राहुल कहते हैं कि वह इस फिल्म के माध्यम से दिखाना चाहते हैं कि ऐसा रोजाना नहीं होता है, लेकिन ऐसा हुआ है और आगे भी हो सकता है। वह बताते हैं, "इस फिल्म को देखने के बाद अब तक कोई भी शख्स आंखें गीली कर बाहर नहीं निकला है। चाहे फिर वह शबाना आजमी, विद्या बालन, सोनाक्षी सिन्हा, विराट कोहली ही क्यों न हों। यह दुख भरी कहानी नहीं है, बल्कि उम्मीदों से भरी हुई फिल्म है।"
राहुल बोस फिल्म में डॉक्टर आर.एस. प्रवीण कुमार का किरदार निभा रहे हैं, जो इस पूरे सफर में पूर्णा के प्रेरणास्रोत रहे हैं। राहुल अपने किरदार के बारे में बताते हैं, "आर.एस. प्रवीण कुमार पूर्णा के मेंटर हैं। वह तेलंगाना के सोशल वेल्फेयर स्कूल का जिम्मा संभालते हैं। पूर्णा ने उन्हीं के माध्यम से एवरेस्ट फतह करने का सपना बुना।"
फिल्म जगत में बायोपिक्स के इस नए ट्रेंड के बारे में वह बताते हैं, "इस नए ट्रेंड के शुरू होने के पीछे की वास्तविकता को समझना जरूरी है। दरअसल, हमारी आम जिंदगी में इतनी नकारात्मकता और निराशा फैल गई है कि लोग अब काल्पनिक नहीं, बल्कि वास्तविक एवं सच्ची कहानियां देखना और सुनना पसंद करने लगे हैं। हम काल्पनिक कहानियों के दौर से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं। इन बायोपिक के जरिए देश की प्रतिभाओं की सच्ची कहानियां बाहर निकल कर आ रही हैं।"
राहुल उन प्रतिभाओं की सच्ची कहानियां दुनिया को बताना चाहते हैं, जिनसे लोग महरूम हैं। वह कहते हैं, "मैं चाहता हूं कि इस तरह के और भी लोगों के बारे में दुनिया जाने, जिन्होंने इतिहास बना दिया है लेकिन अब भी वे गुमनाम हैं।"
वह कहते हैं, "मैं फिल्म के कारोबार को लेकर चिंतित नहीं हूं, क्योंकि मैंने दुनिया को पूर्णा मालावत की मौजूदगी व उसकी उपलब्धि बताने के लिए फिल्म बनाई है। यह बहुत ही प्रेरणादायक कहानी है जब 13 साल की लड़की एवरेस्ट फतह करती है तो कौन आपनी भावनाओं पर काबू रख पाएगा। मैंने जीवन में एक बात सीखी है कि भारतवासियों का दिल बहुत भावुक होता है और यह फिल्म उस दिल को छूएगी।"