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रजनीकांत से पहले इन 10 सितारों ने भी पकड़ी थी सियासत की राह, कुछ हुए हिट तो कुछ हुए बुरी तरह फ्लॉप

उत्तर भारत में जहां सितारों को फैंस ने रुपहले पर्दे पर तो खूब प्यार दिया लेकिन सियासत में आने के बाद उन्हें सफलता का स्वाद चखने को नहीं मिला, वहीं दक्षिण भारत के नायक फिल्मी पर्दे और सियासत दोनों ही जगह नायक ही बने रहे।

Edited by: India TV Entertainment Desk
Updated on: January 02, 2018 16:28 IST
सिनेमा-राजनीति- India TV Hindi
सिनेमा-राजनीति

नई दिल्ली: उत्तर भारत हो या दक्षिण भारत, अभिनेता से नेता बनने की ललक कई सितारों में हुई। सबने अपनी लोकप्रियता भुनाने की कोशिश की। कुछ फिल्मों में हिट रहे तो राजनीति में फ्लॉप हो गए, तो कुछ ने दोनों ही जगह अपनी सफलता के झंडे गाड़े। उत्तर भारत में अमिताभ बच्चन से लेकर गोविंदा तक राजनीति में उतरे तो वहीं दक्षिण भारत में एमजी रामचंद्रन और एनटी रामाराव अपनी लोकप्रियता के सहारे सियासत में उतरे। उत्तर भारत में तो अधिकांश सितारों को सियासत का रंग नहीं जमा और वो राजनीति से दूर हो गए लेकिन दक्षिण भारतीय सितारे जितने सफल फिल्मों में हुए उससे कहीं ज्यादा सफलता उन्हें राजनीति में मिली, कुछ तो मुख्यमंत्री की कुर्सी में भी बैठे।

उत्तर भारत में जहां सितारों को फैंस ने रुपहले पर्दे पर तो खूब प्यार दिया लेकिन सियासत में आने के बाद उन्हें सफलता का स्वाद चखने को नहीं मिला, वहीं दक्षिण भारत के नायक फिल्मी पर्दे और सियासत दोनों ही जगह नायक ही बने रहे। रजनीकांत ने नए साल के मौके पर अपनी पार्टी बनाने और तमिलनाडु का अगला चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो फिर से इस बात की चर्चा होने लगी कि क्या वो सियासत में भी उतने बड़े राजा बन पाएंगे जितने बड़े सुपरस्टार वो फिल्मी पर्दे पर हुए हैं। बात करते हैं उन 10 बड़े फिल्मी सितारों की जो राजनीति में सफल और असफल हुए।

ये सितारे हुए सियासत में फ्लॉप

अमिताभ बच्चन

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साल 1969 में ख्वाज़ा अहमद अब्बास के निर्देशन में बनी फिल्म सात हिंदुस्तानी से फिल्मी करियर का आगाज करने वाले अमिताभ बच्चन आज भी बॉलीवुड के सबसे बड़े सुपरस्टार हैं। 70 के दशक में अमिताभ बच्चन एंग्री यंगमैन की छवि के साथ राजनीति में उतरे। अमिताभ को राजीव गांधी ने राजनीति में उतारा था। बच्चन ने इलाहाबाद से साल 1984 का लोकसभा चुनाव लड़ा और दिग्गज नेता हेमवंती नंदन बहुगुणा को मात दी। लेकिन बोफोर्स तोप घोटाले में नाम आने के बाद अमिताभ ने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद बिग बी ने कभी भी राजनीति की तरफ पलटकर नहीं देखा। हालांकि उनकी वाइफ और एक्ट्रेस जया बच्चन आज भी समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सांसद हैं।

राजेश खन्ना

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1966 में फिल्म ‘आखिरी खत’ से फिल्मी दुनिया में कदम रखने वाले राजेश खन्ना जल्द ही बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार बन गए। 1969 से 1971 तक राजेश खन्ना ने लगातार 15 हिट फिल्में दी। वो बॉलीवुड में राज करने लगे। अपनी सफलता का फायदा उठाकर राजेश खन्ना भी राजनीति में उतरे। उन्होंने कांग्रेस को अपने साथ ले लिया। 1991 में राजेश खन्ना ने दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन फिल्मों का सुपरस्टार सियासत की जंग हार गया, राजेश खन्ना बीजेपी के बड़े नेता लाल कृष्ण आडवाणी से चुनाव हार गए। हालांकि 1992 में जब उपचुनाव हुए तो राजेश खन्ना ने इसी सीट से एक और बड़े हीरो और नेता शत्रुघ्न सिन्हा को मात दे दी। लेकिन राजेश खन्ना को भी राजनीति रास नहीं आई और 1996 में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। हालांकि शत्रुघ्न सिन्हा राजनीति में अभी तक बने हुए हैं, फिलहाल वो बिहार के पटना साहिब से सांसद हैं।

