फिल्म समीक्षा
स्वच्छ भारत का संदेश लिए अभिनेता अक्षय कुमार और अभिनेत्री भूमि पेडनेकर की फिल्म 'टॉयलेट: एक प्रेम कथा’ रिलीज हो गई है। फिल्म देश में शौचालय की समस्या पर केंद्रित है। फिल्म की कहानी केशव (अक्षय कुमार) और जया (भूमि पेडनेकर) की है। जया जहां पढ़ने में अच्छी और टॉपर है वहीं केशव सिर्फ 12वीं पास है। लेकिन दोनों का प्यार परवान चढ़ता है और दोनों शादी कर लेते हैं। शादी के अगले दिन जब गांव की महिलाएं जया को लोटा पार्टी में शामिल करने आती हैं तो जया का पारा चढ़ जाता है। उसे पता चलता है कि उसके ससुराल में टॉयलेट नहीं है तो वो ससुराल छोड़कर मायके चली जाती है। केशव घर में शौचालय बनवाने की बात करता है लेकिन उसके पिता (सुधीर पांडे) नहीं चाहते कि घर के जिस आंगन में तुलसी की पूजा होती है वहां शौचालय बने। फिर किस तरह केशव और जया गांव में शौचालय बनवाने की जद्दोजहद करते हैं वही है ‘टॉयलेट: एक प्रेम कथा’ की कहानी।
अभिनय
अभिनेता अक्षय कुमार एक मंझे हुए कलाकार हैं, अक्षय सीरियस रोल जितनी गंभीरता से निभाते हैं उतनी ही तल्लीनता से वो कॉमेडी भी करते हैं। इस फिल्म में अक्षय का देसी अंदाज आपको हंसने पर मजबूर कर देगा। भूमि पेडनेकर की ये दूसरी फिल्म है, लेकिन उनका अभिनय देखकर लगता है उनमें एक अच्छी अभिनेत्री बनने के सारे गुण हैं। जया नाम की लड़की का किरदार उन्होंने बखूबी निभाया है। अक्षय के पिता के रोल में सुधीर ने अच्छा अभिनय किया है। वहीं दिव्येन्दु शर्मा अक्षय के भाई के किरदार में हमें हंसाते हैं। अनुपम खेर के पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था, लेकिन सनी लियोनी को लेकर उनकी दीवानगी हंसाती है।
म्यूजिक
फिल्म के गाने 'लट्ठमार होली' और 'हंस मत पगली' पहले ही हिट हो चुका है, फिल्म में ये गाने आते हैं तो अच्छे लगते हैं। आप सिनेमाहॉल से निकलने के बाद भी गाने गुनगुनाएंगे।
खूबियां
फिल्म एंटरटेनिंग है। आप पूरे परिवार के साथ इसे एन्जॉय कर सकते हैं। खासकर गांवों में जहां अभी भी शौचालय नहीं है उन्हें ये फिल्म जरूर दिखानी चाहिए, शायद इस फिल्म का कुछ असर उनपर जरूर होगा। शौचालय जैसे विषय पर बनी ये अपनी तरह की एकलौती फिल्म है जिस पर निर्देशक श्री नारायण सिंह पूरी तरह खरे उतरे हैं।
फिल्म के संवाद काफी चुटीले लिखे गए हैं। खासकर वन लाइनर हमें काफी हंसाते हैं।
कमियां
इंटरवल के पहले तक फिल्म काफी मनोरंजक थी लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म मनोरंजन कम करती है और सरकारी विज्ञापन ज्यादा लगती है। फिल्म बहुत लंबी है, फिल्म की एडिटिंग पर थोड़ा ध्यान दिया जाता तो ये फिल्म और गहरी छाप छोड़ती।
स्टार
इस फिल्म को मैं 3 स्टार दूंगी।
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