बेहतरीन सिनेमा की खोज अगर आप कर रहे हैं तो आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ आपकी उस खोज को पूरा करती हुई नजर आती है, जिसमें जिंदगी की कहानी को बेहद संजीदा अंदाज में फिल्म निर्देशक नितेश तिवारी ने बनाया है। अखाड़े की भूरी मिट्टी की महक और धमक के बीच यह फिल्म एक ऐसे इंसान की दास्तान है जो एक पिता, एक कोच के साथ ही अपने सपनों को पूरा करने के लिए जिंदगी की कहानी में रंग भरता हुआ नजर आता है और इसी का नाम है ‘दंगल’।
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फिल्म की पटकथा जितनी शानदार है उतना ही गजब का फिल्म का संपादन है जो कहानी को एक लय के साथ बयां करता है। आमिर खान के अभिनय की एक ऐसी पाठशाला है जिसके हर पेज पर आपको एक अलग ही रंग नजर आता है। इस बार भी महावीर फोगट के 25 से 55 साल के किरदार को जिस अंदाज में आमिर ने पर्दे पर जिया है वह देखने लायक है। सपनों को जब अपनों के सहारे जीतना हो तो मंजिल पर पहुंचने से पहले का सफर रोचक हो ही जाता है और ‘दंगल’ जिंदगी के एक ऐसे ही सफर की दास्तान है जिसमें जिदंगी के सभी दांव आपको नजर आते हैं।
यह फिल्म एक ऐसे व्यक्ति महावीर फोगट (आमिर खान) की कहानी है जो रेसलिंग की दुनिया में देश के लिए गोल्ड जीतने का सपना रखता था और वह अपने इस सपने को अपने बेटे के माध्यम से पूरा करना चाहता था। बेटे की चाहत के फेरे में उसके घर में एक के बाद एक चार बेटियों का जन्म हो जाता है। महावीर को लगता है कि अब उसका सपना कभी पूरा नहीं हो पाएगा। लेकिन इसी बीच कुछ ऐसी घटना होती है जिसके बाद महावीर अपनी दो बेटियों गीता और बबीता को रेसलिंग की दुनिया में चैंपियन बनाने का इरादा ठान लेता है। फिर क्या था उसके बाद हरियाणा की धरती के भिवानी गांव की ये दोनों बेटियां रेसलिंग की दुनिया में अपना नाम रोशन करती हैं और अपने बापू का सपना सच करती हैं।
बॉक्स ऑफिस पर नितेश तिवारी ने जो सिनेमाई अफसाना ‘दंगल’ बनाया है उसके अखाड़े की भूरी मिट्टी इस बात का संदेश देती है कि अगर हम बेटे और बेटी में भेदभाव किए बिना उनको आगे बढ़ने का समान अवसर दें तो वे पूरी दुनिया में अपनी सफलता से इतिहास रचने का हौसला रखती हैं।
जहां तक कलाकारों के अभिनय की बात है तो कड़क मिजाज कोच के रूप में आमिर खान ने बेजोड़ अभिनय किया है। साक्षी तवंर ने गीता-बबीता की मां रोल में प्रभावी छाप छोड़ी है। सबसे खास बात फातीमा सना शेख और सान्या मल्होत्रा ने गीता-बबीता के किरदार को बखूहबू पर्दे पर जिया है उसके लिए उनकी तारीफ की जानी चाहिए। हरियाणवी अंदाज में गजब की संवाद अदायगी और स्टाइल दर्शकों पर अलग ही छाप छोड़ने में कामयाब रहती है।
कुल मिलाकर फिल्म बहुत शानदार है, फिल्म में डॉयलाग गजब के हैं जो कहानी को आगे बढ़ाते हैं उसी तरह से फिल्म की पूरी पटकथा रिएलिटी के काफी पास है और सबसे खास बात फिल्म का अंत भी उतना ही रोचक है जो दर्शकों को बांधकर रखता है। देशभक्ति का ज्वारभाटा भी बेहद शानदार अंदाज में फिल्म की कहानी में बयां किया गया है, जिसमें भावनात्मक आवेग के साथ ही हरियाणवी स्टाइल का पूरा पंच शामिल है। फिल्म निर्देशक नितेश तिवारी ने फिल्म को एक कंपलीट पैकेज के तौर पर पेश किया है जिसमें कहानी में एक नयापन है। कलाकारों का उम्दा अभिनय है और गजग का संपादन है जो कहानी कहने की कला का बेजोड़ संगम है।
फिल्म का गीत संगीत पक्ष भी शानदार है फिल्म का टाइटल सॉन्ग ‘दंगल’ दिलेर मेहंदी की आवाज में बेहतरीन बन पड़ा है। ‘हानिकारक बापू’ के बोल उम्दा है। जोनिता गांधी ने ‘गिलहंरियां’ को बेहद मीठी आवाज में गाया है जिसमें गजब की मधुरता है। ‘दंगल’ एक शानदार कहानी पर बेहतरीन निर्देशन में मधुर संगीत के साथ बनाई गई एक कालजयी फिल्म है जिसे देखने का आपको बार बार मन करेगा।
‘दंगल’ एक फिल्म भर नहीं है एक सपने को कैसे जिया जा सकता है उसे जानने की दास्तान है जो आपको एक प्रेरणा देती है। कहानी को बयां करते हुए अखाड़े की छोटी-छोटी बातों और एक बायोपिक फिल्म के निर्माण में जिन को ध्यान रखना चाहिए उसका बेजोड़ उदाहारण है फिल्म ‘दंगल’।