गोविंदा

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1986 में फिल्म ‘इल्जाम’ से बॉलीवुड में कदम रखने वाले गोविंदा की एक अलग फैन फॉलोइंग हैं। गोविंदा की इस लोकप्रियता को भुनाने के लिए कांग्रेस ने उन्हें चुनाव में उतारा और 2004 में गोविंदा ने कांग्रेस की तरफ से मुंबई से लोकसभा का चुनाव लड़ा। नतीजे आए तो गोविंदा ने पांच बार के सांसद रहे और बीजेपी के बड़े नेता रहे राम नाईक को 50 हजार वोटों से हरा दिया। लेकिन इस जीत के बावजूद गोविंदा ने राजनीति में अपना वो स्टारडम नहीं बनाये रखा जो फिल्मों से उन्हें मिला था। 20 जनवरी 2008 को गोविंदा ने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और फिल्मों में वापस लौट गए।

संजय दत्त

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मशहूर अभिनेता सुनील दत्त और मशहूर एक्ट्रेस नरगिस दत्त के बेटे संजय दत्त ने ‘रॉकी’ फिल्म से बॉलीवुड में डेब्यू किया। संजय के पिता सुनील दत्त भी कांग्रेस से सांसद रहे थे, संजय दत्त भी राजनीति में आए लेकिन उन्होंने समाजवादी पार्टी जॉइन की। 2009 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो संजय दत्त लखनऊ से सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने संजय दत्त के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। बाद में सपा ने उन्हें जनरल सेक्रेटरी बना दिया। जब अमर सिंह के पास ताकत नहीं रही तो संजय ने भी पॉलिटिक्स को यह कहकर अलविदा कर दिया कि ऐक्टर्स पॉलिटिक्स में फिट नहीं होते।

जया प्रदा

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अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म ‘आज का अर्जुन’ जैसी कई फिल्मों में काम कर चुकी जया प्रदा ने बॉलीवुड में भी अपनी एक खास पहचान बनाई। फिल्मों से सियासत में आए कद्दावर नेता और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने एनटी रामाराव जया को राजनीति में ले आए और अपनी पार्टी तेलुगू देशम पार्टी में शामिल कर लिया। जब एनटीआर और उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू के बीच पार्टी पर वर्चस्व को लेकर खींचतान हुई तो जया प्रदा चंद्रबाबू नायडू के साथ चली गईं। चंद्रबाबू नायडू ने उन्हें 1996 में राज्य सभा भेज दिया। बाद में जया तेलुगू देशम पार्टी छोड़कर सपा में शामिल हो गईं। साल 2004 और साल 2009 में चुनाव जीतने के बाद जया प्रदा सांसद बनीं, लेकिन अमर सिंह की ताकत खत्म होने पर जया प्रदा को भी पार्टी से निकाल दिया गया। उसके बाद उन्होंने साल 2014 में बिजनौर से आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन हार गईं। राजनीति में फ्लॉप होने के बाद जया प्रदा ने सियासत से किनारा कर लिया।

ये सितारे रहे सियासत में हिट

एमजी रामचंद्रन

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साल 1936 में फिल्मों में आने वाले एमजी रामचंद्रन तमिल फिल्मों के सुपरस्टार थे। कांग्रेस पार्टी से राजनीति का आगाज करने वाले एमजी रामचंद्रन 1953 में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम में शामिल हो गए। 1962 में पहली बार विधानपरिषद सदस्य बने और 1967 के चुनाव में वो विधानसभा पहुंच गए। करुणानिधि से बगावत कर 1972 में रामचंद्र ने ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी बनाई। 1977 के चुनाव में उनकी पार्टी ने राज्य की 234 में से144 सीटें जीत लीं। इसके बाद एमजी रामचंद्रन मुख्यमंत्री बने और लगातार साल 1987 तक जब तक वो जिंदा रहे राज्य के सीएम बने रहे।

