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शशि कपूर की 81वीं बर्थ एनीवर्सरी: अपने जमाने का सबसे रोमांटिक हीरो पत्नी की डेथ पर फूट-फूटकर रोया था

शशी कपूर 81st बर्थ एनिवर्सरी: दीवार, त्रिशुल जैसे हिट फिल्में देने वाले शशी कपूर असल जिंदगी में भी काफी रोमांटिक और सुलझते हुए व्यक्ति थे। उनकी जयंती पर जानते है उनसे जुड़ी कुछ खास बातें।

Written by: India TV Entertainment Desk
Updated on: March 18, 2019 12:52 IST
शशी कपूर- India TV Hindi
शशी कपूर

शशी कपूर 81st बर्थ एनिवर्सरी: दीवार, त्रिशुल जैसे हिट फिल्में देने वाले शशी कपूर असल जिंदगी में भी काफी रोमांटिक और सुलझते हुए व्यक्ति थे। उनकी जयंती पर जानते है उनसे जुड़ी कुछ खास बातें। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कपूर फैमिली में जितने भी बॉलीवुड में कदम रखा वह अपने जमाने के सुपरस्टार रहे हैं। अपने समय के पृथ्वी राज कपूर, राज कपूर, शमी कपूर, शशी कपूर, ऋषि कपूर, करिश्मा कपूर, करीना कपूर, रणबीर कपूर। कपूर फैमिली बॉलीवुड में एक ऐसा नाम है जिन्होंने अपनी जिंदगी बॉलीवुड को दे दिया।

शशि कपूर और जेनिफर कैंडल की प्रेम कहानी भले आज से यही कोई 52 साल पहले शुरू हुई थी लेकिन इसे आज भी बॉलीवुड की सबसे बेमिसाल लव स्टोरी मानने में शायद ही किसी को कोई मुश्किल होगी। ये लव स्टोरी शुरू हुई थी, 1956 में और उसके बाद शशि कपूर अपने पूरे जीवन भर इस मोहब्बत से बाहर नहीं निकल पाए थे। वैसे इसकी शुरुआत बेहद दिलचस्प अंदाज में हुई थी। त्रिशूल फिल्म का एक गाना है, 'मोहब्बत बड़े काम की चीज है, काम की चीज है', जिसमें शशि कपूर अपने शोख और चुलबुले अंदाज में माशूका हेमामालिनी के साथ बार बार ये दोहरा रहे हैं कि मोहब्बत बड़े काम की चीज़ है। ये शशि कपूर के लिए केवल एक फिल्म के गाने के बोल भर नहीं थे क्योंकि उनका पूरा जीवन ही प्रेम से सजा संवरा था।

जेनिफर की छोटी बहन और ब्रिटिश रंगमंच की जानी मानी अदाकारा फैलिसिटी कैंडल ने अपनी पुस्तक 'व्हाइट कार्गो' में लिखा है, "जेनिफर अपने दोस्त वैंडी के साथ नाटक 'दीवार' देखने रॉयल ओपेरा हाउस गई थी। नाटक शुरू होने से पहले उन्होंने दर्शकों का अंदाजा लगाने के लिए पर्दे से झांका और उनकी नजर चौथी कतार में बैठी एक लड़की पर गई। काली लिबास और सफेद पोल्का डॉट्स पहने वो लड़की खूबसूरत थी और अपनी सहेली के साथ हंस रह थी। शशि के मुताबिक वे उसे देखते ही दिलो-जान से उस पर फिदा हो गए थे। लेकिन तब पृथ्वी थिएटर में काम करने वाले शशि कपूर की कोई बड़ी पहचान नहीं थी, उनकी उम्र महज 18 साल थी। दूसरी तरफ जेनिफ़र अपने पिता जेफ़्री कैंडल के थिएटर समूह की लीड अभिनेत्री थीं।

थिएटर के चलते दोनों के पिता भी आपस में एक दूसरे को पहचानते थे। लेकिन इन सबके बाद भी शशि कपूर को जेनिफर से दोस्ती के लिए इंतजार करना पड़ा। शशि कपूर ने अपनी पुस्तक पृथ्वीवालाज में लिखा है, "मैंने जेनिफर के कई नाटक भी देखे, लेकिन उन्होंने कोई नोटिस नहीं लिया। कुछ दिनों के बाद एक दिन रॉयल ओपेरा हाउस में उन्होंने कहा कि मैं बंबई में रहती हूं और हम लोग मिल सकते हैं। इसके बाद शशि कपूर रोजाना ही जेनिफर से मिलने लगे। उन्होंने अपने इन मुलाकातों के बारे में लिखा है, "रॉयल ओपेरा हाउस के पास एक ढाबा हुआ करता था, मथुरा डेयरी फर्म। हम लोग तब पूरी भाजी की प्लेट खाते थे। तब एक प्लेट चार आने का मिलता था। साथ ही खाते थे।"

