इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वेब सीरीज ‘मिर्जापुर’ के निर्देशकों- करण अंशुमान एवं गुरमीत सिंह और लेखकों- पुनीत कृष्णा एवं विनीत कृष्णा की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। इन लोगों के खिलाफ मिर्जापुर जिले के कोतवाली देहात पुलिस थाने में एक स्थानीय निवासी ने प्राथमिकी दर्ज कराई थी।
करण अंशुमान और गुरमीत सिंह इस वेब सीरीज के प्रथम संस्करण के निर्देशक हैं, जबकि गुरमीत सिंह वेब सीरीज के दूसरे संस्करण के निर्देशक हैं। वहीं, विनीत कृष्णा वेब सीरीज के प्रथम संस्करण के लेखक हैं, जबकि पुनीत कृष्णा दूसरे संस्करण के लेखक हैं।
वेब सीरीज के निर्देशकों और लेखकों ने मामले में राहत पाने के लिए न्यायालय में याचिका दाखिल की जिस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति प्रितिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने राज्य सरकार और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी कर उन्हें जवाब दाखिल करने को कहा।
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इससे पूर्व, 29 जनवरी 2021 को इसी अदालत ने वेब सीरीज ‘मिर्जापुर’ के निर्माताओं- फरहान अख्तर और रितेश सिद्धवानी की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इनके खिलाफ भी मिर्जापुर जिले के कोतवाली देहात पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई है।
उक्त निर्देश जारी करते हुए अदालत ने यह स्पष्ट किया कि इस मामले में जांच जारी रहेगी और याचिकाकर्ता जांच में सहयोग करेंगे और सहयोग नहीं करने पर राज्य सरकार इस अंतरिम आदेश को हटाने की मांग करते हुए आवेदन दाखिल कर सकती है। अदालत इस मामले की अगली सुनवाई, वेब सीरीज के निर्माताओं से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के साथ करेगी।
उल्लेखनीय है कि मिर्जापुर वेब सीरीज के निर्माताओं के खिलाफ आईपीसी की धारा 295-ए और अन्य धाराओं और आईटी कानून की धारा 67-ए के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया है कि इस वेब सीरीज के निर्माताओं ने मिर्जापुर कस्बे को अनुचित ढंग से दिखाने का अपराध किया है। इससे शिकायतकर्ता की धार्मिक, सामाजिक भावना आहत हुई है।
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याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि यदि एफआईआर में लगाए गए सभी आरोप सही भी मान लिए जाएं तो भी इन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता क्योंकि ऐसा कोई आरोप नहीं लगाया गया है कि इस वेब सीरीज का निर्माण जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को भड़काने के लिए किया गया है।
राज्य सरकार के वकील ने कहा कि एफआईआर में मुख्य आरोप यह है कि इस वेब सीरीज से शिकायतकर्ता की सामाजिक और धार्मिक भावना आहत हुई है। साथ ही यह वेब सीरीज अवैध संबंधों को प्रोत्साहित करती है और धार्मिक असंगति भड़काती है जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।
हालांकि, इस रिट याचिका का विरोध करते हुए राज्य सरकार के वकील इस तथ्य से इनकार करने की स्थिति में नहीं थे कि सह आरोपियों के पूर्व के मामले में इस अदालत द्वारा अंतरिम राहत पहले ही प्रदान की जा चुकी है।