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Hindi Diwas: इस फिल्म में धर्मेंद्र के हिंदी बोलने के अंदाज पर फिदा हो गए थे लोग

1975 में आई ये फिल्म अपनी क्लिष्ट लेकर मजेदार हिंदी के चलते इतनी मशहूर हो गई कि इसने अपनी लागत से कई गुना ज्यादा कमाई कर डाली।

Written by: Vineeta Vashisth
Updated : September 14, 2021 16:37 IST
Chupke Chupke Film
Image Source : YOUTUBE GRAB Chupke Chupke Film

आज देश भर में हिंदी दिवस मनाया जा रहा है। हिंदी हमारी राजभाषा है औऱ देश भर में इसका सम्मान किया जाता है। लेकिन देखा जाए तो हिंदी सिनेमा में हिंदी को प्रोत्साहित करने वाली फिल्में कम ही हैं जिसने इस भाषा की योग्यता को दिखाया हो। साल 1975 के दशक में एक ऐसी ही फिल्म आई थी जिसने अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी की योग्यता को ना केवल दिखाया बल्कि लोगों को मजबूर कर दिया कि वो हिंदी को अहमियत दें। 

इस फिल्म का नाम था चुपके चुपके। फिल्म में धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन के  साथ साथ शर्मिला टैगोर और जया भादुड़ी जैसे बड़े कलाकार थे और ओम प्रकाश, असरानी जैसे कलाकारों ने भी चार चांद लगाए। पिछले साल ही इस फिल्म को  रिलीज हुए पूरे 45 साल हुए थे। उस वक्त ओपनिंग के साथ ही ये फिल्म क्लासिक हिट बन गई थी जिसे आज भी उतने ही चाव से देखा जाता है।

भारत के मध्यम वर्ग को लेकर हल्की फुल्की मनोरंजक फिल्में बनाने के लिए मशहूर ऋषिकेश मुखर्जी ने इस फिल्म का निर्देशन भी किया था और वो इसके निर्माता भी थे। कहते हैं कि ये फिल्म उत्तम कुमार की बंगाली फिल्म 'छद्मभेशी' का रीमेक थी।

10 लाख में बनी और 2.22 करोड़ कमाए

फिल्म अपनी रोमांचक कहानी और हिंदी की वजह से इतनी चली कि इसे बनाने में मुखर्जी साहब को मात्र 10 लाख रुपए लगे थे और फिल्म ने 2.22 करोड़ की कमाई की थी। फिल्म में ना तो महंगे सेट थे और ना ही विदेशी लोकेशन। कलाकारों के कपड़े भी बिलकुल मध्यम वर्गीय जैसे। अमिताभ और धर्मेंद्र की जोड़ी ने क्या खूब कमाल जमाया कि फिल्म सुपरहिट साबित हुई थी।

कहानी की बात करें तो इस फिल्म में अंग्रेजी को उच्च दर्जे का मानने वाले और अंग्रेजी दा लोगों को अहमियत देने वाले ओमप्रकाश को हिंदी का मोल समझाने के लिए प्रोफेसर बने धर्मेंद्र हिंदी में बात करते हैं। हालांकि इस दौरान मजाकिया लहजे में काफी क्लिष्ट हिंदी का इस्तेमाल किया गया लेकिन अगर दूसरे नजरिए से देखे तो फिल्म के जरिए ऋषिकेश मुखर्जी ने इस फिल्म के जरिए हिंदी के नए आयाम दिखाए। हिंदी कितनी विस्तृत है, कितनी आसान है, संवेदना व्यक्त करने के लिए कितनी उपयुक्त है, फिल्म यही दिखाती है।

परिमल त्रिपाठी बने धर्मेंद्र ने एक तरफ खुद को होशियार समझने वाले ओमप्रकाश के अंग्रेजी दा अहंकार को हिंदी के जरिए तोड़ डाला, वो काबिलेतारीफ है।

चुपके चुपके में आपको क्लिष्ट हिंदी भी सुनने को मिलेगी और बोलचाल की हिंदी। यहां आपको हीरो बंबइया हिंदी भी बोलता दिखेगा और शुद्ध हिंदी में दूसरों को असमंजस में भी डाल देगा। हालांकि फ़िल्म को देखते समय ये सोचना बेकार है कि इसका कैसे उपयोग किया जा रहा है, इस मामले में गए तो निराश होंगे लेकिन हिंदी भाषा के कई तरह के प्रयोग की बात की जाए तो फिल्म हिंदी की नैया पर सवार होकर आपको कॉमेडी में डूबने उतरने का मौका जरूर देगी।

फिल्म में जब धर्मेंद्र ड्राइवर प्यारे बनकर राघवेंद्र जीजाजी बने ओमप्रकाश के आगे हिंदी के भारी भरकम शब्दों का प्रयोग करते हैं तो एकबारगी दर्शक भी भ्रमित हो जाते हैं कि क्या बोला जा रहा है। फिल्म में हिंदी को सहज और कठिन हिंदी के मायाजाल में ऐसा दिखाया गया है जो मन में गुदगुदी पैदा करता है साथ ही ृ दर्शकों को हिंदी की अमहियत पता चलती है। कैसे हिंदी पद औऱ उम्र के लिहाज से संस्कारों को समझ कर एक दूसरे के लिए संबोधित की जाती है, ये समझ में आता है। फिल्म के गाने भी काफी मशहूर हुए थे। अबके सजन सावन में। चुपके चुपके चल री पुरवैया..

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