पिछले तीन दशकों में पैदा हुए किसी भी शख्स के लिए, जया बच्चन एक फिल्मी मां के तौर पर नजर आती हैं, जिनके हाथ में पूजा की थाली है और उनके रील लाइफ बेटे उनके आस पास रहते हैं, वह अपने बेटों को दुलारती हैं, उनके संघर्ष पर आंसू बहाती हैं। हालांकि, हिंदी फिल्मों ने मां के करिदार को काफी अहमियत दी गई है, मगर सिनेमा के दौर में एक वो वक्त भी था जब जया बच्चन का दूसरा नाम 'गुड्डी' हुआ करता था। जया का यह नाम उनकी इसी नाम के फिल्म में शानदार अभिनय करने से पड़ा।
उनके 73वें जन्मदिन पर, हम ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित गुड्डी (1971) को एक बार फिर से याद करने की कोशिश करते हैं, जिसमें जया ने धर्मेंद्र, उत्पल दत्त और समित भांजा के साथ अभिनय किया था।
गुड्डी एक 17-18 साल की लड़की है, जिसका नाम कुसुम (जया बच्चन) है, जिसे गुड्डी कहा जाता है। फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र के प्यार में पड़ जाती है। वह अपने भोले मन में, वह खुद को कृष्ण की मीरा मानने लगती हैं। गुड्डी अपने पिता (ए के हंगल), भैय्या और भाभी (सुमिता सान्याल) के साथ रहती है। वह फ़िल्म अभिनेता धर्मेन्द्र, जिन्होंने खुद ही इस फिल्म में अपनी अपीरियंस दी है, के प्यार में पड़ जाती है। उसके बम्बई जाने तक किसीको इस बात का पता नहीं चलता, जहां उसके भाभी का भाई नवीन (समित भांजा) उससे प्यार करने लगता है। गुड्डी, नवीन को धर्मेन्द्र से अपने प्यार की बात बताती है। उसका प्रेम जीतने नवीन अपने चाचा (उत्पल दत्त) की मदद लेता है, जो धर्मेन्द्र को पहले से जानता है। उनकी हेल्प से सभी गुड्डी को वास्तविक जगत और फिल्म जगत के भेद समझाते हैं, इसके बाद गुड्डी नवीन से शादी करने के लिए मान जाती है।
जैसा कि हम फिल्म की शुरुआत में एक युवा जया भादुड़ी से मिलते हैं, उनकी बच्चे की मासूमियत उस तरह से स्पष्ट होती है जिस तरह से वह अपने शिक्षक से स्पष्ट रूप से झूठ बोलती हैं। मगर अपनी अपीरियंस से जया भादुदी ने इस फिल्म में एक संजीदा किरदार निभाया है।
गुड्डी को ऋषिकेश मुखर्जी की तरफ से लिखा और डायरेक्ट किया गया है और उनकी अन्य फिल्मों की तरह, गुड्डी भी संदेश को प्रभावी ढंग से लोगों के हवाले करती है। यह फिल्म की सादगी पर भी निर्भर करती है। बोले रे पपीहरा जैसे गानों ने दशकों तक अपनी फ्रेंशनेश का एसेसेंस बिखेरा है।