Highlights
- संजय निषाद और बीजेपी नेताओं के बीच बैठकों का दौर शुरु हो चुका है।
- बीजेपी चुनाव से पहले निषाद आरक्षण को लेकर कोई फैसला लेने से बच रही है।
- संजय निषाद चाहते हैं कि बीजेपी चुनाव से पहले निषाद आरक्षण की घोषणा करें।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी द्वारा दलित वोटरों को साधने की रणनीति को एक बड़ा झटका लग सकता है। निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने चुनाव से ठीक पहले बीजेपी पर निषाद समाज को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग को लेकर दबाव बनाना शुरु कर दिया है। संजय निषाद ने बीजेपी को दो टूक कह दिया है कि अगर निषाद समाज को आरक्षण नहीं तो समर्थन भी नहीं जिसके बाद संजय निषाद और बीजेपी नेताओं के बीच बैठकों का दौर शुरु हो चुका है। बीजेपी चुनाव से पहले निषाद आरक्षण को लेकर कोई फैसला लेने से बच रही है।
अमित शाह की रैली में आश्वासन नहीं मिलने से नाराज
दरअसल, आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बीते 17 दिसंबर को लखनऊ में एक रैली को संबोधित किया था। मंच पर अमित शाह के अलावा निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद भी मौजूद थे। संजय निषाद को इस बात की पूरी उम्मीद थी कि अमित शाह मंच से निषाद समाज के आरक्षण को लेकर कोई बड़ी घोषणा कर सकते हैं लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जिससे संजय निषाद नाराज हो गए। संजय निषाद ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिख डाला जिसमें उन्होंने लिखा, निषाद समाज के लोग मुझ पर पूरा भरोसा करते हैं इसलिए हमारी पार्टी के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में अमित शाह की रैली में शामिल होने के लिए आए थे लेकिन अमित शाह ने निषाद आरक्षण को लेकर कुछ भी नहीं कहा। संजय निषाद ने सीएम योगी को पत्र में लिखा कि सिर्फ इतना कहने से काम नहीं चलेगा कि सरकार आने पर निषाद आरक्षण हल करेंगे। उन्होंने लिखा यदि बीजेपी को 2022 में उत्तर प्रदेश में फिर से सरकार बनानी है तो उसे निषाद समाज का ख्याल रखना ही होगा।
बीजेपी के लिए इसलिए जरूरी है निषाद वोटर
दरअसल, संजय निषाद चाहते हैं कि बीजेपी चुनाव से पहले निषाद आरक्षण की घोषणा करें। इससे बीजेपी पर निषाद आरक्षण की मांग को पूरा करने का दबाव बढ़ गया है। बता दें कि पूर्वांचल में राजभर और निषाद समाज का एक बड़ा वोट बैंक है। ओपी राजभर ने पहले ही बीजेपी से अलग होकर अखिलेश से हाथ मिला लिया है। वहीं, उत्तर प्रदेश में निषाद समाज के करीब 5 फीसदी वोटर हैं, जो मांझी, निषाद, धीवर, बिंद, कश्यप मल्लाह के नाम से जानी जाती है। वहीं, उत्तर प्रदेश के मऊ, गोरखपुर, बलिया, संतकबीर नगर, मिर्जापुर, भदोही, वाराणसी, जौनपुर, फतेहपुर, सहारनपुर हमीरपुर जिलों में निषाद वोटरों की बहुलता है। इसके अलावा पूर्वांचल की 60 से अधिक सीटों पर निषाद समाज का खासा असर है जो उत्तर प्रदेश की 160 सीटों को प्रभावित कर सकती है इसलिए बीजेपी निषाद समाज की सियासी ताकत को ऐसे ही नजरअंदाज करने का जोखिम नहीं उठा सकती।
बीजेपी की बढ़ी मुश्किलें
संजय निषाद द्वारा चुनाव से ठीक पहले निषाद आरक्षण की मांग बीजेपी के लिए जी का जंजाल बन गई है। ऐसा इसलिए कि यदि बीजेपी चुनाव से पहले निषाद समाज की जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का फैसला करती है तो इसमें पहले से शामिल अन्य दलित जातियां नाराज हो सकती हैं क्योंकि दलित समाज ये कभी भी स्वीकार नहीं करेगा कि उसको मिलने वाला लाभ निषाद समुदाय के साथ बांटा जाए। यही नहीं ऐसा करने से उत्तर प्रदेश की अन्य अतिपिछड़ी जातियां भी एससी में शामिल होने की मांग करने लगेगी। बीजेपी के लिए ऐसा करना संभव नहीं होगा इसलिए बीजेपी चुनाव से पहले आरक्षण को लेकर मौन साध रखी है।