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मणिकर्णिका- द क्वीन ऑफ झांसी: कंगना की 'जिद' के आगे झांसी की रानी कहीं खो गई

आप एक ऐसी कहानी पर फिल्म बना रहे हैं जिसे देश का 'बच्चा-बच्चा' जानता है। तो ये आपकी जिम्मेदारी है कि उसे कुछ हटकर पेश किया जाए ताकि देखते वक्त लगे कि हां.. कुछ नया देख रहे हैं।

Written by: Amit Kumar @amitkemit
Updated on: January 25, 2019 19:11 IST
मणिकर्णिका- India TV Hindi
Image Source : INSTAGRAM मणिकर्णिका

मुंबई: कंगना रनौत में 'टैलेंट' किस कदर भरा है इस बात से हम लगभग हर दिन परिचित होते रहते हैं। कोट इन कोट वाली फेमिनिस्ट कंगना रनौत में जिन महिलाओं ने फेमिनिज्म का झंडा बुलंद की उम्मीद देखी वो फिलहाल बुझती नजर आ रही है! वैसे हो सकता है कि अगर कंगना की कोई अगली ऐसी फिल्म आ रही हो जिसमें उन्हें फेमिनिस्ट दिखाया गया तो अलग बात है कि वे वापस अपने पुराने रूप में आ जाएं। फिलहाल तो कंगना अभी देशभक्त बनी हुई हैं। जोकि अच्छा है। मेरा मतलब है काफी अच्छा है। अगर आपको बॉलीवुड में रहकर कमाई का सबसे आसान जरिया चाहिए तो देशभक्ति पर फिल्म बना दो। फिर चाहे उसमें धाएं....धूं .. हाय हू..... करते सीन से भरी एक बोझिल और भटकती हुई कहानी ही क्यों न हो। 

काफी विवादों के बाद कंगना और सिर्फ कंगना की फिल्म - मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी- रिलीज हुई है। खैर.. फिल्म से पहले जो भी हुआ हो लेकिन कंगना ने फिल्म में जी जान लगा दिया और शायद यही फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी बन गई। कंगना के फैन हैं तो जाहिर सी बात है कि कंगना को ही देखने का मन होगा। लेकिन अगर आप फिल्म में एक्टिंग को देखते हैं तो फिर निराशा इसलिए लगेगी क्योंकि कंगना के अलावा फिल्म में एक से बढ़कर एक दिग्गज एक्टर को केवल क्रेडिट्स में नाम देने के लिए रखा गया है। फिल्म के शुरू से लेकर आखिर तक आप लगभग हर सीन में कंगना का दीदार करते-करते पक जाते हैं। कई बार आपको लगता है कि यार डैनी जैसे एक्टर को इतने दिनों बाद किसी बड़ी फिल्म में देखा है तो थोड़ा और देखने को मिल जाता लेकिन कंगना दीदी ने ऐसा नहीं किया। 

मणिकर्णिका

मणिकर्णिका

जब गांव में क्रिकेट खेलते थे तो जिसका बल्ला होता था वो अपनी मर्जी से मैच चलाता था। जब उसके घर से बुलावा आता तो बल्ला लेकर चला जाता और मैच बिना किसी नतीजे के खत्म हो जाता था नहीं तो वो खुद ही बैटिंग करता रहता था। कंगना ने भी कुछ ऐसा ही किया है। कंगना कि कथिततौर पर चोरी वाली स्क्रिप्ट में झांसी की रानी को लेकर ऐसा कुछ भी नहीं दिखाया गया है जिसे हमने अपने स्कूलों में नहीं पढ़ा हो। 

