नई दिल्ली: बॉलीवुड अभिनेता और फिल्मकार फरहान अख्तर के अभिनय से सजी फिल्म 'लखनऊ सेंट्रल' आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। फिल्म में जहां एक तरफ फरहान की बेहतरीन अदाकारी देखने को मिल रही है वहीं उन्हें फिर से अपने किरदार के साथ कुछ अलग करते हुए भी देखा जा रहा है। रंजीत तिवारी के निर्देशन में बनी इस फिल्म की कहानी की एक सच्ची घटना से प्रेरित है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक सीधा साधा लड़का जो जिंदगी में बड़ा नाम कमाना चाहता है, उसे जेल जाना पड़ता है।
फिल्म की कहानी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में रहने वाले किशन गिरहोत्रा (फरहान अख्तर) के इर्द गिर्द घूमती है। उसका सपना है कि वह एक बहुत बड़ा सिंगर बने और उसका एक म्यूजिक बैंड हो। वह लोक गायक मनोज तिवारी का सबसे बड़ा फैन है, एक दिन वह उनके कॉन्सर्ट में जाता है जहां एक घटना घटती है। इसका पूरा इल्जाम किशन पर लगता है और खुद को बेगुनाह बताए जाने पर भी उसे जेल भेज दिया जाता है। शुरुआत में उसे मुरादाबाद जेल में ही रखा जाता है, लेकिन बाद में लखनऊ सेंट्रल जेल भेज दिया जाता है। इसी जेल में किशन की मुलाकात गायत्री (डायना पेंटी) से होती है, जो एक एनजीओ के लिए काम करती हैं। वह उसे इस बात की जानकारी देती है कि 15 अगस्त के मौके पर मुख्यमंत्री (रवि किशन) ने इंटर जेल प्रतियोगिता का आयोजन किया है। इसी के बाद किशन जेल के बाकी कैदियों (दीपक डोबरियाल, इनामुल हक, राजेश शर्मा और गिप्पी ग्रेवाल) के साथ मिलकर एक बैंड बनाता है। लेकिन जेलर (रोनित रॉय) को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आती और वह इन कैदियों को नए-नए तरीकों से परेशान करने लगता है। इस प्रतियोगिता में जीत हासिल करने वाले कैदियों के लिए एक खास इनाम रखा गया है, जिसे जानने के लिए अगर आप सिनेमाघरों का रुख कर सकते हैं।
रंजीत निवारी ने निर्देशन की कमांड काफी अच्छे ढंग से संभाली है। परिवार और समाज से ठुकराए जाने के बाद कैदियों की स्थिति को उन्होंने बखूबी पेश किया है। वहीं अभिनय की बात की जाए तो फरहान ने एक बार फिर से खुद को साबित किया है, एक देसी लड़के की बखूबी पर्दे पर उतारा है। हालांकि उनकी खराब इंग्लिश आपको थोड़ी बनावटी लग सकती है। लेकिन इसके बावजूद आप फिल्म के साथ जुड़े रहते हैं। (सिक्किम पर दिए बयान पर भड़के लोग, आलोचनाओं के बाद मांगनी पड़ी माफी)
फरहान के अलावा दीपक डोबरियाल, रवि किसन, राजेश शर्मा, इनाम-उल-हक और गिप्पी ग्रेवाल ने अच्छा काम किया है। वहीं रोनित रॉय अपने किरदार में बिल्कुल सटीक बैठते हैं। फिल्म के पहले हाफ में एक पल के लिए भी आप अपनी नजरे नहीं हटा पाएंगे। वहीं इंटरवल के बाद फिल्म की पकड़ थोड़ी कमजोर पड़ने लगती है। हालांकि फिल्म के किरदार आपको सिनेमाघरों तक खींचने में कामयाब हो सकते हैं।