बॉलीवुड के सबसे ताकतवर खलनायकों में शुमार प्रेम चोपड़ा साहब आज अपना 86वां जन्मदिन मना रहे हैं। कमाल की खलनायिकी से करोड़ों लोगों का दिल मोह लेने वाले प्रेम चोपड़ा बनने तो हीरो आए थे, लेकिन किस्मत ने उनके लिए कुछ और ही सोच रखा था। अनोखी सी मुस्कान, गोल गोल घूमती आंखें और चबा चबा कर डायलॉग्स बोलने के अंदाज ने उन्हें बॉलीवुड का मशहूर विलेन बना दिया। लेकिन इस संयोग ने उन्हें इतना मशहूर कर दिया, जितना उनके अनुसार वो हीरो बनकर नहीं हो पाते।
एक वक्त प्रेम चोपड़ा विलेन के रोल करके इतने मशहूर हो गए थे कि लोग उन्हें देखकर छिप जाया करते थे। कई बार ऑडिएंस सिनेमा हॉल से बाहर निकल कर उन्हें कोसती थी। घरेलू महिलाएं दावा करती थीं कि कोई बाप उन्हें अपनी बेटी नहीं देगा शादी के लिए।
लेकिन प्रेम साहब रील लाइफ के इतर बेहद ही शानदार इंसान थे। उनकी हमेशा याद की जाने वाली फिल्मों की बात की जाए तो शहीद, उपकार, वो कौन थी, कटी पतंग, बॉबी, दो रास्ते, दो अंजाने, दोस्ताना, तीसरी मंजिल, मर्द, फूल बने अंगारे जैसी फिल्मों की बात जरूर उठेगी।
कई शानदार सुपर हिट फिल्मों में खलनायिकी के बल पर अपनी अलग पहचान बनाने वाले प्रेम चोपड़ा ने एक बार कहा था कि अच्छा हुआ कि वो विलेन बने क्योंकि खलनायिकी लंबी उम्र तक साथ देती है। उन्हें गर्व होता था कि वो इतने मशहूर विलेन हैं और इतनी अच्छी अदाकारी करते हैं कि लोग रियल लाइफ में भी उन्हें देखकर असहज हो जाते हैं।
प्रेम चोपडा का कहना सही था, बतौर विलेन कई एक्टर लंबे वक्त तक बॉलीवुड में राज करते रहे जबकि हीरो का चार्म जल्दी खत्म हो जाता है क्योंकि बूढ़ा हीरो देखने और दिखाने की बॉलीवुड को तब तक आदत नहीं पड़ी थी। प्रेम चोपड़ा खुद बहुत दशकों तक खलनायक के दमदार किरदार निभाते रहे और दर्शकों का मनोरंजन करते रहे।
लेकिन नए बॉलीवुड की बात की जाए प्रेम चोपड़ा साहब को एक किरदार के मल्टीपरपस कारनामों को देखकर कोफ्त होती थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि नए जमाने में किरदार एक्टिंग देखकर नहीं बल्कि सक्सेस देखकर दिए जाते हैं।
अगर कोई हिट हो गया तो उसे लगातार रोल मिलते रहेंगे। एक हीरो खुद ही खलनायिकी कर लेगा और खुद ही कॉमेडी भी कर लेगा। ऐसे में प्रोड्यूसर को अलग से कॉमेडियन और खलनायक चुनने की जहमत और खर्चा नहीं उठाना पड़ेगा।
देखा जाए तो प्रेम चोपड़ा साहब ने सही ही कहा था। जब से हीरो मल्टीपरज रोल करने लगे, बॉलीवुड में चरित्र अभिनेताओं के रोजगार पर संकट आया है।
चोपड़ा साहब ने एक बार कहा था कि पहले विलेन का किरदार हीरो के किरदार की अच्छाई को जस्टिफाई करने का काम करता था। लेकिन आज के जमाने में हीरो ही विलेन बन जाता है। नए जमाने में हीरो नहीं बल्कि लीड कैरेक्टर को एंटागोनिस्ट दिखाया जाता है। जबकि पहले विलेन दिखाते थे लेकिन ये नहीं बताया जाता था कि विलेन किन परिस्थितियों में बना। सिनेमा बदला है और किरदारों का जस्टिफाई करने के आधार भी बदल गए हैं।