वैसे दिलचस्प ये ही तब शशि कपूर बेहद शर्मीले हुआ करते थे, इतने शर्मीले कि जेनिफर उन्हें गे समझने लगी थीं। इस बारे में शशि कपूर ने पृथ्वीवालाज में लिखा है, "जेनिफर ने मुझे बाद में बताया कि वो मुझे गे समझने लगी थी।" हालांकि इसकी वजह भी बेहद दिलचस्प थी। शशि कपूर भारतीय मानसिकताओं के मुताबिक जब जेनिफर के साथ होते थे, तब उनका हाथ पकड़ बैठे रहते थे। जेनिफर जिस संस्कृति से आई थीं, वहां हाथ में हाथ लेकर बैठने को असहज माना जाता था। लेकिन दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ता गया, इस प्यार के चलते ही शशि कपूर अपने होने वाले ससुर की थिएटर कंपनी से भी जुड़ गए थे लेकिन जेफ्री कैंडल अपनी बेटी को लेकर काफी पजेसिव थे और नहीं चाहते थे कि शशि कपूर की उनसे शादी हो।

इसके बारे में फेलिसिटी कैंडल ने व्हाइट कार्गो में लिखा है, "वे काफी हंसमुख और आकर्षक थे। मैं इतने ज्यादा इश्कबाज इंसान से कभी नहीं मिली। वो प्यार से तारीफें करने और साथ ही हड़काने का काम बखूबी अंजाम देते, वो भी मोहक अंदाज में कि कोई उन्हें रोक नहीं सकता। वो बेहद दुबले थे, लेकिन आंखें खूब बड़ी-बड़ी, लंबी घनी पलकों का किनारा लगता कि और बहका रही हों। उनके चमकदार सफेद दांत और गालों पर पड़ते शरारती डिंपल के साथ वह महिलाओं और पुरुषों में किसी के भी दिल में अपना रास्ता बना लेते।" हालांकि शशि कपूर और जेनिफर की शादी आनन फानन में तब हुई, जब वे जेफ्री कैंडल के थिएटर समूह शेक्सपीयराना के साथ सिंगापुर में थिएटर कर रहे थे, वहां एक दिन जेनिफर ने उनके साथ अपने पिता का घर छोड़ दिया। गुस्से में जेफ्री कैंडल ने शशि के काम के पैसे भी नहीं दिए।

बाद में राजकपूर ने उन दोनों को वापस भारत लाने की व्यवस्था की और 1958 में शशि कपूर और जेनिफर की शादी कपूर खानदान ने करा दी। हालांकि कपूर खानदान अपने लिए विदेशी बहू को लेकर बहुत सहज नहीं हो पाया था पर शशि कपूर ने सबको मना लिया। वो दौर तब था जब शशि कपूर का फिल्मी करियर शुरू भी नहीं हुआ था। एक साल के अंदर शशि कपूर पिता बन गए और उनके पिता ने आर्थिक दिक्कतों और स्वास्थ्यगत समस्याओं के चलते पृथ्वी थिएटर को बंद करने का फैसला कर लिया था। लिहाजा शशि कपूर के पास कोई काम नहीं था, लेकिन जेनिफर के साथ ने उन्हें गढ़ना शुरू कर दिया था। जेनिफर ने इसके लिए अपना थिएटर प्रेम को भी कुर्बान कर दिया था।

'द कपूर्स- द फर्स्ट फैमिली ऑफ इंडिया' पुस्तक में मधु जैन ने कपूर परिवार के पूरे सफर का दस्तावेज तैयार किया है। इस पुस्तक में इस बात का जिक्र है कि जेनिफर ने शशि कपूर के जीवन को इस कदर संवारना शुरू किया कि वे कपूर परिवार के इकलौते अनुशासित शख्स बन गए थे। अनुशासन का मतलब- शशि कपूर, कपूर खानदान के पहले शख्स बने जो बंगले से निकल कर फ्लैट में रहने लगा, सुबह के नाश्ता और रात का खाना घर में परिवार के साथ खाने लगे, सिगरेट-शराब सब पर अकुंश और तो और रविवार का समय केवल और केवल परिवार के लिए रखा था उन्होंने। शशि कपूर रविवार को ना तो काम करते थे, ना दोस्तों के घर जाते और ना ही दोस्तों को अपने घर बुलाते। हां छुट्टियों पर पूरे परिवार को घुमाने फिराने ले जाने की जिम्मेदारी उनकी थी।

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