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पुण्यतिथि पर विशेष: आम आदमी के आक्रोश के नायक को नमन

समानांतर सिनेमा या आर्ट सिनेमा में उनका मुकाबला नसीरुद्दीन शाह से था। ओम ने नसीर को कड़ी टक्कर दी। कुछ फिल्मों में तो वे नसीर से आगे निकलते नजर आए।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: January 06, 2018 20:11 IST
om puri- India TV Hindi
om puri

नवीन शर्मा,(रांची) : ओम पुरी हमारे हिंदी सिनेमा के नायब हीरा थे। करीब चालीस साल लंबे फिल्मी सफर में उन्होंने कई यादगार फिल्मों का तोहफा हमें दिया। समानांतर सिनेमा या आर्ट सिनेमा में उनका मुकाबला नसीरुद्दीन शाह से था। ओम ने नसीर को कड़ी टक्कर दी। कुछ फिल्मों में तो वे नसीर से आगे निकलते नजर आए। हरियाणा के अंबाला में 1950 को जन्मे ओम पुरी ने NSD दिल्ली से कोर्स करने के बाद पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से भी अभिनय की ट्रेनिंग ली। इसके बाद काफी संघर्ष करते हुए फिल्मों का सफर शुरू किया। 1977में आई भूमिका से उन्हें पहचान मिलनी शुरू हुई। 

  
आक्रोश ने बना दिया गुस्से का आइकन  
ओम पुरी के अभिनय में कई शेड हैं पर सबसे गाढ़ा रंग गुस्से का है। आम और मजबूर आदमी के गुस्से को सबसे जोरदार ढंग से ओम ने ही व्यक्त किया है। इस मामले में एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन से तुलना करें तो हम देखेंगे की अमिताभ के गुस्से वाले किरदार अधिकतर बार जीतते ही हैं। अमिताभ का किरदार आधा दर्जन हथियार बंद गुंडों को निहत्था धूल चटा कर दर्शकों की तालियां बटोरता है। इसके साथ ही अमिताभ की फिल्में बाक्स आफिस में सफलता का झंडा गाड़ते हुए उन्हें नंबर वन सुपर स्टार बना देती हैं। वहीं दूसरी तरफ ओम पुरी के निभाए किरदारों में भी अव्यवस्था, अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आक्रोश ज्यादा सघनता से उभरता नजर आता है। इसमें गुंगे आदिवासी बने ओम ने लाजवाब एक्टिंग की थी। बिना आवाज के गुस्से की अभिव्यक्ति का चरम बिंदु देखना हो तो आक्रोश में देखा जा सकता है।  

एंग्री यंगमैन की ना से मिली अर्द्धसत्य
यहां यह बात उल्लेखनीय है कि गोविंद निहलानी अर्द्धसत्य फिल्म बनाना चाहते थे अमिताभ को लेकर। एंग्री यंग मैन के ना करने पर हमें एक नया और दमदार एंग्री मैन मिला। अर्द्धसत्य हिंदी सिनेमा का माइल स्टोन है। सब इंस्पेक्टर अनंत वेलेंकर की कुंठा,तनाव, बेबसु और गुस्से को ओम पुरी ने पूरी शिद्दत से उभरा है। वेलेंकर राजनेता बने सदाशिव अमरापुरकर का पालतू कुत्ता बनने से इन्कार करते हुए उसे मार देता है। इस फिल्म में यादगार अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। ओम गोविंद निहलानी के टीवी सीरियल तमस के लिए भी हमेशा याद आएंगे। भीष्म साहनी के उपन्यास पर बने तमस में भारत-पाकिस्तान बंटवारे की त्रासदी बहुत ही दिल दहला देने वाले अंदाज में बयां होती है। इसी तरह से श्याम बेनेगल की भारत एक खोज में अपनी खनकती और दमदार आवाज के साथ सूत्रधार के रूप में ओम हमें ऐतिहासिक सफर कराते हैं। इसमें ओम ने कई किरदार भी निभाए थे।

अंग्रेजी फिल्मों में भी ओम ने अपनी जानदार उपस्थिति दर्ज कराई थी। वो चाहे इस्ट इज इस्ट हो या व्हाइट टिथ, 100फीट जर्नी, वुल्फ । गांधी फिल्म में सिर्फ पांच मिनट की भूमिका में वो सबको मात देते नजर आते हैं। यहां ये जानना मजेदार होगा की ओम अंग्रेजी माध्यम से नहीं पढ़े थे। उन्होंने धीरे-धीरे करके टूटी फुटी अंग्रेजी बोलनी सीखी । इसके बावजूद उन्होंने बेहतर अंग्रेजी जानने और बोलने वाले नसीर को पछाड़ते हुए उन से अधिक अंग्रेजी फिल्मों में अभिनय किया।केतन मेहता की मिर्च मसला में भी वो वृद्ध चौकीदार की अविस्मरणीय भूमिका में नसीर को पटकनी देते दिखते हैं। 'पार' फिल्म में भी ओम लाजवाब लगे हैं।

कामेडी में भी दी दखल
ओम केवल गंभीर रोल ही शिद्दत से नहीं निभाते थे बल्कि कामेडी भी स्तरीय करते थे। वो जाने भी दो यारो का रोल हो या फिर चाची 420 और मालमाल विकली में वो अपनी भूमिका संजीदगी से.निभाते हैं।ओम पुरी की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि चेचक के बड़े बड़े दाग से भरे लगभग डरावने कहे जानेवाले चेहरे को अपनी कमजोरी की जगह ताकत बना लिया। और एक ऐसे क्षेत्र में अपनी धाक जमाई जहां आमतौर पर चिकने, गोरे और तथाकथित सुंदर चेहरों को ही तवज्जो दी जाती है। (नवीन शर्मा,रांची)

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