हिंदी सिनेमा में पुरुष नायक आमतौर हीरो के रूप में नज़र आते हैं। उनके भारी-भरकम मसल्स होते हैं। उनकी कभी उम्र नहीं होती है और वास्तव में अविनाशी होते हैं और ऐसा कुछ भी नहीं है, जो वो नहीं कर सकते हैं। सुपर ह्यूमन की तरह डांस करने से लेकर बिना पसीना बहाए दुनिया को बचाने तक, उनकी ऐसी ही छवि दर्शकों के सामने आई है। इस दौर में कुछ किरदारों ने हीरो का अलग रुप चित्रित किया है, जिससे लोग अपने आप को जुड़ता हुआ पाते हैं। आइये ऐसे कैरेक्टर्स पर एक नज़र डालते हैं...
तमाशा फिल्म में 'वेद'
इम्तियाज अली की फिल्मों में अधिकांश नायक सिर्फ खोए हुए पुरुष हैं, जो अस्तित्ववादी उत्तर ढूंढ रहे हैं। रणबीर कपूर की 'तमाशा' (2015) में वेद कोई अपवाद नहीं है। एक बच्चे के रूप में पूरी तरह से दबा हुआ, वह रचनात्मक रूप से खो गया है, एक उदासीन नौकरी में फंस गया है और अपने आंतरिक कहानी कहने वाले को रिहा करने में असमर्थ है, जो रोमांच और अनैतिक प्रेम के साथ जीवन जीने की लालसा रखता है। एक छुट्टी के दौरान तारा (दीपिका पादुकोण) के साथ रहने का मौका मिलना उसे याद दिलाता है कि वो ऐसा हो सकता है, लेकिन वो तारा के शादी के प्रपोजल को भी ठुकरा देता है। उस आदमी के रूप में रहने लगता है, जो वो नहीं है। वेद हर किसी की कहानी है, जिनके जीवन से उनका असित्तव गायब है।
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जिंदगी ना मिलेगी दोबारा फिल्म में 'अर्जुन'
जोया अख्तर की यह फिल्म पुरुषों के तीन आकर्षक किरदारों के साथ एक ब्रोमांस की कहानी थी, जो अलग और भरोसेमंद भी हैं। 'जिंदगी ना मिलेगी दोबारा' (2011) में सबसे हैरान करने वाला किरदार ऋतिक रोशन का रहा। वह अपनी भौतिक सफलताओं के पीछे वास्तविक भावनाओं को दबा देता है। हालांकि, अपने दोस्तों और हालातों की वजह से वह धीरे-धीरे अपनी जिंदगी में वापस लौटने लगता है। यह वास्तव में एक ऐसी फिल्म थी, जिसमें दिखाया गया कि आगे बढ़ने की रेस में जिंदगी पीछे छूटती जा रही है।
म्यूजिक टीचर में बेनी माधव सिंह
म्यूजिक टीचर में बतौर माधव सिंह मानव कौल ने अलग किरदार निभाया है। कभी कभी अपने अहंकार से प्रेरित होता है, लेकिन ज्यादातर अपने अतीत को दोहराता है। अपने एक सपने का पीछा करता है, लेकिन अब वो सच नहीं हो सकता। निर्देशक सार्थक दासगुप्ता एक अपूर्ण व्यक्ति के आदर्श चित्र को चित्रित करते हैं।
जाने तू या जाने ना फिल्म का 'जय'
इमरान खान ने अपने चाचा आमिर खान की तरह अपनी पहली फिल्म में हमें चॉकलेटी ब्वॉय से मिलाया, लेकिन आमिर की 'कयामत से कयामत' के विपरीत 'जाने तू या जाने ना' एक दुखद प्रेम कहानी नहीं थी। यह दो सबसे अच्छे दोस्तों का सफर था, जो प्यार में थे, लेकिन इसका एहसास तब तक नहीं हुआ, जब तक कि अलग होने का समय नहीं आ गया। बतौर नायक जय अति आत्मविश्वासी या अहंकारी नहीं था। वह न तो असाधारण रूप से प्रतिभाशाली था और न ही निपुण। वह सिर्फ एक युवा लड़का था, जो दिल के मामलों पर बातचीत करना सीख रहा था।