एनटी रामाराव

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1949 में ‘मना देशम’ फिल्म से फिल्मी दुनिया में कदम रखने वाले एनटी रामाराव कुछ ही वक्त में आंध्र प्रदेश के सुपरहिट हीरो बन गए। .अपनी लोकप्रियता का फायदा उठाते हुए एनटी रामाराव ने 29 मार्च 1982 को तेलगु देशम पार्टी का गठन किया। 1983 के चुनावों में एनटी रामाराव ने राज्य की 284 में से 199 सीटें जीतकर राजनीति में शानदार आगाज किया और राज्य में सरकार बनाई। दोबारा जब 1984 में राज्य में चुनाव हुए और फिर से एनटी रामाराव मुख्यमंत्री बने। 1989 के चुनाव में एनटी रामाराव हार गए और विपक्ष में बैठे, लेकिन फिर से साल 1994 में एनटी रामाराव ने जीत हासिल की और मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री बनने के 9 महीने के बाद ही एनटी रामाराव के दामाद एन. चंद्र बाबू नायडू ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा दिया और खुद मुख्यमंत्री बन गए। साल 1996 में एनटी रामाराव की मौत हो गई।

करुणानिधि

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करुणानिधि तमिल फिल्मों और नाटकों के लेखक थे। करुणानिधि को राजनीति में लाने वाले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के मुखिया सीएन अन्नादुरई थे। साल 1957 में करुणानिधि पहली बार विधायक बने थे। 1961 में उन्हें डीएमके का कोषाध्यक्ष बनाया गया। साल 1969 में सीएन अन्नादुरई की मौत के बाद करुणानिधि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने। 1969 से अब तक वो 5 बार वो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने। 60 साल के राजनीतिक करियर में उन्होंने हर चुनाव जीता है। 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने तमिलनाडु और पुडुचेरी में डीएमके के नेतृत्व वाली डीपीए का नेतृत्व किया और लोकसभा की सभी 40 सीटों पर जीत हासिल की। 2009 के लोकसभा चुनाव में भी डीएमके की सीटें 16 से बढ़कर 18 हो गईं।

जयललिता

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1963 में एपिसल नाम की इंग्लिश फिल्म से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत करने वाली जयललिता बॉलीवुड में जितनी हिट थी उतनी ही सफलता उन्हें सियासत में भी हासिल हुई। जयललिता को राजनीति में लाने वाले एमजी रामचंद्रन थे। साल 1982 में जयललिता ने सियासी पारी का आगाज किया और कई बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं।1987 में जब एमजी रामचंद्रन का निधन हुआ तो पार्टी दो हिस्सों में बंट गई। एक की कमान जयललिता के हाथ में थी तो दूसरी कमान एमजी रामचंद्रन की पत्नी और सिनेमा की अभिनेत्री जानकी ने के हाथ में थी। 1989 में जयललिता ने 29 सीटें जीतीं और विपक्ष की नेता बनी। 1991 में वो मुख्यमंत्री बनीं। मुख्यमंत्री रहते ही उनकी मौत हो गई थी, तब से तमिलनाडु की राजनीति को संभालने के लिए कोई भी मजबूत शख्स नहीं रहा।

स्मृति ईरानी

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‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ टीवी सीरियल की तुलसी यानि स्मृति ईरानी साल 2003 में सियासत में आईं। बीजेपी में शामिल हुई स्मृति ईरानी ने  दिल्ली के चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र से साल 2004 का चुनाव लड़ा, उनका मुकाबला था कपिल सिब्बल से, स्मृति उन्हें हरा नहीं पाईं। इसके बाद उन्हें साल 2004 में ही महाराष्ट्र यूथ विंग का उपाध्यक्ष बनाया गया। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ने कांग्रेस अध्यक्ष और तब के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी से चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार फिर से वो हार गईं। हालांकि 2014 में बीजेपी देश में बहुमत के साथ आई थी और स्मृति राज्यसभा की सदस्य थीं, तो उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्री बनाया गया। साल 2017 में पार्टी ने एक बार फिर उन्हें राज्यसभा भेजा और अब वो केंद्रीय कपड़ा मंत्री हैं।

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