अफगानिस्तान के हालात पर इस वक्त दुनिया के सभी देशों की नजर है। अफगानिस्तान पर कब्जा कर चुके तालिबान ने अफगान सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है। वहां से कंपा देने वाले वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। कभी कला और सिनेमा के लिए जन्नत कहे जाने वाले अफगानिस्तान में अब तालिबान की हुकूमत में शायद ही कला और फिल्मों को फिर से वो मुकाम मिल सके जिसके लिए वो जाना जाता था। जी हां बात हो रही है अफगानिस्तान में फिल्मों और कला साहित्य के भविष्य की।
कभी सैलानियों से पटा रहने वाला खूबसूरत अफगानिस्तान अब खंडहर बन चुका है। वहां स्थानीय लोग ही सुरक्षित नहीं है तो फिल्मों की शूटिंग के बारे में तो सोचा ही नहीं जा सकता। लेकिन एक वक्त था जब हिंदी फिल्मकारोंने वहां अपनी फिल्म के लिए शूटिंग की।
अफगानिस्तान की सरजमीं पर शूट हुई पहली हिंदी फिल्म धर्मात्मा को माना जाता है। इसके बाद कई फिल्में अफगानिस्तान की खूबसूरत जमीं पर शूट हुई। लेकिन तालिबान की दहशत और हूकूमत के चलते धीरे धीरे वहां शूटिंग करने के जोखिम लेने से फिल्मकार बचने लगे।
तालिबान दहशत कायम होने के बाद आखिरी फिल्म जो अफगानिस्तान के कुछ इलाकों में शूट हुई, उसका नाम था तोरबाज। जी हां, चाइल्ड सुसाइड बॉम्बर के प्लाट पर बनी इस फिल्म में संजय दत्त लीड रोल में थे और फिल्म के कुछ हिस्से अफगानिस्तान में शूट किए गए थे। तोरबाज यूं तो 2017 में अफगानिस्तान में शूट हुई थी और उसे 2019 में रिलीज होना था लेकिन कोरोना के चलते ये 2020 में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो पाई।
तोरबाज में संजय दत्त के साथ नरगिस फखरी भी थी। फिल्म में संजय दत्त ऐसे डॉक्टर बनते हैं जिनकी पत्नी और बच्चे की अफगानिस्तान में सुसाइड बॉम्बिंग में मौत हो जाती है। फिर संजय दत्त अपनी दोस्त की मदद से अफगानिस्तान के मासूम बच्चों को बॉम्ब बनने की बजाय खिलाड़ी बनने के लिए प्रेरित करते हैं।
फिल्म को गिरीश मलिक ने डायरेक्ट किया था। बाद में अफगानिस्तान में शूटिंग के अनुभवों को साझा करते हुए गिरीश ने कहा था कि वहां शूट करना बहुत खतरनाक था। चारों तरफ सेना, डरे हुए लोग और हर कदम पर बम का खतरा। इसलिए कुछ शूटिंग के बाद उन्होंने कलाकारों की सुरक्षा के लिए बाकी का शूट किर्गीस्तान में शूटिंग करना मुफीद समझा था।