हिंदी सिनेमा की कॉमेडी ने अपने गुदगुदाने वाले पंच से हमेशा से लोगों को कायल बनाया है। एक भावपूर्ण कॉमेडी जिसमें किसी तरह का छिछोरापन न हो, इसे रुपहले पर्दे पर उताराना फिल्म निर्देशकों के लिए खास तौर पर चुनौती रहती है। मौजूदा वक्त की मसाला फिल्मों और मेलोड्रामा के ठीक उलट हिंदी सिनेमा ने कॉमेडी के उस सुनहरे दौर को भी देखा है जहां इसके स्तर को कायम रखने के लिए निर्देशकों ने बहुत मेहनत की। बॉलीवुड में ऋषिकेश मुखर्जी एक ऐसे डायरेक्टर रहे जिनकी फिल्मों ने हिंदी सिनेमा में कॉमेडी के एक नए आयाम को जोड़ दिया।
ऋषि दा ने अपनी फिल्मों में हंसी की गहराई से व्यक्त किया और सिनेमा में सही सामाजिक परिवेश को हल्के ढंग से रखने का साहस दिखाया। शतरंज के शौकीन ऋषिकेश मुखर्जी ने अपनी फिल्मों के हर किरदार को खास मानते थे। उनके लिए फिल्में मानो शतरंज की बिसात हो और फिल्म में काम करने वाले किरदार उनके मोहरे.. जो फिल्म में छोटे रोल के लिए भी होते थे लेकिन एक शतरंज के प्यादे की तरह अपनी खास मौजदूगी दर्ज करा जाते थे। देवेन वर्मा और असरानी जैसे किरदार उनकी फिल्मों में शतरंज के इन्हीं मोहरों की तरह थे जिनका फिल्मों में थोड़े वक्त के लिए भी होना फिल्म की कहानी के लिए काफी जरूरी हो जाता था।
अपनी फिल्मों के किरदारों को चुनने मे ऋषिकेश मुखर्जी का कोई सानी नहीं है। उन्होंने उस दौर के बड़े से बड़े सितारों को अपनी फिल्में में एक आम पेशे में दिखाया। उनकी फिल्में बड़े-बड़े स्टारडम वाले स्टार भी बावर्ची और ड्राइवर के रोल में नजर आते थे। मिसाल के तौर पर साल 1972 में आई फिल्म 'बावर्ची' में उन्होंने तब के सुपरस्टार राजेश खन्ना को बावर्ची के किरदार में दर्शकों के सामने पेश किया। ठीक वैसे ही अपनी सफल फिल्मों में से एक 'चुपके-चुपके' में ऋषि दा ने हैंडसम धर्मेंद्र को ड्राइवर तक का रोल निभाने के लिए मजबूर कर दिया। मगर जैसा कि हम सभी जानते हैं ऋषि दा की फिल्में सामाजिक ताने बाने के साथ घर परिवार की कहानियों के लिबास में अपनी फिल्मों को दर्शकों के सामने लाते थे, तो जाहिर इन किरदारों का उनकी फिल्मों में आना लाजमी है।
उनकी फिल्मों में - 'अनुराधा' (1960), 'छाया' (1961), 'असली-नकली' (1962), 'अनुपमा' (1966), 'आशीर्वाद' (1968), 'सत्यकाम' (1969), 'गुड्डी' (1971), 'आनंद' (1971) ), 'बावर्ची' (1972), 'अभिमान' (1973), 'नमक हराम' (1973), 'मिली' (1975), 'चुपके-चुपके' (1975), 'आलाप' (1977) और 'गोलमाल' (1979)। उनकी आखिरी फिल्म 1983 में 'अच्छा बुरा' थी, इस फिल्म में राज बब्बर ने रवि लाला, अनीता राज ने रीता रॉय और अमजद खान ने मोहम्मद शेर खान के रूप में अभिनय किया, फिल्म बहुत सफल रही।
निजी जिंदगी की बात करें तो ऋषिकेश मुखर्जी पत्नी 30 साल पहले उन्हें छोड़ कर चली गईं। उनके 5 बच्चों में 3 बेटियां और दो बेटे थे। कहते हैं ऋषिकेश मुखर्जी एक पशु प्रेमी थे और उनके मुंबई के घर में कई कुत्ते थे। बहुत लंबे समय तक वह अकेले रहते थे। ऋषिकेश मुखर्जी की तबीयत ठीक नहीं होने के कारण 27 अगस्त 2006 को मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती होने के बाद उनका निधन हो गया।
नश्वर काया से ऋषिकेश मुखर्जी भले ही चले गए हों लेकिन वह अपनी फिल्मों के जरिए हर खास और आम लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे।