नवीन शर्मा: तब्बू की पहली फिल्म मैंने अजय देवगन के साथ आई ‘विजयपथ’ (1994) देखी थी। इस फिल्म में हालांकि उन्होंने सामान्य मुंबईया फिल्मों की हिरोइन वाला साधारण-सा रोल किया था पर उनका व्यक्तित्व मुझे पसंद आया था। उनकी लंबाई और फंसी-फंसी सी आवाज अच्छी लगी थी। गुलजार निर्देशित पंजाब के आतंकवाद पर बनी फिल्म ‘माचिस’ (1996) में पहली बार उन्हें अपनी अदाकारी को निखारने और दिखाने का मौका मिला था। इस फिल्म में सिख आतंकवाद के उदय के समय पकड़ी जाने वाली एक पंजाबी महिला की भूमिका को उन्होंने बहुत शिद्दत से निभाया था। इसकी काफी सराहना हुई और उन्हें सर्वश्रष्ठ अभिनेत्री का अपना पहला राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड भी मिला।
इसके बाद उन्होंने ‘विरासत’ फिल्म में गांव की अनपढ़ व सीधी-साधी लड़की की गहना की भूमिका को सहज ढंग से निभाया। वो इतनी अच्छी लगी कि यकीन नहीं हो रहा था कि यही लड़की जो ‘पायली झुनमुन-झुनमुन’ गा रही है उसी ने ‘रुक बाबा रुक गिव मी ए लुक’ वाला रोल किया था। कमल हसन के साथ ‘चाची 420’ में भी तब्बू ने बढिय़ा अभिनय किया था पर कमल हसन ही उस फिल्म में छाए रहे थे तब्बू के लिए मौका ही कम था। इसके बाद आई उनकी ‘हम साथ-साथ हैं’ फिल्म काफी सफल रही थी। गुलजार के साथ तब्बू की दूसरी फिल्म आई थी ‘हू तू तू’ जिसमें वह सुनील शेट्टी के साथ थीं। इसमें उन्होंने अभिभावकों द्वारा उपेक्षित बेटी का रोल अच्छे ढंग से निभाया था।
उन्हें दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें सबसे अधिक 4 बार सर्वश्रेष्ठ महिला कलाकार की श्रेणी में फिल्मफेयर का समीक्षक अवॉर्ड मिला है। वर्ष 2000 में आई ‘अस्तिव’ पहली ऐसी फिल्म थी जिसका सारा दारोमदार तब्बू पर ही था। इसे जिम्मेदारी को तब्बू ने बेहतरीन ढंग से निर्वाह किया। अदिती बनी तब्बू ने इस फिल्म में अपना सर्वश्रेष्ठ अभिनय किया था। उन्हें अस्तित्व के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनय का अपना तीसरा फिल्म फेयर समीक्षक अवॉर्ड मिला। मधुर भंडारकर की ‘चांदनी बार’ (2001) में बार डांसर की भूमिका में भी तब्बू जमी थीं। उन्होंने चेहरे के हाव-भाव से ही बिना कुछ कहे बार डांसर होने का दर्द बखूबी बयां किया था। मेघना गुलजार की ‘फिलहाल’ में भी तब्बू ने संवेदनशील भूमिका निभाई थी। विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘मकबूल’ में भी तब्बू अपना रोल बखूबी निभाती हैं।
अमिताभ बच्चन के साथ ‘चीनी कम’ (2007) में वो ऐसे विषय पर बनी फिल्म का हिस्सा होती हैं जिसे हजम करना हमारे समाज के लिए मुश्किल होता है। वे अपनी से दोगुनी उम्र के अमिताभ बच्चन की प्रेमिका का रोल शानदार तरीके से निभाती हैं। विशाल भारद्वाज की कश्मीर के आंतकवाद के बैकड्रॉप पर बनी ‘हैदर’ फिल्म में वह शाहिद कपूर की मां की भूमिका में कमाल करती हैं। अपने बेटे से दूरी का दर्द उनके उदास चेहरे और आंखों में आंसूओं के साथ-साथ झलकता है। 2015 में वह ‘विजयपथ’ के अपने हीरो अजय देवगन के साथ ‘दृश्यम’ में नजर आती हैं। पुलिस अधिकारी की भूमिका में जंचती हैं। अपने बेटे के लापता होने के दर्द तथा उसके कातिल को पकड़ ना पाने की झुंझुलाहट को वो बहुत ही बेहतरीन ढंग से रूपहले पर्दे पर दिखाती हैं। तब्बू उन चंद हिंदी फिल्मों की हिरोइनों में से हैं जिन्होंने भेड़चाल की फार्मूला फिल्मों के साथ-साथ सार्थक फिल्मों में भी बराबर अपना योगदान दिया। वे अपने अभिनय संसार की दुनिया के विजयपथ का सफर बहुत ही बेहतर तरीके से तय करतीं हैं।
(लेखक नवीन शर्मा पेशे पत्रकार हैं और वर्तमान में एक हिन्दी अखबार मे कार्यरत हैं)