नई दिल्ली: नवाजुद्दीन सिद्दीकी आज अपना 45वां बर्थडे मना रहे हैं। 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' से स्टारडम का स्वाद चखने वाले नवाज को आज किसी विशेष पहचान की जरूरत नहीं। सेक्रेड गेम्स के गणेश गायतोंडे का आज कौन नहीं जानता है? नवाज के बर्थडे पर आज उन्ही का फेमस डायलॉग्स याद आता है - 'कभी -कभी लगता है अपुन ही भगवान है'। उत्तर प्रदेश के मुज्जफ्फरनगर के रहने वाला लड़का आज अपने काम की वजह से बॉलीवुड में एक अलग पहचान बनाने में कायम हुआ है। एक तरफ नवाज ने 'मंटो', 'ठाकरे' जैसी फिल्में की तो वहीं दूसरी तरफ सेक्रेड गेम, गेम्स ऑफ वासेपुर में अपनी मार-धार रोल की वजह से आज भी लोग इस रोल में उन्हें देखना बहुत पसंद करते है।
नवाज ने दिल्ली में साल 1996 में दस्तक दी जहां उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से अभिनय की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वह किस्मत आजमाने मुंबई चले गए। नवाज को खुद कभी ये उम्मीद नहीं थी कि वे इतने ज्यादा मशहूर हो जाएंगे।
नवाज ने एक्टिंग स्कूल में दाखिला तो जैसे तैसे ले लिया था, लेकिन उनके पास रहने को घर नहीं था। इसलिए उन्होंने अपने एक सीनियर से कहा कि वो उन्हें अपने साथ रख लें। इसके बाद नवाज उनके अपार्टमेंट में इस शर्त पर रहने लगे कि उनको वह खाना बनाकर खिलाएंगे।
नवाज अपने संघर्ष के दिनों में कुछ भी करने गुजरने को तैयार रहते थे। इसलिए वह कभी वॉचमैन की नौकरी भी किया करते थे। फिल्मों में आने के बाद भी नवाज ने वेटर, चोर और मुखबिर जैसी छोटी- छोटी भूमिकाओं को करने में भी कोई शर्म महसूस नहीं की। एक्टर ने शूल, मुन्ना भाई MBBS और सरफरोश जैसी फिल्मों में ये छोटे-छोटे किरदार निभाए हैं।
नवाज मुंबई तो आ गए थे लेकिन दैनिक खर्च चलाने के लिए उनके पास कोई नौकरी नहीं थी। कड़ी मशक्कत के बाद उन्हें एक चौकीदार की नौकरी हासिल हुई, लेकिन इसके लिए भी उन्हें किसी दोस्त से उधार लेकर सिक्योरिट अमाउंट भरना पड़ा था।
नवाज को यह नौकरी मिल तो गई लेकिन शारीरिक रूप से वह काफी कमजोर थे। इसलिए ड्यूटी पर वह अक्सर बैठे ही रहते थे। यही कारण था कि मालिक के देखने के बाद उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा। वहीं, उनको सिक्योरिटी अमाउंट भी रिफंड नहीं किया गया।
यह बात शायद आपको हैरानी में डाल देगी कि नवाज इतने साधारण एक्टर हैं कि बड़े स्टार होने के बावजूद भी उनका कोई अपना पीआर मैनेजर नहीं है। वो अपने इंटरव्यू और डेट्स खुद ही हैंडल करते आ रहे हैं। बॉलीवुड पार्टीज में भी वह बहुत कम नजर आते हैं। नवाज को चार फिल्मों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
नवाज को फिल्म 'कहानी' से नई पहचान मिली। फिल्म में वह विद्या बालन के साथ नजर आए थे। नवाज का मानना था कि जब उन्होंने मुंबई में एंट्री की थी तो उनके मन में जरा सा भी ख्याल नहीं आया था कि वह इतने सफल अभिनेता बन जाएंगे।
उन्होंने कहा, 'मैं मुंबई में बॉलीवुड अभिनेता बनने नहीं आया था बल्कि टीवी में काम करना चाहता था लेकिन किसी ने भी मुझे टीवी में काम करने का मौका नहीं दिया, इसलिए मैंने पांच-छह साल तक सी-ग्रेड फिल्मों में काम किया।'
नवाजुद्दीन को 'गैंग्स ऑफ वासेपुर', 'तलाश' और 'बदलापुर' के किरदारों के लिए हर तरफ से काफी सराहना मिली थी। लंबे संघर्षों के बाद 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' ने नवाज की जिंदगी सफलता के रास्ते पर लाकर खड़ी कर दी थी। इसके बाद तो बॉलीवुड में उनका सिक्का चलने लगा। सलमान खान के उन्होंने साथ फिल्म 'बजरंगी भाईजान' और किक में काम किया।
बतौर अभिनेता उन्होंने दशरथ मांझी के जीवन पर आधारित फिल्म 'मांझीः द माउंटेन मैन' में दशरथ मांझी का किरदार निभाया था। उन्होंने इस किरदार को इतनी खूबसूरती से निभाया कि आज भी उन्हें उनके इस किरदार से पहचाना जाता है।
शुरुआती दौर में आमिर खान की फिल्म 'सरफरोश' में उनके अभिनय को देखकर निर्देशक अनुराग कश्यप ने नवाज को 'ब्लैक फ्राइडे' में चुनने का फैसला लिया। उसके बाद 'फिराक', 'न्यूयॉर्क' और 'देव डी' जैसी फिल्मों में भी उन्हें काम करने का मौका मिल गया।
नवाज फिल्म इंडस्ट्री में तीन खानों के साथ काम कर चुके हैं। शाहरुख खान के साथ उन्हें फिल्म रईस में एक इंस्पेक्टर के किरदार में देखा गया था।