'मोहब्बत जिंदगी है और तुम मेरी मोहब्बत हो'... 'नवाजिश करम शुक्रिया मेहरबानी' जैसी खूबसूरत गजलें गाने वाले पाकिस्तानी गायक मेहदी हसन की मखमली आवाज सभी के दिलों में अपनी खास जगह बना चुकी है। आज ही के दिन साल 2012 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था, लेकिन उनकी सुरीली आवाज और गाने का अनोखा अंदाज लोगों के ज़हन में आज भी ताजा है।
मेहदी हसन के हर शब्द से शख्स खुद को जोड़ सकता था। उन्होंने अपनी खूबसूरत गजलों से सभी को दीवाना बना लिया था। उन्हें 'किंग ऑफ गजल' और शहंशाह-ए-गजल भी कहा जाता था। गायकी के साथ-साथ उन्हें पहलवानी का शौक भी था। वो अपने साथियों के साथ कुश्ती में दांवपेच भी आजमाते थे।
पहलवानी का भी था शौक
मेहदी हसन का जन्म राजस्थान में 18 जुलाई, 1927 को हुआ। वह पारंपरिक संगीतकारों के परिवार से थे। उनके पिता उस्ताद अजीम खान और चाचा उस्ताद इस्माइल खान दोनों पारंपरिक ध्रुपद गायक थे। बचपन में मेहदी हसन को गायन के साथ पहलवानी का भी शौक था।
दुकानों पर भी किया काम
मेहदी हसन को गायन विरासत में मिली थी। उनके दादा इमाम खान बड़े कलाकार थे, जो उस वक्त मंडावा व लखनऊ के राज दरबार में गंधार, ध्रुपद गाते थे। हालांकि, आर्थिक स्थिति बिगड़ने की वजह से उन्होंने शुरुआत में साइकिल कि दुकान पर काम किया। फिर मैकेनिक बन गए, लेकिन संगीत के प्रति अपने प्यार को उन्होंने कभी खत्म नहीं होने दिया।
पहली बार रेडियो पर गाने का मिला मौका
1957 में मेहदी हसन को पहली बार रेडियो पर गाने का मौका मिला और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वो ध्रुपद, ख्याल, ठुमरी व दादरा बड़ी खूबी के साथ गाते थे। उनका पहला गाना 1962 में फिल्म 'ससुराल' में 'जिसने दिल को दर्द दिया' था। इसके बाद 1964 में उनकी गजल गाई फिल्म 'फरंगी' में सुनी गई।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान
शायर अहमद फराज की गजल 'रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ' गाकर मेहदी हसन को पहली बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। 'तूने ये फूल जो जुल्फों में लगा रखा है, इक दिया है जो अंधेरे में जला रखा है', 'पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है'..सहित कई उनकी प्रसिद्ध गजले हैं।
2012 में कह गए दुनिया को अलविदा
पाकिस्तान के कराची शहर में 13 जून, 2012 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। आज वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी गाई गजलें अमर हो चुकी हैं और शानदार फनकार मेहदी भी।