नई दिल्ली: अपनी बेटी के लिए आरोपी का केस लड़ने को तैयार एक वकील, मरी हुई बेटी के कातिल को अपने हाथों मारने को आमदा एक मां और दोस्त के लिए एक जटिल केस को परत दर परत खोलता एक सस्पेंडेड पुलिस ऑफिसर। ये तीनों किरदार अलग अलग हिस्सों में पूरी फिल्म को बांधे रखते हैं। इंटरवल के पहले तक फिल्म सिर्फ ऐश्वर्या के सहारे रहती है जिसमें वो इंसाफ करने की भरसक कोशिश करती हैं, मगर बात कुछ बन नहीं पाती। इंटरवल के बाद इरफान अपने रंग में आ जाते हैं, वो ऐश्वर्या की कहानी में दिलचस्पी लेना शुरु करते हैं और पर्दे के पीछे बैठे दर्शक इरफान की सधी हुई अदाकारी को सरहाने लगते हैं। आम तौर पर संजय गुप्ता की फिल्में अपने खतरनाक सस्पेंस के लिए जानी जाती हैं, लेकिन इस फिल्म की अलग बात यह है कि इसमें सस्पेंस फिल्म के आखिर में ही आता है और खत्म हो जाता है। अब यह सस्पेंस क्या होता है इसके लिए आप कम से कम एक बार फिल्म जज्बा को देख सकते हैं।
फिल्म की कहानी में क्या-
एक रेस जैसी शुरुआत लेती फिल्म की कहानी रेस के साथ बयां होना शुरु होती है। ऐश्वर्या अपनी बेटे के साथ एक रिले रेस में भाग लेती हैं। रेस में ऐश्वर्या जीतती हैं लेकिन रेस के आखिर में ऐश की बेटी सनाया गायब हो जाती है। एक व्यक्ति ऐश्वर्या को फोन करके कहता है कि वो अगर अपनी बेटी को सही सलामत वापस चाहता है तो वो नियाज का केस लड़े। ऐश्वर्या इरफान के विरोध के बाद नियाज का केस लड़ने को तैयार हो जाती हैं....वो काफी देर तक इरफान से यह राज छुपाए रखती हैं कि उनकी बेटी किडनैप हो चुकी है। ऐश नियाज को बचाने का प्लॉट तैयार करती हैं..इसी बीच इरफान अपने अंदाज में केस की पड़ताल करना शुरु करते हैं.......फिल्म इंटरवल के बाद जब चरम पर होती है तो इसी बीच ऐश्वर्या को जान से मारने की कोशिश होती है। शहर के जाने माने नेता जैकी श्राफ अपने बेटे को इस केस में फंसने से बचाने की कोशिश में ऐसा कदम उठाते हैं, लेकिन ऐश बच जाती हैं..कहानी तमाम सस्पेंसों के साथ आगे बढ़ती जाती है। अपनी बेटी की तलाश में जुटी ऐश्वर्या को किडनैपिंग और मर्डर की एक ऐसी कहानी सुनने को मिलती है जिसे जान वो हैरान रह जाती हैं।
क्यों देखें फिल्म-
अगर आप ऐश्वर्या को लेकर किसी बड़ी उम्मीद लेकर जा रहे हैं तो फिल्म आपको निराश कर सकती है। हां इरफान ने अपने रोल के साथ इंसाफ किया है। उनके कुछ डॉयलॉग थियेटर से निकलने के बाद भी लोगों के जेहन में ताजा रहते हैं। जैसे कि फिल्म का आखिरी डॉयलॉग “वो मेरी मोहब्बत थी इसलिए जाने दिया....अगर वो जिद होती तो मेरी बांहों में होती।” वहीं फिल्म में जरुरत के मुताबिक जबरन गांने नहीं डाले गए हैं यह फिल्म का एक बेहतर पक्ष है। फिल्म की कहानी बेशक अच्छी है लेकिन इसे और बेहतर तरीके से फिल्माया जा सकता था।
ऐश्वर्या ने किया निराश-
ऐश्वर्या राय ने इस फिल्म में काफी निराश किया है। लोगों को उम्मीद थी कि ऐश पांच सालों बाद शानदार कमबैक करेंगी लेकिन वो फिल्म में थकी-थकी सी एक्टिंग करती दिखीं। कुछ सीन्स में तो ऐसा भी जान पड़ा कि वो जबरन की एक्टिंग कर रही हैं। गुजारिश के बाद ऐश से इतनी उम्मीद की जा सकती थी कि वो इस महिला प्रधान फिल्म में कुछ ऐसा कर दें जिससे वो कंगना रनौत, प्रियंका चोपड़ा और विद्या बालन सरीखी उन अभिनेत्रियों की कतार में शुमार हो जाएं जिन्होंने फिल्मी दुनिया में पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती दी है। मगर इस पहलू पर वो खरी नहीं उतर पाईं।