रेटिंग- 3.5 स्टारडायरेक्टर- राजा कृष्ण मेनन
कलाकार- सैफ अली खान, पद्मप्रिया जानकीरमन, मिलिंद सोमन और स्वर काम्बले
फिल्म समीक्षा- बॉलीवुड अभिनेता सैफ अली खान लंबे वक्त बाद एक ऐसी फिल्म के साथ लौटे हैं, जिसमें वो जंच रहे हैं और उनकी मेहनत फिल्म में साफ झलक रही है। यह फिल्म खाने, सपने और टूटे हुए परिवार के इर्द गिर्द बुनी गई है। बेटे और पिता के रिश्ते पर बनी इस फिल्म को बहुत ही प्यार से फिल्माया गया है। यह फिल्म साल 2014 में आई जॉन फेवरू की फिल्म ‘शेफ’ ऑफिशियल रीमेक है। राजा कृष्ण मेनन ने इस फिल्म का निर्देशन किया है और उन्होंने हॉलीवुड की इस फिल्म में दिल्ली वाला तड़का लगाते हुए पूरी ईमानदारी बरती है।
कहानी- यह कहानी रौशन कालरा (सैफ अली खान) की है, जो दिल्ली के चांदनी चौक का है। रौशन को बचपन से ही खाना बनाने का शौक था, वो पड़ोस में रहने वाले हलवाई की दुकान पर छोले-भटूरे बनाने पहुंच जाता है, मगर उसके पिता को ये सब नापसंद था, वो चाहते थे कि उनका बेटा पढ़लिखकर इंजीनियर बन जाए, मगर रौशन घर से भाग जाता है। आखिर उसे उसकी मंजिल भी मिल जाती है, मगर काम... काम से प्यार, प्यार से काम में उसकी जिंदगी में प्यार कहीं रह ही जाता है। वो न्यूयॉर्क में थ्री मिशलिन स्टार शेफ बन जाता है, मगर काम की वजह से उसका उसकी पत्नी से तलाक हो जाता है। वो विदेश में अकेला रहता है, एक दिन उसके गुस्से की वजह से उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है। यहीं से उसकी जिंदगी में काफी कुछ बदल जाता है, वो कोच्चि आ जाता है, जहां उसका बेटा अरमान (स्वर कांबले) रहता है अपनी मां राधा मेनन (पद्मप्रिया जानकीरमन) के साथ रहता है। जिंदगी रौशन के सपनों और उसके खोए प्यारपरिवार को वापस पाने का एक और मौका देती है, वो इसमें सफल हो पाता है या नहीं, यही इस फिल्म में दिखाया गया है।
इस फिल्म में दो पिता और दो बेटे के रिश्ते की कहानी चलती है, एक तरफ जहां रौशन और उसके बेटे में बिल्कुल दोस्ताना रिश्ता है, वहीं दूसरी तरफ रौशन और उसके पिता के बीच काफी दूरियां हैं, डर है, लिहाज़ है। इसके अलावा फिल्म में रौशन और उसकी एक्स वाइफ राधा के बीच का जो रिश्ता है, उसे भी निर्देशक ने सहजता से बड़े पर्दे पर उतारा है।
यह कहानी हमें लज़ीज़ खाने के साथ एक रोमांचक सफर पर भी लेकर जाती है। जो न्यूयॉर्क से होते हुए, कोच्चि, दिल्ली और फिर गोवा का सफर कराती है। कहानी रिफ्रेशिंग है। बॉलीवुड में इस साल अच्छी फिल्मों की कमी रही है, यह फिल्म उस कमी को एक हद तक जरूर पूरी कर देगी। कहीं-कहीं ये फिल्म थोड़ी स्लो और खिंची हुई लगती है लेकिन कहीं भी बोर नहीं करती। कहानी का अंत प्रिडिक्टिबल है, जो काफी हद तक ट्रेलर से ही समझ में आ जाता है, मगर जिस पूरी फिल्म चलती है, आप उससे पूरी तरह कनेक्ट रहते हैं। अंत में आपके चेहरे पर मुस्कान आएगी, और लगेगा ये सफर थम क्यों गया?
सैफ अली खान, रोशन कालरा के किरदार में बहुत अच्छे लगे हैं। इस तरह के मैच्योर किरदार वो बखूबी निभाते हैं, एक एम्बिशस शेफ और एक लविंग पिता के रंग को वो बखूबी खुद में ढाल लेते हैं, सैफ को बड़े पर्दे पर इस तरह देखना सुकून भरा रहता है। सैफ की पत्नी के किरदार में मलयालम एक्ट्रेस पद्मप्रिया जानकीरमन आपका दिल जीत लेंगी। सिंगल मदर का किरदार उन्होंने बहुत मजबूती से निभाया है, लगता ही नहीं है कि वो अभिनय कर रही हैं। उनकी डायलॉग डिलिवरी और एक्सप्रेशंस तारीफ के काबिल है। स्वर कांबले भी सैफ के बेटे के रूप में अच्छे लगे हैं।
फिल्म का म्यूजिक अच्छा है, खासरकर रघु दीक्षित का कंपोज किया गाना ‘शुगल लगा ले’ अच्छा लगता है।
देखें या नहीं- जरूर देखिए। बड़े पर्दे पर आपको यह फिल्म देखकर सुकून मिलेगा। यह एक क्यूट और प्यारी कहानी है, अपने बच्चों और परिवार के साथ आप यह फिल्म देखने जा सकते हैं। हां, अगर आप मसाला फिल्मों के शौकीन हैं और एक्शन फिल्में पसंद करते हैं, तो शायद आपको यह फिल्म स्लो लगेगी।
स्टार- मेरी तरफ से इस फिल्म को 3.5 स्टार।
-ज्योति जायसवाल @JyotiiJaiswal