आप एक ऐसी कहानी पर फिल्म बना रहे हैं जिसे देश का 'बच्चा-बच्चा' जानता है। तो ये आपकी जिम्मेदारी है कि उसे कुछ हटकर पेश किया जाए ताकि देखते वक्त लगे कि हां.. कुछ नया देख रहे हैं। कुछ ऐसा देख रहे हैं जो हम सच में नहीं जानते थे। मणिकर्णिका में एक भी सीन ऐसा नहीं लगा जिसे देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएं। ऐसी फिल्मों में एक्शन सीन्स के बैकग्राउंड में एक खास म्यूजिक बजता है जो आपको गूज़बम्प करने के लिए काफी होता है लेकिन मणिकर्णिका का बैकग्राउंड म्यूजिका आपको कुछ खास नहीं लगता। संजय लीला भंसाली की फिल्मों के फैन हैं तो आपको मणिकर्णिका के सेट्स देखकर लगेगा कि प्रोडक्शन में काफी खर्चा किया गया है। भंसाली साब की पद्मावत का बैकग्राउंड म्यूजिक आज भी बजता है तो एक अलग सी फीलिंग होती है। 'जौहर' वाला सीन आंखों के सामने उतर आता है। लेकिन यहां रानी को लड़ते देख आपको केवल कंगना की तलवारबाजी ही याद रहेगी..रानी का वो सीन याद नहीं रहेगा जिसमें वो दामोदर को लिए किला छोड़कर निकलती हैं। 

मणिकर्णिका

Image Source : TWITTER
मणिकर्णिका

खैर.. कंगनी की वेशभूषा ने दिल जीत लिया। रानी के अवतार में काफी प्यारी लगी हैं। कपड़ों को पहनने का स्टाइल और उन्हें संभाले हुए चलने की अदा को कंगना ने बखूबी निभाया है। फिल्म का एक सीन काफी अच्छा लगता है जिसमें 'विधवा' रानी बाल कटाने को लेकर राजमाता से भिड़ जाती हैं। लेकिन एक सीन से फिल्म नहीं बनती। फिल्म में अंकिता लोखंडे काफी अच्छी लगी हैं। इनके अलावा अतुल कुलकर्णी, डैनी, मुहम्मद जीशान अय्यूब, सुरेश ओबेरॉय, कुलभूषण खरबंदा भी फिल्म में हैं। जैसा कि मैंने ऊपर कहा कि इन एक्टर्स को केवल क्रेडिट्स में नाम देने के लिए रखा गया है। कंगना ने बड़ी मेहनत से फिल्म बनाई है। ये आपको फिल्म देखते वक्त पता चलता है लेकिन ऐसी भी मेहनत क्या करना जो उबाऊ मालूम पड़े। अगर आप मुझसे पूछेंगे कि फिल्म में अच्छा और बुरा क्या है तो मेरा जवाब होगा 'कंगना'... फिल्म में कंगनी अच्छी लगी हैं लेकिन पूरी फिल्म में कंगना ही कंगना हैं इसलिए वे बुरी लगी हैं। कंगना का रानी के रूप में पहनावा और उनका चलना फिरना काफी अच्छा लगा है। 

मणिकर्णिका

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रानी लक्ष्मीबाई का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा है। लेकिन फिल्म का वो आखिरी सीन झूठा है! इतिहास से मैच नहीं खाता। एंटोनिया फ्रेजर ने अपनी पुस्तक, 'द वॉरियर क्वीन' में लिखा है कि रानी की मृत्यू माथा फटने से हुई। उनके माथे में अंग्रेज सैनिक की तलवार लगी थी। जिसके बाद रानी का एक सैनिक उन्हें उठाकर मंदिर में ले गया। यहीं मंदिर में ही रानी के पार्थिव शरीर को पुजारियों ने जला दिया था। क्योंकि ऐसा रानी ने मरने से पहले उनसे कहा था। अब फिल्म में तो ऐसा कुछ नहीं है। अंत में इतना कहना चाहूंगा कि ऐसी फिल्मों के डायलॉग्स सबसे ज्यादा याद रखे जाते हैं। लेकिन मणिकर्णिका में एक भी डायलॉग ऐसा नहीं है जो मुझे याद हो। अब देखना होगा कि क्या फिल्म के डायलॉग्स की तरह लोग इस फिल्म को भी याद रख पाएंगे?

(ये ब्लॉग देश के नंबर वन चैनल इंडिया टीवी के पत्रकार अमित यादव ने लिखा है। )

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