मैंने दिल से कहा ढूंढ लाना खुशी, नासमझ लाया गम, तो ये गम ही सही..इरफान खान हमारे बीच नहीं रहे। उनकी फिल्म के इस गाने की पंक्तियां उनकी जिंदगी पर बिलकुल फिट बैठती हैं...एक चमकता सितारा जिसकी एक्टिंग की बदौलत बॉलीवुड और हॉलीवुड जगमगा रहे थे, आज बुझ गया। इरफान जैसे संवेदनशील अदाकार की कमी बॉलीवुड में कोई पूरी नहीं कर पाएगा। साथ ही हॉलीवुड को भी भारत के इस शानदार एक्टर की कमी जरूर खलेगी।
इरफान के बारे में जितना कहा जाए उतना कम है। बोल पड़ने को उतावली सी वो आंखें, लंबी नाक, इंप्रेसिव चेहरा, पारंपरिक हीरो की इमेज से बिलकुल इतर इरफान की अदाकारी ने बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड को भी बहुत कुछ दिया है। पान सिंह तोमर हो या चंद्रकांता का चतुर चालाक ऐयार, पीकू का ड्राइवर हो या बिल्लू का नरम दिल बारबर। इरफान ने हर किरदार को शिद्दत से जिया और निभाया है। जब वो किसी किरदार को निभाते थे तो लगता ही नहीं कि एक्टिंग कर रहे हैं, लगता है मानों जी रहे हैं, खुलकर, उस किरदार को जीवंत बना देने की कला ने की बदौलत ही उन्हें दुनिया की हर एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री ने सिर आंखों पर बिठाया, हमेशा।
इरफान एक्टिंग परिवार से नहीं आते थे लेकिन एक्टिंग उनसे पैदाइशी तौर पर जुड़ी रही क्योंकि उसका कीड़ा उन्हें बचपन में ही कभी काट गया था। धर्म, समाज और परंपराओं को मानने वाले परिवार में ऐसे शख्स जिसे परंपराएं बिलकुल रास ना आईं। जयपुर में वालिद की टायर की दुकान उन्हें जी का जंजाल लगती थी, हां जब वालिद जंगल ले जाया करते तो इरफान के चुलबुलेपन में मानों पंख लग जाया करते। लेकिन पिता के बिजनेस को आगे बढ़ाने का ख्याल इरफान के दिमाग में कहीं नहीं था, वो चाहते थे मुंबई पहुंचना, जहां उनकी अदाकारी को दुनिया देखे और सलाम करे। लेकिन ये इतना आसान नहीं था औऱ इरफान इस बात को अच्छी तरह समझते भी थे।
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इऱफान ने एक इंटरव्यू में इस बात की तस्दीक की थी कि वो बचपन में भी अदाकारी की दुनिया के दीवाने थे, लेकिन मां बाप की ख्वाहिशें उनकी ख्वाहिशों से जुदा थी, लगभह हर मां बाप की तरह। उनके वालिद चाहते थे कि तीन बच्चों में सबसे बड़ा बच्चा कोई हुनर सीख ले तो घर की नैया पार लग जाए। दूसरी तरफ वालिदा का ख्वाब था कि पढ़ लिखकर कोई इज्जतदार नौकरी जैसे टीचर या लेक्चचर बन जाएं। लेकिन मां बाप की ख्वाहिशों के इतर इरफान के दिल में एक्टिंग कुलांचे मार रही थी। जयपुर के स्कूल वो जाते जरूर थे लेकिन क्लास में सबसे आखिरी की बैंच पर बैठकर पढ़ाई लिखाई के इतर सब कुछ सोच लिया करते थे। क्लास में क्या चल रहा है, मैडम क्या पढ़ा रही हैं, इससे इरफान को कोई वाबस्ता नहीं होता था। वो तो बस जुगाड़ लगाया करते थे कि कैसे जयपुर से निकल कर मुंबई पहुंचा जाए।
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वालिदा से बोल डाला झूठ
हालांकि झूठ बोलने में इरफान को कोई मजा नहीं आया लेकिन अपने सपने को पूरा करने के लिए ये नमक में आटे की तरह जरूरी और छोटा सा था। इस झूठ की बदौलत ही इरफान नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की दहलीज तक पहुंच पाए। उन्होंने अपनी अम्मी से कहा कि दिल्ली में कोई कोर्स करवाया जा है जिसके बाद उनकी जयपुर के कॉलेज में लेक्चरर की जॉब लग जाएगी। वालिदा ने खुशी खुशी हां कर दी और इस तरह इरफान एक्टिंग की दुनिया को सजदा करने पहुंच गए दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा। हालांकि यहां भी उनके लिए रेड कार्पेट जैसा कुछ नहीं था।
आसान नहीं थी NSD की राह
एक झूठ से इरफान का काम नहीं बना और एनएसडी में उन्हें दूसरा झूठ उगलना पड़ा। जैसा कि एनएसडी का नियम है कि वहां उसी को प्रवेश मिलेगा जिसने पहले कम से कम दस ड्रामा या नाटकों में काम किया हो। इरफान इस क्राइटेरिया में फिट नहीं हो रहे थ थे, इसलिए उन्होंने अपने फार्म में झूठ लिखा कि उन्होंने इतने नाटकों में काम किया है। वो उतावले थे, मुंबई पहुंचने के लिए, अदाकारी उनके अंदर हिलोरे मार रही थी।
NSD में मिली मीरा नायर
NSD में इरफान काफी शर्मीले टाइप के लड़के रहे। पतला सा, बड़ी बड़ी लाल आंखों वाला काला सा लड़का जो दिन भर हाथ में स्क्रिप्ट लिए रखता है, उस बैच में लगभग सभी लोग उनसे ज्यादा स्मार्ट थे। इरफान को एनएसडी के नाटकों की स्क्रिप्ट में भी अहम रोल नहीं मिलते थे, वो लीड रोल के लिए तरसते थे लेकिन दूसरे स्मार्ट लड़कों को ये रोल मिल जाते थे। लेकिन पहले साल से तीसरे साल तक आते आते नजारा बदल चुका था। इरफान की काबिलियत दिखने लगी थी, एक्टिंग को लेकर उनका जुनून दिखा तो उन्हें लीड रोल मिलने लगे और उसी दौरान एनएसडी में आई प्रख्यात फिल्म मेकर मीरा नायर। मीरा की मुलाकात इरफान से करवाई गई और मीरा को अपनी फिल्म सलाम बॉम्बे के लिए इरफान पसंद आ गए।