अपने जमाने के फेमस, चार्मिंग फारुख शेख की आज 71वीं जयंति है। बॉलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले फारुख हमेशा से अलग तरह कि फिल्मे किया करते थे। फारुख अक्सर उस तरह कि फिल्म करते थे जो समाज की सच्चाई को दिखाए।
पैरेलल सिनेमा को ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले दिग्गज एक्टर फारुख शेख का जन्म गुजरात के अमरोली में 25 मार्च 1948 को हुआ था। 5 भाइयों और बहनों में फारुख सबसे बड़े थे। उनके पिता मुस्तफा शेख मुंबई के जाने माने वकील थे। उनका इरादा भी पिता की विरासत यानी वकालत के क्षेत्र में काम करना था। लेकिन वकील बनने के बाद उन्हें यह काम जमा नहीं तो फिर उन्होंने यह काम छोड़ दिया।
फारुख ने मुंबई के सेंट मैरी स्कूल में पढ़ाई की थी। उस दौरान वह पढ़ाई के साथ नाटकों और खेलकूद की गतिविधियों में जमकर भाग लेते थे। उन्होंने कॉलेज के दौरान भी अभिनय का साथ नहीं छोड़ा। जब वकील का काम नहीं जमा तो थियेटर में रुचि बढ़ गई। उन्होंने कई नाटकों में अभिनय किया। उनकी एक्टिंग को देखकर उन्हें गर्म हवा फिल्म ऑफर हुई थी।
गर्म हवा का निर्देशन डायरेक्टर एम एस सैथ्यू कर रहे थे। फिल्म ऑफर देने के दौरान यह शर्त रखी गई थी कि उन्हें काम करने के लिए कोई मेहनताना नहीं मिलेगा। फिल्म के रिलीज होने के 5 साल बाद फारुख को 750 रुपये मिले थे। बता दें इस फिल्म के रिलीज होने के बाद फारुख को कई फिल्मों के प्रस्ताव मिलने लगे थे।
फारुख शेख ने फिल्मों में काम करने के साथ टीवी के लिए काम किया था। उनका शो जीना इसी का नाम है काफी मशहूर हुआ था। शो में उन्होंने कई सेलिब्रिटीज का इंटरव्यू लिया था। फिल्म शतरंज के खिलाड़ी, उमराव जान, बाजार, कथा, चश्म-ए-बद्दूर और क्लब 60 जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में काम किया था। 28 दिसंबर 2013 को दिल का दौरा पड़ने से फारुख शेख का निधन हो गया था।
'शतरंज के खिलाड़ी', 'उमराव जान', 'बाजार', 'चश्म-ए-बद्दूर', 'क्लब 60' और कई बेहतरीन फिल्मों में अपने सादगी भरे अभिनय से दिल जीतने वाले एक्टर फारुख शेख का 25 मार्च को जन्मदिन है। 'चश्मेबद्दूर' का सीधा-सीधा चश्मेवाला सिद्धार्थ, जो चमको वॉशिंग पाउडर खरीदते-खरीदते दिल हार बैठता है। वहीं 'कथा' में इसका ठीक उल्टा शातिर बासू। जो हर बात में पुरुषोत्तम जोशी बने नसीरुद्दीन शाह की बत्ती लगाता रहता है। फारुख शेख की बर्थ एनिवर्सिरी पर आइए बताते हैं उनकी जिंदगी के कुछ दिलचस्प किस्से...
फारुख स्कूली दिनों से न केवल क्रिकेट के दीवाने थे बल्कि अच्छे क्रिकेटर भी थे। जब वह सेंट जेवियर कॉलेज में पढ़ने गए तो उनका खेल और निखरा। सुनील गावस्कर फारुख के अच्छे दोस्तों में थे। फारुख शेख लॉ के स्टूडेंट थे और उनके पिता चाहते थे कि फारुख भी उनकी तरह वकील के तौर पर नाम कमाएं लेकिन फारुख की रुचि इस पेशे से ज्यादा एक्टिंग में थी।
2002 में टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए गए एक इंटरव्यू में फारुख शेख ने कहा था, मैं कभी कॉमर्शियल पसंद नहीं रहा। लोग मुझे पहचानते हैं, देख कर मुस्कुराते हैं, हाथ हिलाते हैं। मगर मुझे कभी खून से लिखा कोई खत नहीं मिला। जब राजेश खन्ना सड़क से गुजरते थे तो ट्रैफिक रुक जाता था। मुझे ये सब न मिलने से फर्क नहीं पड़ता। मगर मुझे जब अपनी मर्जी का काम नहीं मिलता है तो फर्क पड़ता है।
फारुख शेख संपन्न परिवार से जरूर थे मगर पिता के निधन के बाद उन्होंने छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी को अपने कंधों पर उठाया। उन्होंने रेडियो और टीवी पर कार्यक्रम किए लेकिन सिर्फ पैसों की खातिर फिल्मों में काम करना उन्हें मंजूर नहीं था इसीलिए जब एक्टर एक साथ दर्जनों फिल्में साइन करते थे, फारुख शेख एक बार में 2 से ज्यादा फिल्मों में काम नहीं करते थे।
2014 में रिलीज हुई 'यंगिस्तान' फारुख शेख की आखिरी फिल्म थी। फारुख शेख टीवी शो 'जीना इसी का नाम है' के लिए मशहूर हुए। इस शो में उन्होंने कई जानी मानी हस्तियों के इंटरव्यू किए। 28 दिसंबर 2013 को फारुख साहब दिल का दौरा पड़ने से इस दुनिया को अलविदा कह गए।