्यधारा की फिल्में देखना पसंद करते हैं। रजत बॉलीवुड फिल्मों और स्वतंत्र सिनेमा में काम कर अपने पेशेवर जीवन में संतुलन बनाए रखने की हमेशा कोशिश करते हैं। उनका मानना है कि यह समस्या भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दुनियाभर में फैली हुई है।

रजत से यह पूछे जाने पर कि क्या बॉलीवुड फिल्में स्वतंत्र सिनेमा की जगह लेती जा रही हैं और वे उन पर हावी हो रही हैं, तो उन्होंने बताया, "देश में हम सिर्फ मुख्यधारा की सिनेमा ही देखते हैं.. यह बात किसी को पसंद हो या न हो।" अभिनेता की हालिया रिलीज फिल्म 'मंत्रा' का निर्माण सोशल मीडिया के जरिए धन जुटाकर हुआ था।

अभिनेता कहते हैं, "यह समस्या सिर्फ इस देश में नहीं, बल्कि दुनियाभर में है। मैं किसी से बात कर रहा था कि औसत दर्जे का सुपरहीरो फिल्म 600 अरब डॉलर की कमाई कर लेगा, जबकि मार्टिन स्कोर्सेसे की 'साइलेंस' जैसी फिल्म दुनिया में कहीं भी मुश्किल से ही रिलीज हो पाई।"

फिल्मों के साथ-साथ थिएटर में भी सक्रिय रजत कपूर ने जोर देते हुए कहा कि लोग पॉपकॉर्न खाते हुए बस टाइमपास करने वाली मुख्यधारा की फिल्में ही देखना चाहते हैं। दिल्ली में जन्मे और पले-बढ़े रजत ने अपने करियर की शुरुआत थिएटर से की और फिर धीरे-धीरे उन्होंने फिल्मों का रुख कर लिया। उन्होंने फिल्म 'ख्याल गाथा' (1989) से अभिनय की दुनिया में कदम रखा।

अभिनेता ने 'फंस गए रे ओबामा', 'भेजा फ्राई' और 'कपूर एंड संस' जैसी फिल्मों में भी काम किया है। रजत ने 2003 में फिल्म 'रघु रोमियो' का निर्माण किया, जिसने सर्वश्रेष्ठ हिंदी फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता।

पिछले कुछ समय से सेंसर बोर्ड के काम करने के तरीके पर उंगलियां उठ रही हैं। रजत का भी मानना है कि दर्शक जो भी देखते हैं, उसे नियंत्रित करने के लिए ऐसी निकाय की क्या जरूरत है? उन्होंने कहा कि आज के जमाने में जब इंटरनेट पर सब कुछ उपलब्ध है, तो फिर सेंसर बोर्ड द्वारा नियंत्रित करने का कोई मतलब नहीं बनता।

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