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कल तय होगा त्रिपुरा के नए CM का नाम, भाजपा की सहयोगी IPFT ने मांगे सम्मानजनक पद

नई सरकार 8 मार्च को यहां स्वामी विवेकानंद मैदान में शपथ ले सकती है...

Reported by: Bhasha
Published : March 05, 2018 23:26 IST
Tripura BJP chief Biplab Kumar Deb
Tripura BJP chief Biplab Kumar Deb

अगरतला: त्रिपुरा में भाजपा और उसकी सहयोगी आईपीएफटी के नवनिर्वाचित विधायक कल यहां अपने नये नेता का चुनाव करेंगे और इस बीच आईपीएफटी ने नए मंत्रिमंडल में सम्मानजनक पदों की मांग की है। मुख्यमंत्री की दौड़ में आगे माने जा रहे त्रिपुरा भाजपा के अध्यक्ष बिप्लव देव ने कहा कि कल की बैठक केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की मौजूदगी में राज्य अतिथिगृह में होगी।

भाजपा प्रवक्ता मृणाल कांति देब ने कहा कि केंद्रीय मंत्री जुएल ओरांव भी बैठक में मौजूद रहेंगे। नई सरकार 8 मार्च को यहां स्वामी विवेकानंद मैदान में शपथ ले सकती है। बिप्लव देव के अनुसार शपथ-ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कई केंद्रीय मंत्री और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भाग ले सकते हैं।

त्रिपुरा में 59 सीटों के लिए चुनाव हुए जिनमें से 35 पर भाजपा और आठ सीटों पर उसके सहयोगी दल इंडीजीनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के उम्मीदवार विजयी हुए हैं। एक सीट पर माकपा उम्मीदवार के निधन के कारण मतदान रद्द कर दिया गया।

इस बीच आईपीएफटी ने आज भाजपा पर दबाव बनाते हुए कहा कि अगर उसे मंत्रिमंडल में सम्मानजनक पद नहीं दिए गए तो वह नई सरकार को बाहर से समर्थन देगी। आईपीएफटी के अध्यक्ष एन सी देबबर्मा ने स्थानीय विधायकों में से ही मुख्यमंत्री चुने जाने की भी मांग की। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर में परंपरा है कि स्थानीय समुदाय से मुख्यमंत्री का चुनाव किया जाए।

देबबर्मा ने कहा कि आईपीएफटी को अगर कैबिनेट में सम्मानजनक पद नहीं मिलते तो वह विधानसभा में अपने विधायकों के बैठने के लिए अलग ब्लॉक की मांग करेगी। सम्मानजनक पदों से क्या आशय है, यह पूछे जाने पर आईपीएफटी नेता ने कहा कि उनका मतलब कैबिनेट में उचित अनुपात में उनके विधायकों को प्रतिनिधित्व मिलने और उन्हें बड़े विभाग भी दिए जाने से है।

देबबर्मा ने कहा, ‘‘आशंका है कि हमें कैबिनेट में उचित जगह नहीं दी जाएगी और भाजपा की तरह महत्वपूर्ण विभाग नहीं दिए जाएंगे।’’ भाजपा नेताओं ने आईपीएफटी की मांग पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। आईपीएफटी ने चुनाव से पहले साझा न्यूनतम एजेंडा के आधार पर भाजपा के साथ गठजोड़ किया था। इसका गठन आदिवासी समुदाय के लोगों ने 90 के दशक में किया था।

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