Highlights
- मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले 2012 के यूपी चुनाव में बीजेपी+ के हाथ में केवल 47 सीटें थीं।
- इस बार भी बीजेपी मोदी की छवि के भरोसे ही यूपी चुनाव में उतरेगी ये तय है।
- यूपी चुनाव के लिए कांग्रेस ने अभी से अपने वादे का पिटारा खोलना शुरू कर दिया है।
आशीष कुमार शुक्ला | यूपी में चुनावी बयार बहुत टाइट है, माहौल बन रहा है। कोई शक नहीं कि फाइट साइकिल और कमल में ही है। क्योंकि भइया और दीदी पद यात्रा में लीन हैं, तो बुआ जी अभी अंगने में ही हैं, लेकिन अखिलेश यादव चुनावी रण में कूद चुके हैं। वहीं ओवैसी भाईजान चाहते हैं कि मुसलमान सिर्फ़ हैदराबादी बिरयानी खाए, लेकिन भैया ये यूपी है यहां का मुसलमान तोल-मोल के फैसले लेता है, इसलिए 2022 के रण में ओवैसी की दाल गलती हुई नहीं दिख रही है। चुनाव को लेकर सभी पार्टियों की अपनी-अपनी तैयारी चल रही है। जोड़-तोड़, सांठगांठ, गठबंधन का खेल फ्रंटफुट पर खेला जा रहा। कोई निषाद समुदाय को साधने में लगा है, तो कोई जाटव वोट को साध रहा है। अब किसके हाथ क्या लगेगा ये तो चुनाव बाद ही पता चल पाएगा।
यूपी में कुछ भी फिक्स्ड नहीं है!
यूपी की राजनीति में एक बात कही जाती है कि कुछ भी फिक्स्ड नहीं है। आखिरी समय तक समीकरण बनते और बिगड़ते हैं। यूपी के वोटर ऐसे हैं जिसको चुनाव जीतता हुआ देखते हैं उसको वोट करते हैं। उनके लिए ये मायने नहीं रखता है कि नेता जी किस पार्टी के हैं और कितने बड़े हैं। इसका जिक्र इसलिए जरूरी है, क्योंकि जिस तरह से 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने सत्ता संभाली अमूमन सभी राज्यों में मोदी भरोसे ही बीजेपी की नैया पार हुई। यूपी में भी तब जनता ने इसी बयार को पकड़ा था और बीजेपी की तरफ करवट लेकर भारी बहुमत दिया था।
मोदी की छवि से बीजेपी की नैया होगी पार?
ज्ञात हो कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले 2012 के यूपी चुनाव में बीजेपी+ के हाथ में केवल 47 सीटें थीं। 2017 का चुनाव आया और मोदी लहर में अखिलेश यादव की पार्टी जिसे 2012 में 224 सीटों पर जीत मिली थी, 2017 में 177 सीटों का नुकसान हुआ और महज 47 सीटों पर सिमट गई। वहीं बीजेपी अप्रत्याशित 265 सीटों की भारी बढ़त के साथ 312 सीटें हासिल करने में कामयाब रही। मतलब साफ है यूपी में कुछ फिक्स्ड नहीं है। इस बार भी बीजेपी मोदी की छवि के भरोसे ही यूपी चुनाव में उतरेगी ये तय है। इसका ट्रेलर वाराणसी में पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण के समय देखने को मिला। कुछ जगहों पर छोड़ दिया जाए तो पीएम मोदी ही पोस्टर-बैनर में फ्रंटफुट पर दिखे। वजह एकदम साफ है पीएम मोदी की छवि को लेकर ही चुनाव में उतरना है।
मछुआ समाज से बीजेपी को कितनी आस?
नदियों, तालाबों के किनारे पर जो रहने वाला समुदाय है अमूमन निषाद, केवट, मल्लाह, कश्यप, मांझी, इनकी उत्तर प्रदेश की करीब 5 दर्जन विधानसभा सीटों पर अच्छी-खासी आबादी मौजूद है। बीजेपी और निषाद पार्टी का गठबंधन हो गया है। अब सवाल उठता है कि क्या निषाद राज ने जैसे भगवान श्री राम को गंगा पार कराया था उसी तरह से बीजेपी को निषाद पार्टी भी पार करा पाएगी। इसमें कोई दो राय नहीं है कि चुनाव में निषाद वोट मायने रखते हैं, लेकिन दिक्कत ये है कि निषादों का प्रतिनिधित्व करने वाली ना तो कोई पार्टी है और ना ही कोई नेता। संजय निषाद भले ही दावा कर लें लेकिन मछुआ समुदाय का वोट बीजेपी को ट्रांसफर कराना आसान नहीं होगा, क्योंकि निषाद पार्टी 2017 के चुनाव में केवल 1 सीट पर जीत दर्ज कर पायी थी। ऐसे में बीजेपी कितनी उम्मीद पश्चिमी यूपी के कुछ जिलों में मछुआ समाज के वोट पर रखती है देखने वाली बात होगी।
वादों का पिटारा खुलने लगा, जनता को क्या मिलेगा?
चुनाव से पहले जहां बीजेपी टेंशन फ्री होकर यूपी में प्रोजेक्ट पर प्रोजेक्ट लॉन्च कर रही है, वहीं दूसरी तरफ विपक्ष परेशान नज़र आ रहा है। चुनाव से ठीक पहले पूर्वांचल एक्सप्रेस वे, सरयू नहर परियोजना, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, जेवर एरपोर्ट और गंगा एक्सप्रेस-वे का शिलान्यास विपक्ष को बहुत खल रहा है। अखिलेश यादव लगातार बीजेपी पर परियोजनाओं के नाम बदलने और सपा सरकार के कामों के उद्घाटन का आरोप लगा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ प्रियंका और राहुल गांधी अमेठी में पदयात्रा निकालकर अमेठी की जनता को अपना परिवार बता रहे हैं। मकसद बिल्कुल साफ है खोई हुई साख वापस पाना है।
यूपी चुनाव के लिए कांग्रेस ने अभी से अपने वादे का पिटारा खोलना शुरू कर दिया है। अमेठी की धरती से प्रियंका ने सरकार बनने पर किसानों का पूरा कर्जा माफ करने का ऐलान किया। यही नहीं बिजली का बिल हाफ करने का वादा, 20 लाख युवाओं को रोजगार का वादा भी कर दिया है। अब देखना होगा कि बीजेपी किस तरह के वादों का पिटारा यूपी की जनता के लिए खोलेगी। यही नहीं हैदराबाद वाले भाईजान मुस्लिमों का वोट पाने के लिए CAA, तीन तलाक कानून, बेटियों की शादी की उम्र बढ़ाने की मुखालफत जैसे और कौन-कौन से लॉलीपॉप दिखा सकते हैं देखने वाली बात होगी।
डिसक्लेमर : ब्लॉग के लेखक आशीष कुमार शुक्ला पत्रकार हैं और इंडिया टीवी में कार्यरत हैं। ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं।