Happy Birthdya Kailash Kher: बॉलीवुड के फेमस सूफी गानें और दमदार आवाज़ से अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले कैलाश खेर आज 7 जुलाई को अपना 46वां जन्मदिन मना रहे हैं। फिल्म और संगीत इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए कैलाश खेर को काफी संघर्ष करना पड़ा था। कैलाश ने कई सुपरहिट गाने इस इंडस्ट्री को भेंट के रुप में दिए है। भारतीय लोक संगीत और सूफी गानों के साथ-साथ कैलाश ने अन्य कई भाषाओं में भी गाने गाए हैं। जिनमें हिंदी सहित नेपाली, तमिल, तेलुगू, मलयालम, बंगाली, उर्दू, कन्नड़ और उड़िया जैसी भाषाएं शामिल हैं। हालांकि भारतीय संगीत में उनका योगदान इन सभी अन्य भाषाओं के गानों के मुकाबले काफी ज़्यादा है।
कई भाषाओं को बखूबी जानने वाले कैलाश खेर वैसे तो उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं, उनका जन्म यूपी में स्थित मेरठ के एक गांव के कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ। यह कहा जा सकता है कि कैलाश में संगीत का जूनून अपने पिता से ही आया था। उनके पिता मेहर चंद खेर भी एक संगीतकार थे। जो कि परंपरागत लोकसंगीत गाया करते थे।
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14 वर्ष की उम्र में छोड़ दिया था घर
कैलाश को बचपन से ही गाने का काफी शोक था, केवल 4 साल की छोटी उम्र में ही उन्होंने अपनी आवाज के दम परिवार और दोस्तों का दिल जीत लिया था। आगे चलकर कैलाश ने अपने संगीत प्रेम के कारण ही महज़ 14 वर्ष की उम्र में अपना घर छोड़ने का फैसला लिया था। इसे लेकर कैलाश का कहना है कि, "मैनें इसलिए घर छोड़ने का फैसला लिया क्योंकि 'मैं संगीत के प्रति अपना पैशन आगे बढ़ाना चाहता था, जिसके लिए मेरा एकांत में रहना ज़रुरी था।'
आसान नही था संगीत का सफर
घर छोड़ने के बाद कैलाश ने खुद को संगीत से और भी जुड़ा हुआ पाया। वह अलग-अलग जगह घूमे, जहां उन्हे संगीत और गानों के बारे में काफी जानकारी मिली। इतनी सी उम्र में घर छोड़कर अलग रहना कैलाश के लिए आसान नही था, ऐसे में अपने खर्चों को पूरा करने के लिए कैलाश, छोटे बच्चों को संगीत सीखाकर उनसे 150 रुपए की फीस लिया करते थे।
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कर चुके हैं सुसाइड कपने की कोशिश
वैसे तो वह संगीत में शिक्षा पाने के लिए कोई खास स्कूल या गुरु नहीं ढ़ूंढ पाए लेकिन वह पंडित कुमार गांधर्व, पंडित भीमसेन जोशी, नुसरत अली खान और लता मंगेशकर के गानों को ही अपनी प्रेरणा का स्त्रोत मानते थे। हर इंसान की जिंदगी में ऐसा समय भी ज़रुर आता है जब वह हर उम्मीद छोड़ देता है। कैलाश की जिंदगी में वह समय तब आया जब साल 1999 में उन्होनें अपने एक दोस्त के साथ मिलकर हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्ट का बिज़नेस शुरु किया, जिसके बाद उस बिज़नेस में भारी नुकसान के चलते उन्हें वह बन्द करना पड़ा। इस नुकसान का कैलाश को इतना बड़ा झटका लगा कि उन्होनें डिप्रेशन में आकर आत्महत्या कि कोशिश भी की थी।
करियर की शुरुआत रही कुछ खास
कैलाश की किस्मत का तारा तब चमका जब साल 2001 में वह मुंबई गए, मुंबई में कैलाश के कुछ दोस्त ज़रुर थे पर वहां गुज़ारा कर पाना उनके लिए काफी मुश्किल था। इस नये शहर में भी संगीत के प्यार ने ही कैलाश की हिम्मत को बनाए रखा। आखिरकार उनकी हिम्मत और सब्र का फल उन्हें जल्द ही मिल गया। जब म्यूजिक डायरेक्टर राम संपत को अपने एड के जिंगल के लिए एक नई आवाज़ की तालाश थी, और अन्होनें यह मोका कैलाश को दिया। बस फिर तो इसके बाद कैलाश का एड इंडस्ट्री में बोलबाला हो गया और उन्हें एक के बाद एक जिंगल्स गाने को मिलते रहे।
बॉलीवुड में नाम कमाने के लिए किया काफी संघर्ष
कैलाश को अब बॉलीवुड की राह तय करनी थी, जिसका सफर उनके लिए ज़रा भी आसान नहीं था, लेकिन जल्द ही उनकी मेहनत तब रंग लाई जब उन्हें फिल्म ‘अंदाज़’ में पहली बार गाने का मौका मिला। इस फिल्म का लोकप्रिय गाना 'रब्बा इश्क न होवे' कैलाश ने ही गाया था। इस गाने के फेमस हो जाने के बाद 'वैसा भी होता है' पार्ट 2 में कैलाश ने गाना 'अल्लाह के बंदे' गाया। जो कि आज तक लोगों की ज़ुबान पर छाया हुआ है। आज भी लोग कैलाश को इसी गाने से जानते हैं। इसके साथ ही उन्होनें बॉलीवुड में कई बेहतरीन गाने भी गाए हैं, जिनमें से दो गानों के लिए उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर का अवॉर्ड भी मिल चुका है।